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सिर्फ रत्नावती और तांत्रिक ही नहीं भानगढ़ किले के लिए मशहूर है कई भूतिया कहानियां ? वीडियो में हर एक कहानी जान कांप जाएगी रूह 

सिर्फ रत्नावती और तांत्रिक ही नहीं भानगढ़ किले के लिए मशहूर है कई भूतिया कहानियां ? वीडियो में हर एक कहानी जान कांप जाएगी रूह 

भानगढ़ शहर और उसका किला जयपुर से 118 किलोमीटर दूर स्थित है। यह देश की सबसे भूतिया जगहों में से एक है। इस किले का निर्माण 17वीं शताब्दी में आमेर के मुगल सेनापति मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करवाया था।लेकिन अब यह जगह वीरान है। किले के परिसर में हवेलियों, मंदिरों और वीरान बाजारों के अवशेष खंडहर के रूप में खड़े हैं। शाम को सूर्यास्त के बाद यहां कोई नहीं जाता।कहा जाता है कि अंधेरे में यहां असाधारण गतिविधियां होती हैं। इसके बावजूद पर्यटक इस खूबसूरत किले को देखने आते हैं।किले की सबसे अजीब बात जो आपको हैरान कर देगी वो ये है कि यहां बने किसी भी घर की छत नहीं है। घर का पूरा ढांचा बना हुआ है, लेकिन उनमें से किसी की भी छत नहीं है।स्थानीय लोगों का कहना है कि घरों की छत इसलिए नहीं है क्योंकि जब भी वे छत बनाते हैं तो वह गिर जाती है। यहां का बच्चा-बच्चा जानता है कि इस पर बालूनाथ का श्राप है।


इतनी कहानियां कि इतिहासकार भी असमंजस में
इतिहासकार डॉ. रीमा आहूजा ने ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस पर जारी शो 'एकांत' में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि भानगढ़ के बारे में इतनी कहानियां, इतनी किंवदंतियां हैं कि आम लोगों के लिए यह कहना मुश्किल है कि इतिहास कहां से शुरू होता है और कहां खत्म होता है।इतिहासकारों को भी दिक्कत है। वह बताती हैं कि कुछ कहानियां बहुत पुरानी हैं। कुछ भूत-प्रेत की कहानियां आती हैं। किसी राजा या राजकुमारी को किसी ने श्राप दिया था।रीमा कहती हैं कि कई बार हम देखते हैं कि लोगों में इन चीजों को लेकर जिज्ञासा ज्यादा होती है। इस वजह से ऐसी कहानियां प्रचलन में हैं। लेकिन, कोई भी पूरी सच्चाई नहीं जानता।

संत बालूनाथ और महाराजा की कहानी
भानगढ़ के महाराज माधो सिंह संत बालूनाथ के भक्त थे। बालूनाथ ने महाराजा से तपस्या करने के लिए एक गुफा बनवाने को कहा। महाराजा ने तुरंत हामी भर दी और एक गुफा बनवा दी। बालूनाथ उस गुफा में तपस्या करने चले गए।लेकिन, दरबार के पुजारियों को महाराज और संत बालूनाथ के रिश्ते से जलन होने लगी। दोनों को अलग करने के लिए पुजारियों ने एक योजना बनाई। उन्होंने एक बिल्ली को मारकर गुफा के अंदर फेंक दिया।दो-तीन दिन बाद जब बिल्ली के शव से दुर्गंध फैलने लगी तो पुजारियों ने राजा को बताया कि संत बालूनाथ की गुफा में मौत हो गई है।

तब संत ने विनाश का श्राप दे दिया
यह जानकारी मिलने के बाद महाराजा माधो सिंह बहुत दुखी हुए। वे गुफा में गए, लेकिन दुर्गंध के कारण अंदर नहीं जा सके। उन्होंने गुफा को बंद करने का आदेश दिया।उधर, जब संत बालूनाथ की तपस्या पूरी हुई तो उन्होंने देखा कि उनका बाहर निकलने का रास्ता बंद है। इसके बाद संत बालूनाथ क्रोधित हो गए और उन्होंने भानगढ़ को पूरी तरह से नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया।इसके बाद क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता, लेकिन भानगढ़ पूरी तरह से नष्ट हो गया। घरों की छतें गिर गईं। स्थानीय लोगों का कहना है कि उस दिन से लेकर आज तक यहां जब भी घरों की छत बनती है, तो वह गिर जाती है।

