Samachar Nama
×

दिल्ली-NCR को रेगिस्तान बनने से रोक रही है अरावली पर्वतमाला, 5 मिनट के शानदार वीडियो में देखिये इसका हजारों साल पुराना इतिहास 

दिल्ली-NCR को रेगिस्तान बनने से रोक रही है अरावली पर्वतमाला, 5 मिनट के शानदार वीडियो में देखिये इसका हजारों साल पुराना इतिहास 

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की जीवनरेखा कही जाने वाली अरावली पर्वतमाला सिर्फ एक भौगोलिक संरचना नहीं, बल्कि यह एक ऐसा प्राकृतिक कवच है जिसने सदियों से इस क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन, रेगिस्तानी विस्तार और प्रदूषण के खतरों से बचाया है। यह पर्वत श्रृंखला उत्तर-पश्चिम भारत में फैली हुई है और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है।


प्राचीन इतिहास से जुड़ी अरावली

अरावली पर्वत श्रृंखला का इतिहास भारतीय भूगर्भिक और सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह श्रृंखला पृथ्वी की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जिसकी उत्पत्ति लगभग 3.2 अरब वर्ष पहले मानी जाती है। यह श्रृंखला गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर राजस्थान के माउंट आबू, अलवर, जयपुर, हरियाणा के गुरुग्राम, फरीदाबाद होते हुए दिल्ली तक फैली हुई है।‘अरावली’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से मानी जाती है, जिसका अर्थ है “कटी हुई रेखा”। इसका कारण है इसकी रुक-रुक कर फैली हुई असमान श्रृंखलाएं जो उत्तर भारत के कई हिस्सों में फैलती हैं।

पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जीवनदायिनी
अरावली पर्वत श्रृंखला केवल एक भौगोलिक रेखा नहीं है, बल्कि यह दिल्ली और NCR क्षेत्र के लिए एक प्राकृतिक जलवायु रक्षक की भूमिका निभाती है। यह राजस्थान के थार रेगिस्तान को दिल्ली और हरियाणा की ओर फैलने से रोकती है। यह पर्वतमाला क्षेत्र की नमी, हरियाली और भूमिगत जल स्तर को बनाए रखने में भी सहायक है।यदि अरावली न हो, तो दिल्ली सहित पूरा NCR क्षेत्र बहुत पहले ही रेगिस्तानी क्षेत्रों में तब्दील हो चुका होता। यह पर्वत हवा की गति को नियंत्रित करता है और रेगिस्तानी धूल और गर्म हवाओं को राजधानी की तरफ बढ़ने से रोकता है।

वन्य जीवन और जैव विविधता का गढ़
अरावली पर्वत श्रृंखला में कई दुर्लभ वनस्पतियां और जीव-जंतु पाए जाते हैं। यहाँ तेंदुआ, नीलगाय, सियार, सांभर, और कई प्रकार के पक्षी प्राकृतिक रूप से रहते हैं। यह जैव विविधता न केवल पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में सहायक है, बल्कि यह पर्यटन और शोध के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे क्षेत्रों में मंगर बानी, अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क, और असरावली झील क्षेत्र जैसे क्षेत्र इस श्रृंखला की पर्यावरणीय उपयोगिता को और भी रेखांकित करते हैं।

खनन और शहरीकरण का खतरा
हाल के वर्षों में अरावली पर्वत श्रृंखला तेजी से बढ़ते खनन, अतिक्रमण और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण गंभीर संकट में है। अवैध पत्थर खनन ने न केवल पहाड़ों को छलनी कर दिया है, बल्कि इससे क्षेत्र की हरियाली और जल स्रोतों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।एक रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा में अरावली का लगभग 75% हिस्सा अवैध खनन और निर्माण गतिविधियों से प्रभावित हो चुका है। यह बेहद चिंता का विषय है क्योंकि अरावली में आई कोई भी क्षति सीधे तौर पर दिल्ली-एनसीआर के पर्यावरण पर असर डालती है।

न्यायपालिका और संरक्षण प्रयास
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अरावली क्षेत्र में खनन और अवैध निर्माण पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। हरियाणा और राजस्थान सरकारों द्वारा भी समय-समय पर संरक्षण नीतियाँ लाई गई हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन अब भी सवालों के घेरे में है।हाल ही में हरियाणा सरकार की एक रिपोर्ट ने बताया कि अगर अरावली के संरक्षण पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले वर्षों में दिल्ली-एनसीआर का तापमान औसतन 3 से 5 डिग्री तक बढ़ सकता है और भूमिगत जलस्तर 30 से 50% तक गिर सकता है।

क्यों बचाना जरूरी है अरावली?
अरावली पर्वतमाला न केवल दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों के पर्यावरण को बचाती है, बल्कि यह लाखों लोगों के जीवन, स्वास्थ्य और भविष्य से भी जुड़ी हुई है। यह प्राकृतिक दीवार ना केवल रेगिस्तान को रोकती है, बल्कि मानसून की हवाओं को भी संतुलित करती है और जल संचयन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।यदि अरावली को न बचाया गया तो न केवल NCR क्षेत्र का पर्यावरण संकट में आ जाएगा, बल्कि दिल्ली जैसी महानगर की जीवनशैली भी प्रभावित होगी।

Share this story

Tags