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Kumbhalgarh Fort History: 36 किलोमीटर लंबी दीवार और 360 मंदिरों से सजा किला, डॉक्यूमेंट्री वीडियो में देखे महाराणा प्रताप की जन्मस्थली का गौरवशाली इतिहास 

Kumbhalgarh Fort History: 36 किलोमीटर लंबी दीवार और 360 मंदिरों से सजा किला, डॉक्यूमेंट्री वीडियो में देखे महाराणा प्रताप की जन्मस्थली का गौरवशाली इतिहास 

राजस्थान का नाम आते ही सबसे पहले ज़हन में आती हैं विशाल हवेलियाँ, ऊँटों की सवारी, रेत के समंदर और वीर राजपूतों की गाथाएँ। इन्हीं में से एक गाथा है कुम्भलगढ़ किले की, जो न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत की शान माना जाता है। इसे “भारत की महान दीवार” भी कहा जाता है क्योंकि इसकी प्राचीर चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। 36 किलोमीटर लंबी यह दीवार और सात विशाल दरवाज़ों से घिरा यह किला, इतिहास में वीरता और रणनीति का अद्भुत उदाहरण है।

किले की स्थापना और निर्माण

कुम्भलगढ़ किले का निर्माण 15वीं शताब्दी में मेवाड़ के महाराणा कुंभा ने करवाया। यही कारण है कि इसका नाम कुम्भलगढ़ पड़ा। महाराणा कुंभा न केवल युद्धनीति के माहिर थे बल्कि वास्तुकला में भी उनकी गहरी रुचि थी। कहा जाता है कि महाराणा कुंभा ने अपने शासनकाल में लगभग 84 किले बनवाए, जिनमें कुम्भलगढ़ सबसे भव्य और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था।किले का निर्माण कार्य 1443 ईस्वी के आसपास शुरू हुआ और इसे पूरा होने में कई साल लगे। वास्तुकार मंदन ने इस किले की डिजाइन बनाई थी। यह किला अरावली की दुर्गम पहाड़ियों में 1100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जिससे यह शत्रुओं की नज़र से सुरक्षित रहता था।

रणनीतिक महत्व

कुम्भलगढ़ का निर्माण केवल एक भव्य निवास स्थान के रूप में नहीं हुआ था, बल्कि यह मेवाड़ की रक्षा का सबसे मज़बूत गढ़ था। इस किले का स्थान ऐसा चुना गया था कि दुश्मनों के लिए यहाँ तक पहुँचना लगभग नामुमकिन हो। अरावली की ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ, घने जंगल और दुर्गम रास्ते इसे स्वाभाविक रूप से सुरक्षित बनाते थे।इतिहास में यह भी दर्ज है कि जब भी मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ पर हमला होता था, राजपरिवार और सेना यहाँ शरण लेती थी। यही कारण है कि कुम्भलगढ़ को "दूसरी राजधानी" भी कहा जाता था।

महाराणा प्रताप का जन्मस्थान

कुम्भलगढ़ किले का नाम आते ही सबसे पहले याद आता है महान योद्धा महाराणा प्रताप। यही वह पावन स्थल है जहाँ 1540 ईस्वी में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। महाराणा प्रताप ने मुग़लों के खिलाफ अपनी वीरता और स्वाभिमान से मेवाड़ का नाम इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कराया। कुम्भलगढ़ आज भी महाराणा प्रताप की जन्मस्थली के रूप में श्रद्धा और गर्व का केंद्र है।

वास्तुकला और संरचना

कुम्भलगढ़ किले की दीवारें 15 फीट चौड़ी हैं और 36 किलोमीटर तक फैली हुई हैं। यह दीवारें इतनी मज़बूत हैं कि इन्हें देखकर आज भी इंजीनियरिंग की दुनिया दंग रह जाती है। कहा जाता है कि इन दीवारों पर एक साथ आठ घोड़े दौड़ सकते हैं।किले में सात विशाल दरवाज़े हैं जिन्हें "पोल" कहा जाता है। इनमें हनुमान पोल, राम पोल और हवा पोल प्रमुख हैं। किले के भीतर लगभग 360 मंदिर बने हुए हैं, जिनमें 300 से अधिक जैन मंदिर और शेष हिंदू मंदिर हैं। यहाँ का महालक्ष्मी मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर और वेदव्यास मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

युद्ध और इतिहास

इतिहास में कई बार कुम्भलगढ़ पर आक्रमण हुए, लेकिन इसे जीतना आसान नहीं था। 15वीं और 16वीं शताब्दी में गुजरात के सुल्तान और मुग़ल सम्राट अकबर ने इस किले को जीतने का प्रयास किया। यहाँ तक कि अकबर ने भी कई महीनों की घेराबंदी के बाद ही इसे हासिल कर पाया।फिर भी कुम्भलगढ़ की दीवारों ने कई बार दुश्मनों को असफल लौटने पर मजबूर किया। इसकी मज़बूत संरचना और प्राकृतिक सुरक्षा ने इसे राजपूत शौर्य का प्रतीक बना दिया।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

कुम्भलगढ़ केवल एक सैन्य किला ही नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था का भी केंद्र रहा है। यहाँ बने जैन और हिंदू मंदिर इस बात का प्रमाण हैं कि यह स्थल धार्मिक सहिष्णुता और संस्कृति का संगम रहा है। हर साल यहाँ कुम्भलगढ़ महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें देश-विदेश से लोग आते हैं। इस दौरान नृत्य, संगीत और लोककला की झलक देखने को मिलती है।

वर्तमान में कुम्भलगढ़

आज कुम्भलगढ़ किला यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल है और पर्यटकों का बड़ा आकर्षण है। यह राजस्थान के राजसमंद ज़िले में स्थित है और उदयपुर से लगभग 85 किलोमीटर दूर है। यहाँ पहुँचने के लिए सड़क मार्ग सबसे सुविधाजनक है।रात में जब इस किले को रोशनी से सजाया जाता है तो इसकी भव्यता और बढ़ जाती है। पर्यटक यहाँ आकर न केवल इतिहास का अनुभव करते हैं बल्कि महाराणा प्रताप और मेवाड़ की वीरता की झलक भी देखते हैं।

कुम्भलगढ़ की ‘ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’

कुम्भलगढ़ की दीवारों को "ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया" कहा जाता है। यह दीवार दुनिया में दूसरी सबसे लंबी मानी जाती है। इसके अंदर बसे छोटे-छोटे महल, बावड़ियाँ, जलाशय और मंदिर इसे एक जीवंत ऐतिहासिक धरोहर बनाते हैं।

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