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राजस्थान में गुलाबी नगरी के नाम से मशहूर है जयपुर शहर,वीडियो में जाने इसकी स्थापना और इतिहास 

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ट्रेवल न्यूज़ डेस्क,,आज भारत के राज्य राजस्थान की राजधानी कहे जाने वाली जयपुर राजधानी के साथ ही अपने संस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्व होने के साथ प्रसिद्ध स्थल और सबसे प्रसिद्ध शहर के रूप में माना जाता है। जयपुर प्रसिद्ध शहर के रूप में होने के साथ राजस्थान का सबसे ज्यादा आय अर्जित करने वाला शहर है। जयपुर राजस्थान का सबसे बड़ा शहर माना जाता  है। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है और इसके साथ ही इसको पिंक सिटी या गुलाबी शहर भी कहा जाता है। जयपुर भारत के त्रिकोण के रूप में भी शामिल किया गया है यह दिल्ली आगरा और जयपुर को मिलाकर त्रिकोणीय गोल्डन सिटी कहा जाता है इसलिए जयपुर को भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल भी कहा जाता है।

यह शहर तीनों ओर से अरावली पर्वत माला से घिरा हुआ है जयपुर शहर की पहचान अपने महलों और पुराने हवेलियाँ और ऐतिहासिक स्मारकों  से की जाती है। जयपुर शहर चारों ओर दीवारों और परकोटा से घिरा हुआ है जिसमें प्रवेश के लिए 7 दरवाजे बनाए गए थे बाद में एक और "न्यूगेट" के नाम से जोड़ा गया। यह पूरा शहर 6 भागों में बटा है और ऐसे 111 फुट चौड़ी सड़कों से विभाजित है। इस शहर के 5 भाग पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिम से गिरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है।

इस शहर को यूनेस्को द्वारा जुलाई 2019 में वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिया गया था।

जयपुर शहर का निर्माण
जयपुर शहर का निर्माण सवाई जयसिंह या जयसिंह द्वितीय ने सन 1727 में करवाई थी। राजा सवाई जयसिंह उस समय आमेर (अम्बेर किले) में रहते थे। यह आमेर जयपुर से 10 किलोमीटर दूर अरावली घाटी व पहाड़ो पर स्थित है और जयपुर भी तीनो ओर से अरावली पर्वतमाला  से घिरा हुआ है। राजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा अपने राज्य की राजधानी आमेर से जयपुर स्थानांतरित करने का कारण था कि वहां पर पानी की कमी और जनसंख्या का बढना। और वह अपने इस शहर में कुछ नए महल और इसको बड़े क्षेत्र में परिवर्तित करना चाहते थे।  इस शहर का निर्माण करानेे के लिए राजा सवाई  जयसिंह द्वितीय ने अपने विद्वानो से इस जगह की तलाश करवाई और यहां पर पंडितों द्वारा सही स्थान का चुनाव किया। और उस समय राजा ने 6 गांव को मिलाकर इस नगर की स्थापना करवाई उस समय यह 6 गांव होते थे नाहरगढ़, तालकटोरा, संतोष सागर, मोती कटला, गलताजी और किशनपोल को मिलाकर बनाया था।

इस शहर का निर्माणकार/वस्तुकार बंगाली विद्याधर भट्टाचार्य नामक था जिसने इस पूरे शहर को एक नक्शे के रूप में परिवर्तित करके व ज्यामिति रूप के साथ और एक-एक इंच का ध्यान रखकर इस शहर का निर्माण किया। इस शहर को बसाते हुए विशेष ध्यान सड़कों और विभिन्न रास्तों की चौड़ाई पर रखा गया।

राजा द्वारा इस शहर का निर्माण नौ खंडों में करवाया गया था जिसमें से 2 खंड में राजमहल, रानी निवास, जंतर मंतर, गोविंद देव जी का मंदिर आदि और शेष सात खंड में जनसाधारण के मकानों, दुकानों और कारखाने के लिए निर्धारित किए गए थे।

इस शहर के चारों और दीवारों और पर्वतों से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए 7 दरवाजे बनाए थे और बाद में एक और बनाया गया जिसे "न्यू गेट" के नाम स कहलाया गया।

इस शहर जयपुर में राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने हवेलियाँ,  महलों, किलो, कारखानों, रानीनिवास, मंदिर, तोपखाने आदि के साथ नगर व प्रवेश द्वार बनवाए थे। वर्तमान में यह सब यहां के पर्यटन स्थल है और आज के समय में जयपुर में काफी कुछ बदल गया है।

जयपुर का इतिहास
अगर युग के हिसाब से देखा जाए तो जयपुर का इतिहास काफी पुराना नहीं है । इस शहर का मध्य काल के अंत में निर्माण किया गया है।लेकिन इसकी स्थापना करने वाला शासक का वंश कई शताब्दी पुराना माना जाता है। ऐसा माना जाता है कांचवाडा परिवार  परिवार के ग्वालियर से यहां आकर बसे थे जो अपने आप को भगवान श्री राम के पुत्र उसकी संतान मानते थे। इस वंश का संस्थापक दुलहराय(तेजकरण) था, जो 1137 इसवी में बड़गुर्जरों को हराकर नवीन दूंढाड़ राज्य की स्थापना की। सन 1207 में इसी वंश के कोकीलदेव ने मीणाओं से आमेर जीतकर अपनी राजधानी बनाया और तब से 17 शताब्दी तक आमेर राजधानी थी। 18 वीं शताब्दी के शुरुआत में इसी वंश के शासक जयसिंह द्वितीय या सवाई जयसिंह ने जयपुर नगर की स्थापना करके और आमेर से जयपुर नई राजधानी बनाई थी और यहां पर कई महलों और वेधशाला  का निर्माण कराया।

जयपुर की स्थापना से लेकर वर्तमान तक जयपुर के शासक 
जयपुर मेंं वैसे तो कई शासको ने शासन किया लेकिन जयपुर की स्थापना से वर्तमान तक के कुछ शासक है जिन्होने जयपुर मे शासन किया और अपने शासन के समय जयपुर में बदलाव किया है। जयपुर के स्थापना से लेकर वर्तमान तक के शासन है:-

1. सवाई जय सिंह या जय सिंह द्वितीय
जब जयपुर की स्थापना हुई उस समय जयपुर का राजा सवाई जय सिहं ही था और इन्होने ही जयपुर की 1727 में स्थापना की थी। इनका वास्तविक नाम विजयसिंंह था। लेकिन बादशाह औरेंगजेब इनकी तुलना जयसिंह प्रथम से की और इनका नाम विजयसिंह से सवाई जयसिंह की उपाधि दी। इन्होने मुग्ल सेना की तरफ से मराठो के खिलाफ युध्द लडा था।

यह संस्कृत, फारसी, गणित एव ज्योतिष का प्रकाण्ड विद्वान थे और इन्हे ज्योतिष शासक भी कहा जाता है।  इन्होने ही दिल्ली, जयपुर,उज्जेन, मथुरा, और बनारस में जंतर मंतर(वैधशाल) का निर्माण करवाया। वेधशाल के साथ के साथ ही इन्होने नाहरगढ़ दुर्ग व जयनिवास महल का निर्माण करवाया।ऐसा कहा जाता है कि जय सिंह द्वितीय अंतिम मुगल हिंदु शासक थे जिसने अश्वमेग़घ यज्ञ का अयोजन करवाया। इस यज्ञ के पुरोहित पुण्डरीक रत्नाकार थे। 

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