कुछ मिनटों के इस शानदार वीडियो में करे Govind Dev Ji की वर्चुअल सैर, देखे मन्दिर में क्या है खास जो लाखों भक्तों को खींच लाता है बार-बार
राजस्थान की राजधानी जयपुर ऐतिहासिक किलों, महलों और राजसी विरासत के लिए जानी जाती है, लेकिन इसके हृदय में बसा हुआ है एक ऐसा मंदिर, जो न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अद्वितीय है। हम बात कर रहे हैं गोविंद देव जी मंदिर की, जो जयपुर के सिटी पैलेस परिसर में स्थित है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है और यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
गोविंद देव जी मंदिर का इतिहास: वृंदावन से जयपुर तक की यात्रा
गोविंद देव जी मंदिर का इतिहास 500 वर्ष से भी अधिक पुराना है। मान्यता है कि यह भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति स्वयं ब्रह्मा द्वारा स्थापित की गई थी, जिसे बाद में भगवान चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों ने वृंदावन में प्रतिष्ठित किया था। जब मुग़ल आक्रांताओं द्वारा मंदिरों को नष्ट किया जाने लगा, तब जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने इस विग्रह को वृंदावन से जयपुर लाकर सिटी पैलेस परिसर में गोविंद देव जी मंदिर में स्थापित किया।यह मूर्ति खास इसलिए मानी जाती है क्योंकि कहा जाता है कि यह श्रीकृष्ण के साक्षात स्वरूप के सबसे निकटतम है, जैसा रूप राधारानी ने देखा था।
मंदिर की वास्तुकला: राजस्थानी और मुगल शैली का अद्भुत संगम
गोविंद देव जी मंदिर की वास्तुकला भी उतनी ही भव्य है जितनी इसकी आस्था। मंदिर का निर्माण राजस्थानी और मुगल शैली का अनूठा मिश्रण है। लाल बलुआ पत्थर से बना यह मंदिर अपने विशाल प्रांगण, उंचे स्तंभों और झरोखों से सुसज्जित है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही एक अलौकिक दिव्यता का अनुभव होता है।मंदिर का गर्भगृह, जहां भगवान गोविंद देव जी की प्रतिमा विराजित है, सोने-चांदी के अलंकरणों से सुशोभित है। दीवारों पर सुंदर चित्र और भित्ति-कलाएं राधा-कृष्ण की लीलाओं को जीवंत कर देती हैं।
गोविंद देव जी मंदिर के अंदर क्या है खास?
1. भगवान गोविंद देव जी की सजीव मूर्ति:
यहां विराजमान भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को "सजीव मूर्ति" माना जाता है। भक्तों का विश्वास है कि भगवान यहां साक्षात रूप में निवास करते हैं। उनकी आँखें इतनी गहरी और जीवंत लगती हैं कि ऐसा लगता है जैसे वे सीधे अपने भक्तों को निहार रहे हों।
2. दिन में सात बार दर्शन (झांकी):
मंदिर में दिनभर में सात बार अलग-अलग समय पर दर्शन (झांकी) होते हैं, जिनमें भगवान को अलग-अलग वस्त्रों और भोगों के साथ सजाया जाता है। हर झांकी का अपना एक विशेष महत्व होता है – मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्तपन, भोग और शयन झांकी।
3. प्रसाद और भोग:
प्रत्येक झांकी के समय विशेष भोग प्रसाद अर्पित किया जाता है, जिसे बाद में भक्तों में वितरित किया जाता है। यह प्रसाद ना केवल स्वाद में दिव्य होता है बल्कि श्रद्धा से भरपूर भी।
4. हर दिन विशेष भक्ति संगीत और कीर्तन:
मंदिर में प्रतिदिन भजन, कीर्तन और संकीर्तन का आयोजन होता है। खासकर सुबह और शाम को होने वाले मृदंग और मंजीरे की संगत में गाए गए भजन, श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं।
5. विराट जनसमूह और अनुशासन:
दर्शन के समय मंदिर में एक साथ हजारों श्रद्धालु होते हैं, लेकिन फिर भी वहाँ अनुशासन और श्रद्धा का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है। मंदिर के सेवक पूरी श्रद्धा और अनुशासन के साथ दर्शन और झांकियों का संचालन करते हैं।
त्योहारों में मंदिर का दिव्य रूप
जन्माष्टमी, गोपाष्टमी, राधाष्टमी, होली, और फाग महोत्सव जैसे पर्वों के समय मंदिर का वातावरण अलौकिक हो जाता है। विशेष झांकियां, फूलों की सजावट, रासलीलाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम पूरे वातावरण को ब्रज की गलियों जैसा बना देते हैं। जन्माष्टमी पर तो रातभर हजारों भक्त मंदिर में उपस्थित रहते हैं और भगवान के नंदोत्सव में शामिल होते हैं।
मंदिर से जुड़ी आस्थाएं और लोक मान्यताएं
भक्तों की मान्यता है कि गोविंद देव जी की सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। कई श्रद्धालु यहां अपनी संकटों से मुक्ति, संतान सुख, विवाह के योग और नौकरी-व्यवसाय में सफलता के लिए नियमित पूजा करते हैं। मंगलवार और शुक्रवार को विशेष भीड़ देखी जाती है।
तकनीक और परंपरा का संगम
आज के डिजिटल युग में मंदिर ऑनलाइन दर्शन और लाइव झांकी प्रसारण जैसी सुविधाएं भी देता है, जिससे देश-विदेश में बसे श्रद्धालु भी गोविंद देव जी के दर्शन का लाभ ले सकते हैं। यह परंपरा और तकनीक का सुंदर मिलन है।

