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वीर शिरोमणि माहाराना प्रताप की जन्मस्थली के नाम से मशहूर कुम्भलगढ़ किला, इस विराल डॉक्यूमेंट्री में करे इस ऐतिहासिक दुर्ग की वर्चुअल सैर 

वीर शिरोमणि माहाराना प्रताप की जन्मस्थली के नाम से मशहूर कुम्भलगढ़ किला, इस विराल डॉक्यूमेंट्री में करे इस ऐतिहासिक दुर्ग की वर्चुअल सैर 

राजस्थान की शान और मेवाड़ की वीरता का प्रतीक कुम्भलगढ़ किला भारत के महानतम किलों में से एक है। यह दुर्ग न केवल अपनी विशाल दीवार और दुर्गम भौगोलिक स्थिति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके साथ जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएं, राजपूताना वीरता और स्थापत्य कला का भी अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। अरावली पर्वतमाला की ऊंचाई पर स्थित यह किला न केवल सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था, बल्कि मेवाड़ की सुरक्षा कवच के रूप में भी कार्य करता रहा।


निर्माण और स्थापत्य
कुम्भलगढ़ किले का निर्माण 15वीं शताब्दी में मेवाड़ के राजा राणा कुम्भा ने कराया था। इसका निर्माण कार्य वर्ष 1443 ई. में प्रारंभ हुआ और लगभग एक दशक में यह भव्य किला तैयार हुआ। राणा कुम्भा एक महान निर्माता थे जिन्होंने अपने शासनकाल में 32 किलों का निर्माण या पुनर्निर्माण कराया, जिनमें कुम्भलगढ़ उनका सबसे महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक निर्माण था।इस किले को बनाने में वास्तुशिल्प विशेषज्ञ मांडन की विशेष भूमिका रही, जो उस समय के विख्यात वास्तुकार थे। उन्होंने इस दुर्ग को सैन्य दृष्टि से सुरक्षित बनाने के साथ-साथ उसे सुंदरता और वैभव से भी सजाया।

अपराजेय दीवार
कुम्भलगढ़ किले की सबसे अद्वितीय विशेषता इसकी दीवार है, जिसे अक्सर "भारत की ग्रेट वॉल" भी कहा जाता है। यह दीवार लगभग 36 किलोमीटर लंबी है, जो इसे चीन की ग्रेट वॉल के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार बनाती है। इसकी चौड़ाई इतनी अधिक है कि पांच घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं। इस दीवार का निर्माण सैन्य दृष्टिकोण से किया गया था ताकि दुश्मन किले के भीतर प्रवेश न कर सके।

भौगोलिक सुरक्षा
किला समुद्र तल से लगभग 1,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और चारों ओर से घने जंगलों और अरावली की चोटियों से घिरा हुआ है। इसकी यह भौगोलिक स्थिति ही इसे वर्षों तक अपराजेय बनाए रखी। इतिहास में कुम्भलगढ़ किला केवल एक बार, वो भी कई शक्तिशाली सेनाओं के संयुक्त हमले से थोड़े समय के लिए जीता जा सका।

ऐतिहासिक महत्व
कुम्भलगढ़ किला सिर्फ एक सैनिक गढ़ नहीं, बल्कि राजस्थान के इतिहास में कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी भी रहा है। सबसे उल्लेखनीय घटना है कि यहीं पर मेवाड़ के महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। यह किला अकबर, शेर शाह सूरी और अन्य मुग़ल सेनाओं के लिए हमेशा चुनौती बना रहा।इतिहासकार बताते हैं कि 1576 के हल्दीघाटी युद्ध के बाद जब मेवाड़ की स्थिति अत्यंत कठिन हो गई थी, तब महाराणा प्रताप ने भी कुछ समय के लिए इसी किले में शरण ली थी। कुम्भलगढ़ ने मेवाड़ी वीरता की गाथा को सदा जीवित रखा है।

धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत
कुम्भलगढ़ किले के भीतर लगभग 360 मंदिर हैं, जिनमें हिंदू और जैन मंदिरों का समावेश है। इनमें सबसे प्रमुख हैं – नीलकंठ महादेव मंदिर और वेदी मंदिर। नीलकंठ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिसका शिवलिंग एक विशाल शिला के रूप में स्थापित है।इससे यह स्पष्ट होता है कि किला केवल एक सैनिक स्थल नहीं था, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी प्रमुख केंद्र रहा है।

यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल
कुम्भलगढ़ किला वर्ष 2013 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह "राजस्थान के हिल फोर्ट्स" (Hill Forts of Rajasthan) श्रेणी में आता है, जिसमें चित्तौड़गढ़, रणथंभौर, आमेर और जैसलमेर के किलों को भी शामिल किया गया है।

पर्यटन और आधुनिक महत्व
आज कुम्भलगढ़ किला भारत और विदेश से आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। यहां हर साल कुम्भलगढ़ महोत्सव आयोजित किया जाता है जिसमें लोक नृत्य, संगीत, चित्रकला और शिल्पकला का प्रदर्शन होता है। यह महोत्सव राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।इसके अलावा, किले के पास स्थित कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य भी प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां तेंदुआ, भालू, लकड़बग्घा, नीलगाय आदि अनेक वन्य जीव देखे जा सकते हैं।

कुम्भलगढ़ किला न केवल राजस्थान की सैन्य शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह हमारी ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का भी एक अमूल्य हिस्सा है। इसकी दीवारें आज भी वीरता, रणनीति और आत्मसम्मान की कहानियाँ कहती हैं। राणा कुम्भा का यह निर्माण आज भी भारत के गौरवशाली अतीत की झलक देता है, और आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाता है कि कैसे अपने आत्मबल और दूरदृष्टि से एक साम्राज्य को सुरक्षित और समृद्ध बनाया जा सकता है।

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