देश के तीन बड़े राज्यों की जीवनधारा है चंबल नदी, वीडियो में 1024 किलोमीटर के सफर में जानिए इसका पौराणिक इतिहास

भारत की नदियाँ केवल जलधाराएं नहीं, बल्कि सभ्यता, संस्कृति और इतिहास की गवाह रही हैं। इन्हीं नदियों में से एक है चंबल नदी, जो मध्य भारत की एक प्रमुख नदी है। यह नदी न केवल अपने जल से तीन राज्यों — मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश — को जीवन देती है, बल्कि अपने ऐतिहासिक, पौराणिक और भौगोलिक महत्व के कारण भी जानी जाती है। लगभग 1024 किलोमीटर लंबी इस नदी की यात्रा, सिर्फ भौगोलिक नहीं, बल्कि धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद खास है।
चंबल नदी की उत्पत्ति और प्राचीन मान्यता
चंबल नदी की उत्पत्ति मध्यप्रदेश के इंदौर ज़िले के जानापाव की पहाड़ियों से होती है। यह वही स्थान है जिसे भगवान परशुराम का जन्मस्थान माना जाता है। जानापाव की पवित्र भूमि से निकलने के बाद यह नदी उत्तर-पूर्व की दिशा में बहती हुई मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमाओं से होकर गुजरती है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चंबल नदी को "चर्मणवती" भी कहा जाता है। यह नाम 'महाभारत' में मिलता है, जहाँ इसे एक धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नदी बताया गया है। एक अन्य कथा के अनुसार, जब द्रौपदी का चीरहरण हुआ और पूरी सभा मौन रही, तब उसी अधर्म के कारण धरती ने एक नई नदी को जन्म दिया — चंबल, जो उस अधर्म के प्रतिकार की प्रतीक मानी जाती है। यही कारण है कि कुछ मान्यताओं में इस नदी के जल को पवित्र कार्यों में प्रयोग नहीं किया जाता।
भौगोलिक सफर: कैसे चंबल बनती है तीन राज्यों की जीवनरेखा
1024 किलोमीटर की अपनी यात्रा में चंबल नदी तीन प्रमुख भारतीय राज्यों — मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश — को छूती है। इसकी सहायक नदियाँ जैसे कुनो, सिप, चिप, वासुनी और यमुना में मिलती यमुनी नदी इसे और भी अधिक जलवर्धक बनाती हैं।मध्यप्रदेश के मुरैना, भिंड, शिवपुरी, और श्योपुर जिलों में यह नदी न केवल सिंचाई का मुख्य स्रोत है, बल्कि यहाँ के किसान इसी जल पर अपनी फसल की निर्भरता रखते हैं। इसके बाद यह नदी राजस्थान के कोटा, झालावाड़ और बारां ज़िलों से गुजरती है, जहाँ कोटा बैराज जैसे बांधों के माध्यम से इसका जल ऊर्जा और सिंचाई दोनों के लिए उपयोग किया जाता है। फिर यह उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में यमुना नदी से जाकर मिलती है।
चंबल का बीहड़: डाकुओं की भूमि और इतिहास
चंबल नदी के किनारे फैले बीहड़ वर्षों तक डाकुओं की शरणस्थली रहे हैं। दस्यु सुंदर यादव, फूलन देवी, मोहर सिंह जैसे कुख्यात डकैतों की कहानियाँ इसी नदी के किनारों पर पली-बढ़ीं। हालांकि अब बीहड़ों में शांति है, लेकिन बीते समय में चंबल का नाम सुनते ही डर और रोमांच दोनों एक साथ जाग जाते थे।बीहड़ों की उबड़-खाबड़ भूमि और कठिन पहुंच ने इन डाकुओं को लंबे समय तक छिपने और ऑपरेट करने का मौका दिया। आज भी इन बीहड़ों को देखने के लिए लोग रोमांच के साथ आते हैं, लेकिन अब यहाँ पर्यटन, जैव विविधता और संरक्षण की नई पहचान बन रही है।
जैव विविधता और चंबल अभयारण्य
चंबल नदी की एक और खास बात है उसकी अद्वितीय जैव विविधता। यह नदी भारत की कुछ गिनी-चुनी नदियों में से एक है जहाँ घड़ियाल, डॉल्फिन, सांप, और कई दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसे संरक्षण देने के लिए नेशनल चंबल सेंचुरी की स्थापना की गई है जो तीनों राज्यों — मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश — में फैली है।घड़ियाल और डॉल्फिन की प्रजातियाँ अब संकटग्रस्त श्रेणी में आती हैं, और चंबल उनका अंतिम सुरक्षित आश्रयस्थल माना जाता है। यही वजह है कि सरकार और पर्यावरणविदों ने चंबल की जैव विविधता को संरक्षित रखने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं।
आधुनिक विकास और चंबल की चुनौती
हाल के वर्षों में चंबल नदी पर कई पुल और बांध बनाए गए हैं, जिससे बिजली और सिंचाई के क्षेत्र में प्रगति हुई है। कोटा बैराज और गांधी सागर बांध जैसे निर्माण ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी है। लेकिन दूसरी ओर अतिक्रमण, अवैध रेत खनन और प्रदूषण जैसी समस्याएं भी चंबल के अस्तित्व को चुनौती दे रही हैं।कभी धार्मिक और सांस्कृतिक भयवश अछूती मानी जाने वाली इस नदी का जल अब धीरे-धीरे प्रदूषित होने लगा है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।
चंबल नदी सिर्फ एक जलधारा नहीं, बल्कि भारत की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पौराणिक और प्राकृतिक विरासत का प्रतीक है। यह नदी जहां तीन राज्यों को जीवन देती है, वहीं अपने अंदर अनेक कहानियाँ, रहस्य और संवेदनाएँ समेटे हुए है। समय की माँग है कि चंबल को उसके मूल स्वरूप में बचाया जाए, ताकि इसकी जलधारा सदियों तक बहती रहे और अगली पीढ़ियाँ भी इसके महत्व को समझ सकें।