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1444 संगमरमर के स्तंभों पर टिका जैनियों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल रणकपुर टेम्पल, वीडियो में जाने इसका एक भी स्तम्भ क्यों नहीं समान ? 

1444 संगमरमर के स्तंभों पर टिका जैनियों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल रणकपुर टेम्पल, वीडियो में जाने इसका एक भी स्तम्भ क्यों नहीं समान ? 

राजस्थान की धरती पर बसी स्थापत्य और आध्यात्मिक चमत्कारों की धरोहरों में से एक है – रणकपुर जैन मंदिर। यह मंदिर न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र तीर्थ है, बल्कि वास्तुकला प्रेमियों और इतिहासकारों के लिए भी एक अद्भुत आश्चर्य है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसमें कुल 1444 सुंदर और जटिल रूप से तराशे गए संगमरमर के स्तंभ हैं — और आश्चर्यजनक रूप से इनमें से कोई भी स्तंभ एक-दूसरे से मेल नहीं खाता।


स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना
रणकपुर का यह जैन मंदिर 15वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इसे चौमुखा मंदिर (चार दिशाओं में मुख वाला मंदिर) भी कहा जाता है। यह मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। इतिहास बताता है कि इस भव्य मंदिर का निर्माण एक जैन व्यापारी धरणा शाह ने मेवाड़ के शासक राणा कुंभा के शासनकाल में करवाया था।मंदिर की संरचना इतनी विशाल और सुंदर है कि एक बार जब कोई यहां आता है, तो वह इसकी नक्काशी और डिजाइन देख स्तब्ध रह जाता है। सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर अरावली की हरियाली के बीच एक शांत और दिव्य अनुभव देता है।

हर स्तंभ अपनी कहानी कहता है
मंदिर के अंदर कदम रखते ही नजरें जिन चीज़ों पर सबसे पहले जाती हैं, वे हैं – वहां मौजूद 1444 स्तंभ। हर स्तंभ बारीकी से नक्काशी किया हुआ है और हर एक की डिज़ाइन, आकृति, मोटाई, ऊँचाई और पैटर्न अलग है। कहा जाता है कि मंदिर के शिल्पकारों ने जानबूझकर कोई भी स्तंभ एक जैसा नहीं बनाया, ताकि यह स्थापत्य कला की एक अनोखी पहचान बन जाए।इतना ही नहीं, दिन के अलग-अलग समय पर इन स्तंभों पर पड़ती रोशनी की दिशा भी उनके सौंदर्य को अलग-अलग रूप में सामने लाती है। किसी स्तंभ पर नृत्य करती अप्सरा की मूर्ति है, तो किसी पर शेर, हाथी, कमल या फूल-पत्तियों की बारीक कारीगरी।

स्तंभों के बीच घूमता है समय
रणकपुर मंदिर का निर्माण करीब 50 वर्षों में पूरा हुआ। इसमें मौजूद हर स्तंभ न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है, बल्कि उस युग की संस्कृति, धर्म और समाज की गहराई को भी दर्शाता है। इन स्तंभों के बीच से गुजरते हुए ऐसा लगता है मानो समय ठहर गया हो।कहा जाता है कि मंदिर में एक ऐसा स्तंभ भी है, जिसे "भ्रम स्तंभ" कहा जाता है। इसकी बनावट कुछ ऐसी है कि देखने पर यह घूमता हुआ प्रतीत होता है, हालांकि वह स्थिर रहता है।

चार दिशाओं में फैला भव्यता का अनुभव
चूंकि यह मंदिर चौमुखा है, यानी चार दिशाओं में प्रवेशद्वार हैं, इसलिए यह दर्शाता है कि भगवान आदिनाथ की पूजा चारों दिशाओं से की जा सकती है। मंदिर की बनावट इस तरह से की गई है कि यह हर कोण से समरूप और संतुलित दिखता है।मंदिर परिसर में मुख्य गर्भगृह के अलावा कई छोटे-छोटे मंदिर भी हैं, जो अन्य तीर्थंकरों और देवी-देवताओं को समर्पित हैं। मंदिर के ऊपरी हिस्से में बनी सुंदर छतरियां और गुंबद इसकी भव्यता को और भी अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।

आस्था और शांति का संगम
रणकपुर मंदिर केवल स्थापत्य या इतिहास नहीं है, यह आस्था, शांति और ध्यान का केंद्र भी है। यहां हर वर्ष हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं, जो इस दिव्यता का अनुभव कर आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं।यह मंदिर भारत ही नहीं, विश्व के सबसे सुंदर जैन मंदिरों में से एक माना जाता है। यूनेस्को द्वारा भी इसे सांस्कृतिक विरासत के रूप में सराहा गया है।

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