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UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल कुंभलगढ़ किला विश्वभर में है प्रसिद्ध, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जाने इसके क्यों कहा जाता है 'ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया'

UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल कुंभलगढ़ किला विश्वभर में है प्रसिद्ध, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जाने इसके क्यों कहा जाता है 'ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया'

राजस्थान के राजसमंद जिले में अरावली की पहाड़ियों पर स्थित कुंभलगढ़ किला न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व में अपनी ऐतिहासिक भव्यता और स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। इसे UNESCO विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है और यह किला मेवाड़ की बहादुरी, शौर्य और स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण माना जाता है। 15वीं शताब्दी में महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया यह किला अपने भीतर कई रहस्यमयी और आस्था से जुड़ी कहानियों को समेटे हुए है। आइए जानें कि आखिर क्यों कुंभलगढ़ किला इतना विशेष और विश्वविख्यात है।

36 किलोमीटर लंबी है किले की दीवार – चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे लंबी

कुंभलगढ़ किले की सबसे अद्भुत बात इसकी 36 किलोमीटर लंबी विशाल दीवार है, जिसे भारत की ‘ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है। यह दीवार विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। इतना ही नहीं, इसकी मोटाई इतनी अधिक है कि 8 घोड़े एक साथ इस पर दौड़ सकते हैं। यह दीवार किले को चारों ओर से घेरे हुए है और इसे शत्रुओं से सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाई है।

मेवाड़ की गौरवगाथा का प्रतीक

कुंभलगढ़ किला महाराणा प्रताप की जन्मस्थली के रूप में भी जाना जाता है। यहीं पर 1540 में मेवाड़ के सबसे वीर योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। यही कारण है कि यह किला मेवाड़ के गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार, जब भी मेवाड़ पर संकट आया, यह किला आश्रय स्थल बना और कई राजाओं की शरणस्थली रहा।

दुश्मनों के लिए अभेद्य रहा कुंभलगढ़

इतिहास में कुंभलगढ़ किले को बेहद मजबूत और सुरक्षित माना गया है। इसका निर्माण इतनी चतुराई से किया गया था कि कोई भी आक्रमणकारी इसे आसानी से जीत नहीं सका। मुगलों और दिल्ली सल्तनत की कई कोशिशों के बावजूद यह किला वर्षों तक अपराजेय रहा। यहां की रणनीतिक बनावट और ऊँचाई ने हमेशा आक्रमणकारियों को विफल किया।

आस्था और श्रद्धा का केंद्र

इतिहास के साथ-साथ कुंभलगढ़ किला धार्मिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। किले की सीमा के भीतर लगभग 360 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें जैन और हिन्दू दोनों धर्मों के मंदिर शामिल हैं। इनमें से कई मंदिर हजारों वर्षों पुराने हैं और आज भी श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करते हैं। इन मंदिरों में स्थित देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, नक्काशी और स्थापत्य कला दर्शनीय हैं।

यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा

कुंभलगढ़ किला 2013 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया था। यह राजस्थान के अन्य प्रमुख दुर्गों – चित्तौड़गढ़, रणथंभौर, जैसलमेर, गागरोन, अंबर और झालावाड़ के साथ राजस्थान हिल फोर्ट्स समूह का हिस्सा है। यह दर्जा इस किले की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य महत्ता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाता है।

प्रकृति की गोद में बसा एक अद्भुत दुर्ग

अरावली की पर्वत श्रृंखला में बसा यह किला 1100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जिससे यहाँ से दूर-दूर तक का नजारा दिखाई देता है। आसपास फैला जंगल और हरियाली इसे प्राकृतिक रूप से भी बेहद समृद्ध बनाते हैं। किले के आस-पास स्थित कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य पर्यटकों के लिए एक और आकर्षण का केंद्र है, जहाँ तेंदुआ, भालू, नीलगाय, और अन्य जंगली जीव देखे जा सकते हैं।

पर्यटन और रोशनी से सजता है किला

आज कुंभलगढ़ किला न केवल इतिहासप्रेमियों बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण बना हुआ है। यहां हर साल कुंभलगढ़ महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें लोकनृत्य, संगीत और राजस्थान की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। साथ ही शाम को किले की दीवारों पर की जाने वाली लाइट एंड साउंड शो इसकी भव्यता को और भी अलौकिक बना देते हैं।

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