Patwon Ki Haveli History: जैसलमेर की पहली हवेली जिसे डिज़ाइन करने में लगे तीन दशक, वीडियो में देखे इसकी अद्भुत निर्माण गाथा

राजस्थान की शान और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बनी पटवों की हवेली न केवल स्थापत्य कला का एक बेहतरीन नमूना है, बल्कि यह हवेली भारत के उन गिने-चुने ऐतिहासिक स्थलों में शामिल है, जहां हर दीवार, हर झरोखा और हर नक्काशी अपनी अलग ही कहानी कहती है। यह हवेली राजस्थान के जैसलमेर शहर में स्थित है और इसे 'हवेलियों का समूह' भी कहा जाता है क्योंकि वास्तव में यह केवल एक हवेली नहीं, बल्कि पांच अलग-अलग हवेलियों का समूह है, जिसे पटवा परिवार ने बनवाया था।
30 वर्षों में बनी स्थापत्य कला की अनुपम मिसाल
पटवों की हवेली को डिज़ाइन और पूर्ण रूप से तैयार करने में लगभग 30 वर्ष लग गए थे। यह कार्य 1805 में शुरू हुआ था और यह 19वीं सदी के मध्य तक चलता रहा। कहा जाता है कि पटवा परिवार का व्यापार बहुत समृद्ध था और वे मुख्यतः ब्रोकेड और चांदी के व्यापार से जुड़े थे। जैसलमेर के मशहूर पटवा गुमानचंद पटवा ने अपने पांच बेटों के लिए ये पांच हवेलियां बनवाईं, जिनमें से पहली और सबसे भव्य हवेली उन्होंने स्वयं के लिए बनवाई थी। इस निर्माण में केवल समय नहीं बल्कि उस युग की सबसे बेहतरीन कारीगरी, कलाकार और शिल्प कौशल का निवेश किया गया।
पीले पत्थरों की शानदार जालीदार नक्काशी
पटवों की हवेली जैसलमेर के मशहूर पीले बलुआ पत्थर से निर्मित है, जो सूर्य की रोशनी में सोने जैसी चमक बिखेरता है। यही कारण है कि जैसलमेर को "सोनार किला" और "स्वर्ण नगरी" भी कहा जाता है। हवेली की दीवारों, छतों और झरोखों पर की गई बारीक जालीदार नक्काशी, राजस्थान की पारंपरिक स्थापत्य शैली का सुंदर उदाहरण है। हर खिड़की और झरोखे पर इतनी बारीकी से काम किया गया है कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है।
विशेष बात यह है कि उस समय की न तो कोई मशीनें थीं और न ही आधुनिक औजार, फिर भी जो बारीकी और समानता इन नक्काशियों में दिखाई देती है, वह आज के यंत्र-युग में भी कठिन है। यही कारण है कि यह हवेली आज भी वास्तुकला के विद्यार्थियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
हवेली की आंतरिक बनावट और दीवारों की सजावट
हवेली के अंदर प्रवेश करते ही एक विशाल आंगन और गलियारों का जाल दिखाई देता है, जिसे पारंपरिक राजस्थानी शैली में सजाया गया है। इसके कमरों की दीवारों पर उस युग की जीवनशैली, त्योहारों, संगीत और नृत्य की झलकियाँ देखने को मिलती हैं। दीवारों पर की गई चित्रकारी, कांच और आईनों का काम तथा लकड़ी पर की गई बारीक नक्काशी देखकर लगता है मानो यह किसी राजा-महाराजा की शाही हवेली हो।
हवेली में अनेक बालकनियाँ और झरोखे हैं, जिनसे बाहर का दृश्य देखा जा सकता है, और इन झरोखों से हवा और रोशनी का समुचित प्रवाह भी बना रहता है। ये झरोखे उस समय की महिलाओं के लिए बनाए गए थे ताकि वे पर्दा प्रथा का पालन करते हुए बाहर का नज़ारा देख सकें।
आज है जैसलमेर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल
वर्तमान में पटवों की हवेली राजस्थान पर्यटन विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है। इसका एक भाग संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है, जहां पर्यटक उस युग की दुर्लभ वस्तुएं, पारंपरिक वस्त्र, आभूषण, फर्नीचर, सिक्के और दस्तावेज़ देख सकते हैं। यह हवेली जैसलमेर आने वाले हर पर्यटक की सूची में शामिल होती है और हर साल हज़ारों देसी-विदेशी सैलानी इसकी खूबसूरती देखने आते हैं।
पटवों की हवेली से जुड़ी रोचक बातें
यह हवेली व्यापारियों ने बनवाई थी, न कि राजाओं ने, फिर भी इसकी भव्यता किसी भी शाही महल से कम नहीं।
यह जैसलमेर की पहली हवेली मानी जाती है, जिसने बाद में अन्य हवेलियों के निर्माण को प्रेरित किया।
हवेली में लगभग 60 से ज्यादा कमरे हैं, जिनमें से कई अब संग्रहालय के रूप में संरक्षित हैं।
यहां की दीवारों पर लगे रंगीन कांच और भित्ति चित्र, उस समय की राजस्थानी सांस्कृतिक जीवन शैली की जीवंत झलक देते हैं।
हवेली की बनावट इस प्रकार की गई है कि गर्मी में अंदर का वातावरण ठंडा और सर्दी में गर्म रहता है, जो राजस्थान के कठोर मौसम के अनुसार एक चमत्कारी डिज़ाइन कहा जा सकता है।