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इस डॉक्यूमेंट्री में देखे रणथंभौर की रानी ‘मछली’ की अनसुनी कहानी, 19 साल तक जंगल पर कायम रखा अपना राज 

इस डॉक्यूमेंट्री में देखे रणथंभौर की रानी ‘मछली’ की अनसुनी कहानी, 19 साल तक जंगल पर कायम रखा अपना राज 

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथंभौर टाइगर रिजर्व (Ranthambhore Tiger Reserve) सिर्फ एक टाइगर रिजर्व नहीं, बल्कि वन्यजीवन प्रेमियों के लिए एक भावनात्मक स्थल भी है। इसकी पहचान को वैश्विक स्तर पर मजबूत बनाने में एक बाघिन का विशेष योगदान रहा – नाम था ‘मछली’। मछली केवल एक बाघिन नहीं थी, बल्कि वह रणथंभौर की रानी, भारत की सबसे ज्यादा फोटो खींची गई टाइगर और वाइल्डलाइफ टूरिज्म की पोस्टर गर्ल बन गई थी।


मछली: नाम कैसे पड़ा?
मछली का जन्म 1997 में हुआ था। उसकी आंखों के पास बनी विशेष मछली जैसी सफेद आकृति की वजह से उसे यह नाम मिला। उसका असली कोड था T-16, लेकिन लोगों की जुबान पर वह 'मछली' के नाम से ही मशहूर रही। उसकी सुंदरता, अनोखी बनावट और जंगल में उसकी शानदारी चाल ने उसे आम बाघिनों से बिल्कुल अलग बना दिया।

जंगल की रानी और एक समर्पित मां
मछली को रणथंभौर की रानी इसलिए कहा गया क्योंकि उसने न केवल इस क्षेत्र पर वर्षों तक राज किया, बल्कि इस रिजर्व में टाइगर पॉपुलेशन बढ़ाने में भी बड़ा योगदान दिया। उसने 11 शावकों को जन्म दिया और उनमें से कई शावक आज रणथंभौर समेत भारत के अन्य टाइगर रिजर्व्स में शान से घूम रहे हैं।उसकी बेटियां सुंदर, सतारा और उन्नीस रणथंभौर के जंगलों में मछली की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। खास बात यह रही कि मछली ने अपने शावकों को खुद शिकार करना सिखाया और जब वे बड़े हुए तो उन्हें अपने इलाके सौंप दिए।

बहादुरी की मिसाल
मछली की सबसे चर्चित कहानी तब सामने आई जब उसने शिकारियों से अपने शावकों को बचाने के लिए अकेले मोर्चा लिया। एक बार तो उसने मादा मगरमच्छ से भी भिड़ंत की थी। उस घटना की तस्वीरें और वीडियो दुनियाभर में वायरल हुए। उसके इसी जुझारू स्वभाव ने उसे सिर्फ एक बाघिन नहीं, बल्कि रणथंभौर की जीवित किंवदंती बना दिया।

टाइगर टूरिज्म की ब्रांड एंबेसडर
मछली ने वन्य पर्यटन में भी बड़ा योगदान दिया। वह पर्यटकों को डरती नहीं थी, इसीलिए वह अक्सर कैमरे में कैद होती रही। यही वजह है कि मछली को दुनिया की सबसे ज्यादा फोटोग्राफ की गई टाइगर कहा जाता है। National Geographic, BBC, Discovery जैसे कई अंतरराष्ट्रीय चैनलों ने उस पर डॉक्यूमेंट्रीज़ बनाई हैं।एक अनुमान के मुताबिक, रणथंभौर में जितने भी पर्यटक आते थे, उनमें से 70% केवल मछली को देखने के लिए आते थे। उसकी मौजूदगी ने न सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा दिया बल्कि स्थानीय लोगों की आजीविका को भी मजबूत किया।

बुढ़ापे की गरिमा
मछली ने लगभग 19 साल तक रणथंभौर के जंगलों पर राज किया। सामान्यत: टाइगर की औसत आयु 12–14 वर्ष मानी जाती है, लेकिन मछली 19 वर्ष तक जीवित रही। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड था। अंतिम दिनों में मछली के दांत घिस चुके थे, आंखों की रोशनी कमजोर हो चुकी थी, लेकिन उसकी शान में कोई कमी नहीं थी।

2016 में हुआ अंतिम विदा
18 अगस्त 2016 को मछली ने रणथंभौर के जंगल में अंतिम सांस ली। उसकी मौत पर न केवल स्थानीय लोग, बल्कि दुनियाभर के वन्यजीव प्रेमी शोक में डूब गए। कई लोगों ने उसे एक रानी की तरह विदाई दी। वन विभाग ने भी उसे सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई दी।

मछली की विरासत
आज भी रणथंभौर में मछली के नाम पर कई सफारी मार्ग बनाए गए हैं। उसकी बेटियां और पोते-पोतियां उसी जंगल में घूम रहे हैं। फॉरेस्ट गाइड्स आज भी पर्यटकों को उसकी कहानियां सुनाते हैं। मछली ने न केवल वन्य जीवन को लोकप्रिय बनाया, बल्कि यह सिखाया कि हर जानवर की भी एक कहानी होती है, जिसे जानना और समझना जरूरी है।

मछली सिर्फ एक बाघिन नहीं थी, बल्कि वह एक युग थी। उसकी जिंदगी ने यह साबित कर दिया कि वन्य जीव भी इतिहास रच सकते हैं। आज जब हम रणथंभौर के जंगलों में बाघ की दहाड़ सुनते हैं, तो लगता है कि कहीं न कहीं, वह मछली की ही गूंज है।अगर आप चाहें तो इस आर्टिकल के लिए AI-Generated मछली की तस्वीर, या एक शेरनी के जीवनचक्र पर आधारित विजुअल रिपोर्ट भी तैयार की जा सकती है।

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