रणथंभौर की सफारी ही नहीं ये सैंकड़ों साल पुराना किला भी पर्यटकों को करता है आकर्षित, वीडियो में जानिए इसका गौरवशाली इतिहास

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथम्भौर दुर्ग (Ranthambore Fort) एक ऐतिहासिक किला है, जो न केवल अपनी वास्तुकला की भव्यता के लिए जाना जाता है, बल्कि इसके इतिहास में वीरता, युद्ध और संस्कृति का अद्भुत संगम भी छिपा हुआ है। यह दुर्ग पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है, जो भारतीय मध्यकालीन इतिहास को करीब से समझने का अवसर प्रदान करता है।
दुर्ग की स्थापना और भौगोलिक स्थिति
रणथम्भौर दुर्ग की स्थापना 10वीं सदी के आसपास हुई मानी जाती है। यह दुर्ग अरावली पर्वतमाला की एक पहाड़ी पर स्थित है, जिसकी ऊँचाई लगभग 700 फीट है। दुर्ग की यह भौगोलिक स्थिति इसे न केवल प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करती थी, बल्कि आसपास के क्षेत्र पर नियंत्रण करने में भी सहायक थी। यहां से पूरे रणथम्भौर क्षेत्र का व्यापक दृश्य दिखाई देता है, जो रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
रणथम्भौर दुर्ग का इतिहास कई राजवंशों और शासकों से जुड़ा हुआ है। इसे कई बार विजित किया गया, लेकिन यह दुर्ग हमेशा अपने किलेबंदी और युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध रहा। प्राचीन काल में यह दुर्ग चंदेल और सुल्तान राजवंशों के अधीन रहा। 12वीं शताब्दी में चतुर्गढ़ और रणथम्भौर के शासक एक साथ सुल्तानों और राजपूतों के बीच सत्ता संघर्ष का केंद्र बने।
रणथम्भौर दुर्ग का सबसे प्रसिद्ध इतिहास तब शुरू होता है जब यह चौहान राजपूतों के अधीन आया। महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने इस दुर्ग को मजबूत किला बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चौहान राजवंश के बाद दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 13वीं सदी में रणथम्भौर पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में अलाउद्दीन खिलजी ने भेदक रणनीति और भारी सेना का उपयोग कर दुर्ग पर कब्जा किया, जो भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण युद्ध के रूप में दर्ज है। इस युद्ध के बाद रणथम्भौर दुर्ग मुस्लिम शासकों के अधीन रहा।
रणथम्भौर दुर्ग का सांस्कृतिक महत्व
रणथम्भौर दुर्ग केवल एक सैन्य किला नहीं है, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। दुर्ग के भीतर कई मंदिर स्थित हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है श्री रणथम्भौर गणेश मंदिर। यह मंदिर हजारों वर्षों से यहां श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है। इसके अलावा दुर्ग के अंदर शिव मंदिर, रानी का महल और अन्य संरचनाएं भी मौजूद हैं, जो उस युग की स्थापत्य कला और धार्मिक विश्वासों की झलक देती हैं।
रणथम्भौर दुर्ग का पर्यटन और संरक्षण
आज रणथम्भौर दुर्ग न केवल इतिहास के पन्नों में बल्कि पर्यटकों की पहली पसंद में से एक है। यहाँ की भव्य दीवारें, प्राचीन किले की संरचनाएं और आसपास के वन्यजीवन को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। रणथम्भौर नेशनल पार्क के समीप होने के कारण यह दुर्ग वन्यजीवन प्रेमियों के लिए भी खास आकर्षण का केंद्र है, खासकर बाघों को देखने के लिए।सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा इस दुर्ग को संरक्षण प्रदान किया जा रहा है ताकि इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रखा जा सके। इस किले की दीवारों में छुपी कहानियां, युद्ध की गाथाएं और स्थापत्य कला के नगीने इतिहास के पन्नों में जीवित हैं।
रणथम्भौर दुर्ग का आधुनिक संदर्भ
रणथम्भौर दुर्ग ने समय के साथ कई बार अपनी भूमिका बदली है। मध्यकालीन युद्धक्षेत्र से लेकर अब यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है। आधुनिक दौर में भी इस दुर्ग का महत्व कम नहीं हुआ है, क्योंकि यह राजस्थान के इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। कई फिल्में और डॉक्यूमेंट्री भी इस दुर्ग की भव्यता और ऐतिहासिकता को दिखा चुकी हैं, जिससे इसकी प्रसिद्धि और भी बढ़ी है।
रणथम्भौर दुर्ग न केवल राजस्थान की शान है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, वीरता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। इसकी मजबूत किलेबंदी, युद्धों की गाथाएं, धार्मिक स्थल और आज के पर्यटन के लिहाज से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इतिहास और प्रकृति के संगम स्थल के रूप में रणथम्भौर दुर्ग सभी के लिए एक अद्भुत अनुभव प्रस्तुत करता है।अगर आप इतिहास प्रेमी हैं या भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को समझना चाहते हैं, तो रणथम्भौर दुर्ग की यात्रा अवश्य करें। यहाँ का इतिहास आपको भारतीय वीरता, स्थापत्य कला और धार्मिक आस्था की एक झलक प्रदान करेगा, जो आपकी यात्रा को अविस्मरणीय बना देगा।