जंगल में बनी है संत की समाधि
अपनी गलती का एहसास होने पर राजा ने संत की समाधि बनवाई।
किले के पीछे जंगल में बालू नाथ की समाधि आज भी बनी हुई है।
इतिहासकार इस नाम के किसी संत के अस्तित्व की पुष्टि नहीं करते।
इतिहासकारों का मानना ​​है कि बालक नाथ नाम के एक संत थे।
हालांकि, यह पता नहीं चल पाया है कि वे किस काल और किस क्षेत्र से ताल्लुक रखते थे।

यहां नागर शैली में कई मंदिर बने हुए हैं
अब जानते हैं किले की वास्तुकला के बारे में। किले में मुख्य द्वार के अलावा लाहौरी गेट, अजमेरी गेट, फूलबाड़ी गेट और दिल्ली गेट है। किले के मुख्य द्वार पर कई मंदिर हैं, जिनमें से प्रमुख हैं गोपीनाथ मंदिर, सोमेश्वर मंदिर, केशव राय मंदिर, मंगला देवी मंदिर और गणेश मंदिर।नागर शैली में बने ये मंदिर 17वीं शताब्दी की वास्तुकला और शिल्पकला का बेहतरीन उदाहरण हैं। कहा जाता है कि यह महल सात मंजिला था, लेकिन अब इसकी केवल चार मंजिलें ही बची हैं।

राजकुमारी रत्नावती और तांत्रिक की कहानी
अब आपको किले से जुड़ी एक और कहानी बताते हैं। यह राजकुमारी रत्नावती की कहानी है, जो यहां काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि रत्नावती इतनी खूबसूरत थी कि पूरे राजपूताना में उसकी चर्चा थी और हर राजकुमार उसकी खूबसूरती पर मोहित था।इस समय वहां रहने वाला सिंधिया नाम का एक तांत्रिक भी राजकुमारी से शादी करना चाहता था। राजकुमारी को लुभाने के लिए उसने एक तेल बनाया, जिसे छूते ही रत्नावती उस तांत्रिक की ओर आकर्षित हो जाती।हालांकि, राजकुमारी को इस बारे में पता चल गया। इसलिए, उसने तेल की बोतल एक पत्थर पर फेंक दी। कहा जाता है कि इसके बाद वह पत्थर एक बड़ी चट्टान में बदल गया और सीधे तांत्रिक के ऊपर गिरा।

मरने से पहले तांत्रिक ने दिया था श्राप
मरने से पहले उस तांत्रिक ने भानगढ़ को नष्ट हो जाने का श्राप दिया था और उसके परिसर में कोई नहीं रह पाएगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसके बाद एक तूफ़ान आया और भानगढ़ पूरी तरह से तबाह हो गया। कुछ लोगों का कहना है कि मुगल सेना ने राज्य पर भीषण हमला किया था। इस दौरान किले को काफी नुकसान पहुंचा और राजकुमारी रत्नावती समेत किले में मौजूद लोग मारे गए। हालांकि, इतिहास में इसका कोई जिक्र नहीं है। कोई नहीं जानता कि राजकुमारी रत्नावती किसकी बेटी थीं, किसकी पत्नी थीं या यह कहानी किस कालखंड की है।

सुनी जाती हैं महिलाओं के चीखने की आवाज़ें
कुछ लोगों का दावा है कि इस किले से महिलाओं के चीखने, चूड़ियां तोड़ने और रोने की आवाज़ें सुनी जा सकती हैं. वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि किले की दीवारों पर कान लगाने से आत्माओं की आवाज़ें भी सुनी जा सकती है। कुछ लोगों का मानना ​​है कि किले में घूमते समय ऐसा लगता है जैसे कोई साया उनका पीछा कर रहा है. हालांकि, अलवर की पहाड़ी पर बने इस किले को देखने आने वालों की कमी नहीं है.अगर आप भी ऐसा महसूस करना चाहते हैं या आपको लगता है कि ये मनगढ़ंत कहानियाँ हैं, तो आपको यह जानने के लिए भानगढ़ आना होगा। भानगढ़ किला दिल्ली से 283 किलोमीटर दूर है। यह किला अभयारण्य से 50 किलोमीटर दूर जयपुर और अलवर शहर के बीच बना है। आप राजस्थान के बाहरी शहरों से बस या टैक्सी द्वारा अलवर पहुँच सकते हैं। यह स्थान दिल्ली से लगभग 283 किलोमीटर और जयपुर से लगभग दो घंटे की दूरी पर स्थित है। अगर आप यहाँ जा रहे हैं, तो अलवर में बाला किला और अलवर सिटी पैलेस देखना न भूलें।

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