इस रहस्यमयी शिवालय के कारण अभेद्य रहा राजस्थान का कुंभलगढ़ किला, इस ऐतिहासिक फुटेज में देखे वो कहानी जो आज भी लोगों को रोमांचित करती है

वैसे तो आप शिव के कई मंदिरों में दर्शन करते होंगे। कईयों के बारे में देखते और सुनते भी होंगे। लेकिन हम आपको ऐसे शिवालय की सैर करवाएंगे, जिसके साथ एक वीर योद्धा की कहानी जुड़ी हुई है। शिवालय की स्थापना हुए सालों बीत गए हैं। कहानियों में महाराणा भी जीवित रहे। लेकिन शिवलिंग आज भी वैसे ही स्थापित है, जैसे था। लेकिन क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि राजस्थान का एक राजा ऐसा भी था, जो 6 फीट के शिवलिंग को अपनी बाहों में समेटे रहता था। हम बात कर रहे हैं मेवाड़ के महाराणा कुंभा की, जिन्होंने कुंभलगढ़ किले में नीलकंठ मंदिर की स्थापना की थी।
शिव की कृपा से अभेद्य बना रहा कुंभलगढ़ किला
कुंभलगढ़ किले के इस नीलकंठ महादेव मंदिर में आज भी 6 फीट का शिवलिंग है। कहा जाता है कि महाराणा इस शिवलिंग को अपनी बाहों में समेटे रहते थे, ऐसा भी कहा जाता है कि उनकी शिव भक्ति के कारण ही कुंभलगढ़ किले को आज तक कोई जीत नहीं पाया और यह एक अभेद्य किला बना रहा। महाराणा कुंभा को भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था।
विशाल शिवलिंग
यह महादेव मंदिर अपने विशाल शिवलिंग के लिए जाना जाता है। नीलकंठ महादेव का मंदिर राजसमंद के कुंभलगढ़ किले में स्थित है। कुंभलगढ़ किला अपनी ऊंची और मजबूत दीवारों के कारण अजेय रहा है। महाराणा कुंभा ने 1458 ई. में नीलकंठ महादेव मंदिर का निर्माण कराया था। नीलकंठ महादेव का भव्य मंदिर यज्ञवेदी नामक स्थान से पूर्व दिशा में एक चट्टान पर बना है। इसका विशाल शिवलिंग डूंगरपुर से लाया गया था और इसके बाद इसे स्थापित किया गया था।
महाराणा सांगा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था
इतिहासकार गिरीश माथुर ने बताया कि शिव मंदिर के चारों ओर बनी परिक्रमा की छत 24 बड़े खंभों पर टिकी हुई है। नीलकंठ महादेव मंदिर के चारों दरवाजे परिक्रमा में खुलते हैं। बीच में 6 फीट ऊंचा काले पत्थर का विशाल शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की पश्चिम दिशा में 12 हाथ और एक मुख वाली मूर्ति स्थापित है। पश्चिमी द्वार के बाईं ओर स्थित स्तंभ पर महाराणा सांगा के काल का एक शिलालेख है। शिलालेख से पता चलता है कि महाराणा सांगा ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। महाराणा कुंभा शिवालय में बैठकर भगवान शिव की पूजा करते थे।