भारत का अनोखा शिव मंदिर जहां माता पार्वती की गोद में लेटे हैं भगवान शिव!
भारत, मंदिरों और धार्मिक स्थलों की भूमि है। यहां हर मंदिर की अपनी विशेषता होती है, चाहे वह स्थापत्य कला हो या भगवान की मूर्ति की स्थापना। आमतौर पर शिव मंदिरों में भगवान शिव शिवलिंग रूप में पूजे जाते हैं और कहीं-कहीं प्रतिमा भी होती है, लेकिन वे हमेशा खड़े या ध्यान मुद्रा में नजर आते हैं। मगर क्या आपने कभी ऐसा शिव मंदिर देखा है जहां भगवान शिव विष्णु जी की तरह विश्राम की मुद्रा में हों, और माता पार्वती उनके पास बैठी हों? अगर नहीं, तो आपको आंध्र प्रदेश के सुरुट्टापल्ली स्थित श्री पल्लीकोंडेश्वर स्वामी मंदिर के बारे में जरूर जानना चाहिए।
शिव जी की अनोखी मुद्रा: आनंद शयनम
इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां भगवान शिव "आनंद शयनम" मुद्रा में विराजमान हैं, यानी वे लेटे हुए हैं, जैसे आमतौर पर भगवान विष्णु शेषनाग पर लेटे दिखते हैं। यहां शिव जी की प्रतिमा एकदम मानवीय रूप में है, जो उनके शांत और विश्रामशील स्वरूप को दर्शाती है। माता पार्वती उनके पास बैठी हैं और उनका सिर अपनी गोद में रखा हुआ है। यह दृश्य बेहद दुर्लभ है और आपको दुनिया के किसी और शिव मंदिर में ऐसा स्वरूप देखने को नहीं मिलेगा।
मंदिर का इतिहास और महत्व
श्री पल्लिकोंडेश्वर मंदिर आंध्र प्रदेश के सुरुट्टापल्ली गांव में स्थित है। यह मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना हुआ है और इसका राजगोपुरम (मुख्य द्वार) पांच मंजिला है। मंदिर की बनावट पारंपरिक है, लेकिन इसकी ऊर्जा और आध्यात्मिक महत्ता इसे अलग बनाती है। मंदिर में शिव जी को पल्लिकोंडेश्वरर नाम से पूजा जाता है, वहीं माता पार्वती मरगथांबिगै के नाम से प्रतिष्ठित हैं। इस मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के सम्राट विद्यारण्य द्वारा करवाया गया था। समय के साथ मंदिर थोड़ी उपेक्षा का शिकार हुआ, लेकिन हाल ही में इसे फिर से भव्य रूप में संवारा गया है।
सुरुट्टापल्ली नाम की उत्पत्ति
माना जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने कालकूट विष पिया था, तब उनकी तबीयत खराब हो गई थी। उस अवस्था में वे विश्राम करने के लिए एक स्थान पर लेट गए थे। माता पार्वती ने उनका सिर अपनी गोद में रख लिया था और उन्हें सहारा दिया। इसी घटना की स्मृति में इस स्थान का नाम पड़ा – सुरुट्टापल्ली। यह नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – "सुरुट्टा" यानी हल्की चक्कर या थकावट और "पल्ली" यानी लेटना या विश्राम करना। यही कारण है कि इस स्थान को अत्यंत पवित्र माना जाता है और यह मंदिर भक्तों के लिए विशेष श्रद्धा का केंद्र है।
प्रदोष पूजा की शुरुआत यहीं से
प्रदोष व्रत भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, और इसकी शुरुआत इसी मंदिर से मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त शनिवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत पर पल्लिकोंडेश्वर भगवान की सच्चे मन से पूजा करते हैं, उनकी सभी बाधाएं दूर होती हैं। कहा जाता है कि इस पूजा से नौकरी में प्रमोशन, विवाह की अड़चनें, और पारिवारिक समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
मंदिर दर्शन का समय और पहुंच
दर्शन समय:
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सुबह: 6:00 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक
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शाम: 4:00 बजे से रात 8:00 बजे तक
कैसे पहुंचें:
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सड़क मार्ग: उत्तुकोट्टई बस स्टैंड से मंदिर केवल 2 किलोमीटर दूर है।
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रेल मार्ग: तिरुवल्लूर रेलवे स्टेशन से लगभग 29 किलोमीटर की दूरी पर।
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हवाई मार्ग: तिरुपति इंटरनेशनल एयरपोर्ट सबसे नजदीक है, जो मंदिर से करीब 73 किलोमीटर दूर स्थित है।

