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राजस्थान का चित्तौड़गढ़ किला जहाँ गूंजती है तीन-तीन जौहर गाथाएं, वीडियो में जाने क्यों बना दुनिया भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र 

राजस्थान का चित्तौड़गढ़ किला जहाँ गूंजती है तीन-तीन जौहर गाथाएं, वीडियो में जाने क्यों बना दुनिया भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र 

अगर भारत में मौजूद ऐतिहासिक धरोहरों की बात करें तो राजस्थान का नाम सबसे पहले आता है। अपनी परंपराओं और संस्कृति के लिए मशहूर यह राज्य पूरी दुनिया में एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। हर साल बड़ी संख्या में लोग यहां घूमने आते हैं। राजस्थान में कई ऐसे किले हैं, जो अपनी खूबसूरती और इतिहास के लिए जाने जाते हैं। यहां स्थित चित्तौड़गढ़ किला एक ऐसा ही किला है, जो दुनियाभर से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह किला आज भी अपनी विरासत और संस्कृति को संजोए हुए है। आइए जानते हैं इस किले के गौरवशाली इतिहास के बारे में-


चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित इस किले में सात दरवाजे हैं, जिनकी मदद से किले में प्रवेश किया जाता है। चित्तौड़गढ़ किला 7वीं से 16वीं शताब्दी तक सत्ता का एक प्रमुख केंद्र था। इस किले के निर्माण की बात करें तो इसे कब और किसने बनवाया, इसके बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है। हालांकि, ऐसा माना जाता है कि मौर्य वंश के राजा चित्रांगद मौर्य ने सातवीं शताब्दी में इस किले का निर्माण करवाया था। साथ ही, कई लोगों का मानना ​​है कि इसका निर्माण महाभारत काल में पांडवों ने करवाया था। हालांकि, इस बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है।

भारत का सबसे बड़ा किला
यह किला राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है, जो भीलवाड़ा से कुछ किलोमीटर दक्षिण में है। इसे भारत का सबसे बड़ा किला माना जाता है। इस किले में मौजूद प्रवेश द्वार, बुर्ज, महल, मंदिर और जलाशय इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। अपनी खूबसूरती और समृद्ध इतिहास के कारण यह किला विश्व धरोहर स्थल है। चित्तौड़ के इस किले को 21 जून 2013 को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।

इसी किले में हुआ था पहला जौहर
यह किला कई मायनों में खास है। अपने समृद्ध इतिहास के साथ-साथ यह किला अपने पहले जौहर का भी गवाह रहा है। रावल रतन सिंह के शासनकाल में 1303 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान रानी पद्मिनी ने अपनी 16 हजार दासियों के साथ यहां पहला जौहर किया था। वहीं, राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में 1534 ई. में गुजरात के शासक बहादुर शाह के आक्रमण के दौरान रानी कर्णावती ने अपनी 13 हजार दासियों के साथ दूसरा जौहर किया था। जबकि तीसरा जौहर राणा उदय सिंह के शासनकाल में 1568 में पत्ता सिसोदिया की पत्नी फूल कंवर के नेतृत्व में अकबर के आक्रमण के दौरान हुआ था।

इन वजहों से भी खास है यह किला
इस किले में एक विजय स्तंभ भी है, जो 47 फीट चौकोर आधार और 10 फीट ऊंचे आधार पर बना 122 फीट (करीब नौ मंजिल) ऊंचा स्तंभ है। इसका निर्माण महाराजा कुंभा ने करवाया था और इसका निर्माण कार्य 1440 ई. में शुरू हुआ था और 1448 में पूरा हुआ था। इस किले में जलाशय के बीच में पद्मिनी महल स्थित है। ऐसा माना जाता है कि जब अलाउद्दीन खिलजी ने रानी का प्रतिबिंब दर्पण में देखा था, तब वह इसी महल में मौजूद थीं। किले में राणा कुंभा का महल भी मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि रानी पद्मिनी ने इसी महल में जौहर किया था।

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