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राजस्थान का गौरव! 400 सालों में 22 सिसोदिया शासकों ने रचा उदयपुर सिटी पैलेस का इतिहास, वीडियो में देखे इसकी अनसुनी कहानी 

राजस्थान का गौरव! 400 सालों में 22 सिसोदिया शासकों ने रचा उदयपुर सिटी पैलेस का इतिहास, वीडियो में देखे इसकी अनसुनी कहानी 

राजस्थान की धरती पर वीरता, भव्यता और संस्कृति के अद्भुत मेल की अनेक मिसालें मिलती हैं, लेकिन जब बात होती है उदयपुर के सिटी पैलेस की, तो यह महज एक इमारत नहीं, बल्कि 400 वर्षों के इतिहास और 22 सिसोदिया शासकों की धरोहर बन जाता है। यह महल न केवल स्थापत्य कला की दृष्टि से अद्वितीय है, बल्कि मेवाड़ के गौरव, परंपरा और अस्मिता का प्रतीक भी है। आइए जानें कैसे बना सिसोदिया वंश का ये भव्य महल और इसके पीछे छुपी दिलचस्प दास्तान।


उदयपुर की नींव और सिटी पैलेस की शुरुआत
उदयपुर शहर की स्थापना 1553 में महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने की थी। जब चित्तौड़गढ़ मुगलों के आक्रमण से लगातार संकट में था, तब उन्होंने एक नए राजधानी स्थल की आवश्यकता महसूस की और झीलों की गोद में बसे इस इलाके को चुना, जो बाद में "उदयपुर" कहलाया।यहीं से सिटी पैलेस के निर्माण की शुरुआत हुई। यह महल पिचोला झील के किनारे स्थित है, जिसे देखने से लगता है मानो यह पानी की लहरों पर तैर रहा हो। इसके निर्माण की नींव महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने रखी, लेकिन यह एक दिन या एक पीढ़ी में नहीं बना।

22 राजाओं ने मिलकर रचा इतिहास
उदयपुर सिटी पैलेस की सबसे खास बात यह है कि इसे एक नहीं, बल्कि लगातार 22 सिसोदिया शासकों ने अलग-अलग कालखंडों में विकसित किया। हर राजा ने अपने शासनकाल में इस महल को कुछ न कुछ नया दिया—कभी किलेबंदी, तो कभी सुंदर महल, आंगन, बरामदे या मंदिर।इसका निर्माण राजस्थानी, मुग़ल, यूरोपीय और चीनी स्थापत्य शैलियों के सम्मिलन का अद्भुत उदाहरण है। यह एक “महल परिसर” है, जिसमें 11 छोटे-बड़े महल शामिल हैं जैसे कि शीश महल, मोती महल, दरबार हॉल, बाड़ी महल, कृष्णा विलास आदि।

इतिहास की गवाह है यह भव्यता
महल की दीवारों पर उकेरे गए चित्र, झरोखे से दिखती झील, रंग-बिरंगे शीशों और संगमरमर से सजे गलियारे इतिहास के जीवंत दस्तावेज़ हैं। यहां आज भी राजसी परंपराएं और अनुष्ठान सजीव हैं। यही कारण है कि उदयपुर सिटी पैलेस न केवल एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, बल्कि सांस्कृतिक स्मृति के रूप में भी जीवित है।

ब्रिटिश काल में भी बची अस्मिता
अंग्रेजों के शासनकाल में जब भारत के अधिकांश राजा रियासतों में सिमट चुके थे, तब भी सिसोदिया वंश ने अपनी शान को कायम रखा। उन्होंने अंग्रेजों के साथ राजनयिक संबंध बनाए, लेकिन अपनी पहचान और परंपराओं से कोई समझौता नहीं किया। इसी काल में भी इस महल का विस्तार जारी रहा और इसे एक राजसी प्रशासनिक केन्द्र के रूप में प्रयोग किया गया।

आज भी है राजसी जीवन की झलक
आज भी सिटी पैलेस का एक हिस्सा राजपरिवार के पास है, जहां वंशज निवास करते हैं। शेष भाग को सिटी पैलेस म्यूजियम के रूप में विकसित किया गया है, जहां पर्यटक सिंहासन, हथियार, चित्रकला, रॉयल पोशाकें और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को देख सकते हैं।इसके अलावा, सिटी पैलेस में शादियों, राजसी समारोहों और फिल्मों की शूटिंग भी होती रहती है। बॉलीवुड और हॉलीवुड की कई फिल्मों ने इस महल को अपनी कहानियों में पिरोया है।

लोकल पर्यटन और रोजगार का केन्द्र
सिटी पैलेस न केवल इतिहास प्रेमियों का स्वर्ग है, बल्कि यह स्थानीय पर्यटन, हस्तशिल्प, गाइडिंग और कलाकारी के लिए भी एक बड़ा प्लेटफॉर्म है। यहां हर साल लाखों पर्यटक देश-विदेश से आते हैं, जिससे उदयपुर की अर्थव्यवस्था और रोजगार को मजबूती मिलती है।

संरक्षण की जरूरत
हालांकि यह महल आज भी शानदार स्थिति में है, लेकिन संरक्षण और रख-रखाव की आवश्यकता लगातार बनी हुई है। मेवाड़ ट्रस्ट, राज्य सरकार और विभिन्न सांस्कृतिक संगठनों द्वारा इसके रख-रखाव और प्रचार-प्रसार में योगदान दिया जा रहा है।

निष्कर्ष: सिर्फ महल नहीं, आत्मगौरव का प्रतीक
उदयपुर का सिटी पैलेस केवल एक स्थापत्य संरचना नहीं, बल्कि यह 400 वर्षों की यात्रा, त्याग, युद्ध, संस्कृति और गौरव का साक्षी है। यह हमें बताता है कि कैसे एक वंशज ने अपने गौरव को 22 पीढ़ियों तक बनाए रखा और उसे आने वाली पीढ़ियों के लिए धरोहर बना दिया।अगर आपने अब तक इस ऐतिहासिक स्थल को नहीं देखा है, तो अगली राजस्थान यात्रा में इसे जरूर शामिल करें – क्योंकि यहां सिर्फ पत्थर नहीं बोलते, इतिहास सांस लेता है।

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