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सिर्फ टाइगर सफारी ही नहीं रणथंभौर के ये 700 साल पुराना मंदिर भी पर्यटकों को करता है आकर्षित, वीडियो में देखे हैरान करने वाला इतिहास 

सिर्फ टाइगर सफारी ही नहीं रणथंभौर के ये 700 साल पुराना मंदिर भी पर्यटकों को करता है आकर्षित, वीडियो में देखे हैरान करने वाला इतिहास 

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान देश-विदेश के पर्यटकों के लिए एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह राष्ट्रीय उद्यान खासतौर पर टाइगर सफारी के लिए मशहूर है, जहां बाघों को उनके प्राकृतिक परिवेश में देखा जा सकता है। लेकिन केवल जंगल और बाघ ही यहां का आकर्षण नहीं हैं, बल्कि यहां मौजूद प्राचीन त्रिनेत्र गणेश मंदिर भी भक्तों और पर्यटकों के लिए गहरी आस्था और आकर्षण का केंद्र है।


जंगल के बीचोंबीच बसा आस्था का धाम

रणथम्भौर के दुर्गम किले के भीतर स्थित यह मंदिर न सिर्फ अपनी ऐतिहासिकता के लिए जाना जाता है, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसका विशेष महत्व है। यह भगवान गणेश का ऐसा मंदिर है जहां भगवान के साथ-साथ उनके पूरे परिवार की प्रतिमाएं एक साथ विराजमान हैं – त्रिनेत्र वाले श्रीगणेशजी, उनकी दो पत्नियाँ – रिद्धि और सिद्धि, और उनके दो पुत्र – शुभ और लाभ। इस स्वरूप में गणेश जी की पूजा देश में बहुत कम स्थानों पर होती है, जिससे यह मंदिर विशेष बन जाता है।इस मंदिर की खास बात यह भी है कि यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान गणेश की प्रतिमा तीन नेत्रों वाली है। कहा जाता है कि यह त्रिनेत्र गणेश की मूर्ति स्वयम्भू (स्वतः प्रकट हुई) है। मान्यता है कि जो भक्त यहां सच्चे मन से आकर प्रार्थना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक मान्यता
त्रिनेत्र गणेश मंदिर का इतिहास 700 साल से भी पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि राजा हम्मीर देव चौहान जब रणथम्भौर किले पर शासन कर रहे थे, तब एक युद्ध के दौरान उन्हें भगवान गणेश के दर्शन हुए और उन्होंने यही त्रिनेत्र रूप में गणेश जी की स्थापना करवाई। युद्ध के समय जब राजा की राशन सामग्री समाप्त होने लगी थी, तब भगवान गणेश ने स्वप्न में उन्हें दर्शन देकर कहा कि वे चिंता न करें – सबकुछ ठीक हो जाएगा। अगली सुबह वहां राशन की व्यवस्था होने लगी और उसी दिन से हर दिन गणेश जी को पत्र के रूप में निमंत्रण भेजा जाने लगा। आज भी यहां भक्त गणेश जी को पत्र भेजते हैं – खासकर जब कोई विवाह, मुंडन या शुभ अवसर हो।

हर रोज पहुंचते हैं हजारों पत्र
इस मंदिर की एक और अनोखी परंपरा है – डाक द्वारा भेजे गए पत्र। देशभर से लोग अपनी समस्याएं, शुभ अवसरों के निमंत्रण या प्रार्थनाएं पत्र के माध्यम से त्रिनेत्र गणेश जी को भेजते हैं। मंदिर प्रशासन रोजाना सैकड़ों पत्र पढ़ता है और उन्हें मंदिर में भगवान के चरणों में रखा जाता है। यह श्रद्धा का वह रूप है जो भक्तों की अटूट आस्था को दर्शाता है।

गणेश चतुर्थी पर लगता है विशाल मेला
हर साल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस दिन मंदिर और किला रोशनी से सज जाता है, भजन-कीर्तन होते हैं, और भक्तजन अपने आराध्य को प्रसाद अर्पित करते हैं। यह आयोजन धार्मिक वातावरण के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहरों को भी जीवंत करता है।

टाइगर सफारी के साथ जुड़ा आध्यात्मिक अनुभव
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में टाइगर सफारी के लिए आने वाले पर्यटक जब त्रिनेत्र गणेश मंदिर की ओर रुख करते हैं, तो उन्हें जंगल की खूबसूरती और रहस्य के साथ-साथ आस्था की अनुभूति भी होती है। कई विदेशी पर्यटक भी यहां आकर भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं से परिचित होते हैं। यह मंदिर न केवल एक दर्शनीय स्थल है, बल्कि यह लोगों को मानसिक शांति, विश्वास और ऊर्जा प्रदान करता है।

पहुंचने का रास्ता और सुझाव
रणथम्भौर त्रिनेत्र गणेश मंदिर तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को रणथम्भौर किले की चढ़ाई करनी पड़ती है। हालांकि यह रास्ता थोड़ा कठिन है, लेकिन मंदिर तक पहुंचने पर जो दिव्यता और शांति का अनुभव होता है, वह सारी थकान को दूर कर देता है। मंदिर सुबह 6 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक खुला रहता है। अगर आप टाइगर सफारी की योजना बना रहे हैं तो समय निकालकर इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें।

टाइगर सफारी की रोमांचक यात्रा के बीच यदि श्रद्धा और आध्यात्मिक अनुभव को भी जोड़ना है, तो त्रिनेत्र गणेश मंदिर एक आदर्श स्थान है। यह न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराएं भी इसे रणथम्भौर का अनमोल रत्न बनाती हैं। यह मंदिर पर्यटकों को रणथम्भौर की एक नई पहचान देता है – जहां जंगल और आस्था साथ-साथ चलती है।

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