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5 अलग-अलग हवेलियों का अनूठा संगम है जैसलमेर स्थित 'पटवों की हवेली', वीडियो में देखे कब और किसने करवाया था इस ऐतिहासिक इमारत का निर्माण 

5 अलग-अलग हवेलियों का अनूठा संगम है जैसलमेर स्थित 'पटवों की हवेली', वीडियो में देखे कब और किसने करवाया था इस ऐतिहासिक इमारत का निर्माण 

राजस्थान का नाम आते ही मन में सुनहरी रेत, विशाल किले और भव्य हवेलियों की छवि उभरने लगती है। इन्हीं भव्य स्मारकों में से एक है जैसलमेर की प्रसिद्ध पटवों की हवेली। यह हवेली न केवल स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है, बल्कि राजस्थान के ऐतिहासिक वैभव और व्यापारिक समृद्धि का प्रतीक भी मानी जाती है। जैसलमेर के मुख्य शहर के केंद्र में स्थित यह हवेली इतिहास, कला और संस्कृति का ऐसा संगम है जिसे देखने हर साल हजारों पर्यटक देश-विदेश से आते हैं।


पटवों की हवेली का इतिहास

पटवों की हवेली का इतिहास 19वीं सदी की शुरुआत से जुड़ा है। यह हवेली एक नहीं, बल्कि पांच भव्य हवेलियों का समूह है, जिसे पटवा परिवार ने बनवाया था। इस परिवार के संस्थापक गुमानचंद पटवा थे, जो एक समृद्ध व्यापारी और बैंकर थे। उन्होंने अपने पांच बेटों के लिए पांच अलग-अलग हवेलियां बनवाईं, जो आज 'पटवों की हवेली' के नाम से जानी जाती हैं। कहा जाता है कि गुमानचंद पटवा व्यापार से अत्यधिक धनवान हो गए थे और उन्होंने अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए इन हवेलियों का निर्माण कराया।पटवा परिवार मुख्य रूप से जैन धर्म से संबंधित था और उनका व्यापार वस्त्रों, आभूषणों और सिल्क के आयात-निर्यात से जुड़ा था। जैसलमेर रेशम मार्ग (Silk Route) का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, जिससे व्यापारियों की संपन्नता और स्थापत्य कला में निवेश की प्रवृत्ति साफ झलकती है।

हवेली का निर्माण काल
पटवों की हवेली का निर्माण कार्य 1805 ई. में शुरू हुआ था और यह लगभग 50 वर्षों में पूर्ण हुआ। सबसे पहले गुमानचंद पटवा ने अपने सबसे बड़े बेटे के लिए पहली हवेली बनवाई। इसके बाद क्रमशः चार अन्य हवेलियों का निर्माण हुआ। हर हवेली की अपनी अलग पहचान है, लेकिन स्थापत्य शैली और डिज़ाइन में समानता के कारण ये एक समूह की तरह दिखाई देती हैं।

स्थापत्य और वास्तुकला की विशेषताएँ
पटवों की हवेली पीले बलुआ पत्थर से निर्मित है, जो जैसलमेर की विशिष्ट वास्तुकला की पहचान है। इस पत्थर की विशेषता यह है कि सूरज की किरणों में यह सुनहरा दिखाई देता है, जिस कारण जैसलमेर को 'सुनहरा शहर' भी कहा जाता है। हवेली की नक्काशीदार खिड़कियाँ, झरोखे, दरवाजे और दीवारें इतनी बारीकी और सुंदरता से गढ़ी गई हैं कि यह स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण बन जाती हैं।हर हवेली में कई कमरे, आंगन, बालकनी और गलियारें हैं, जिन्हें इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है कि गर्मियों में भी अंदर ठंडक बनी रहे। जालीदार झरोखों से बाहर का नज़ारा लिया जा सकता है, पर अंदर की गोपनीयता बनी रहती है। इन हवेलियों में मूर्तिकला और चित्रकला का भी गहन प्रभाव देखने को मिलता है।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
पटवों की हवेली न केवल एक आवासीय परिसर थी, बल्कि यह एक सांस्कृतिक प्रतीक भी थी। यहाँ पर व्यापारिक बैठकों के लिए अलग से कक्ष बनाए गए थे, धार्मिक आयोजन होते थे और अतिथियों के स्वागत के लिए विशेष सुविधाएं थीं। यह हवेली उस समय की समाज व्यवस्था, कला प्रेम और व्यापारिक जीवनशैली को दर्शाती है।इस हवेली के कुछ हिस्से अब संग्रहालयों में तब्दील कर दिए गए हैं, जहाँ जैसलमेर की पारंपरिक वेशभूषा, गहने, दैनिक उपयोग की वस्तुएं और पुराने दस्तावेजों को संरक्षित किया गया है। इससे पर्यटक जैसलमेर के गौरवशाली अतीत को करीब से समझ सकते हैं।

कौन-कौन देखरेख करता है?
आज पटवों की हवेली का एक हिस्सा राजस्थान सरकार के अधीन है और इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित किया गया है। कुछ भागों को निजी स्वामित्व में संग्रहालय के रूप में संचालित किया जा रहा है। इन संग्रहालयों में टिकट लेकर प्रवेश किया जा सकता है और पर्यटक इसमें रखी प्राचीन वस्तुओं और चित्रों को देख सकते हैं।

पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण
पटवों की हवेली जैसलमेर आने वाले हर पर्यटक के लिए एक मुख्य आकर्षण है। यहां की खूबसूरत नक्काशी, संकरी गलियां, पीले पत्थर की भव्यता और हवेलियों की छत से दिखता जैसलमेर किला, हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। इसके साथ ही पास ही में स्थित जैन मंदिर और बाजार भी इस क्षेत्र को एक जीवंत ऐतिहासिक परिसर का रूप देते हैं।

पटवों की हवेली जैसलमेर की आत्मा में रची-बसी एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो न केवल स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण है, बल्कि राजस्थान की व्यापारिक समृद्धि और सांस्कृतिक वैभव की भी प्रतीक है। यदि आप कभी जैसलमेर जाएँ, तो इस हवेली को देखना न भूलें। यह न केवल एक इमारत है, बल्कि इतिहास की वो गवाही है जो समय के साथ भी अमर बनी हुई है।

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