Samachar Nama
×

3 मिनट के इस वीडियो मी करे पुष्कर स्थित सावित्री माता मंदिर के दर्शन, जानिए यहां क्यों जाने से डरते है शादीशुदा पुरुष ?

3 मिनट के इस वीडियो मी करे पुष्कर स्थित सावित्री माता मंदिर के दर्शन, जानिए यहां क्यों जाने से डरते है शादीशुदा पुरुष ?

राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित पुष्कर, तीर्थयात्रियों और पर्यटकों दोनों के लिए एक पवित्र और आकर्षक स्थान है। जहां एक ओर यह स्थान विश्व के एकमात्र ब्रह्मा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, वहीं पुष्कर की पहाड़ियों पर स्थित सावित्री माता का मंदिर भी विशेष आध्यात्मिक और धार्मिक महत्त्व रखता है।हालांकि यह मंदिर श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इससे जुड़ी एक मान्यता के कारण कई शादीशुदा पुरुष यहां जाने से कतराते हैं। लोग कहते हैं कि अगर विवाहित पुरुष सावित्री माता के दर्शन कर लेते हैं, तो उनकी विवाहिक जीवन में तनाव या अलगाव की आशंका बढ़ जाती है।अब सवाल ये उठता है कि आखिर इस मंदिर से जुड़ी ऐसी मान्यता की जड़ क्या है? क्या यह केवल एक लोककथा है, या इसके पीछे कोई ऐतिहासिक या पौराणिक आधार भी है?


सावित्री माता मंदिर: एक संक्षिप्त परिचय
सावित्री माता का मंदिर पुष्कर झील के पश्चिम में रत्नगिरि पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। लगभग 200 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर तक पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को क़रीब 700 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। हालाँकि अब रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है, लेकिन अधिकांश श्रद्धालु सीढ़ियों के माध्यम से ही माता के दर्शन करने का संकल्प लेते हैं।इस मंदिर में ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री देवी की मूर्ति स्थापित है, जो भारतीय संस्कृति में सतीत्व, आत्म-सम्मान और नारी शक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं। मंदिर से पुष्कर झील, पूरा नगर और चारों ओर की अरावली पहाड़ियाँ अत्यंत सुंदर दिखाई देती हैं।

पौराणिक कथा: ब्रह्मा, सावित्री और गायत्री की कहानी
इस मान्यता के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।कहा जाता है कि ब्रह्मा जी को एक यज्ञ करना था, जिसके लिए उनके साथ उनकी पत्नी सावित्री को उपस्थित होना था। लेकिन जब समय पर सावित्री नहीं पहुँचीं, तो यज्ञ का समय निकलता देख ब्रह्मा जी ने दूसरी कन्या गायत्री से विवाह कर लिया और यज्ञ सम्पन्न किया।जब सावित्री देवी को यह बात पता चली तो उन्होंने क्रोधित होकर ब्रह्मा जी को शाप दे दिया कि दुनिया में उनकी पूजा कहीं नहीं होगी। इसी शाप के कारण आज ब्रह्मा जी का केवल एक ही मंदिर है — पुष्कर में।कहा जाता है कि सावित्री देवी ने अपने पति की इस दूसरी शादी को कभी स्वीकार नहीं किया, और इस कारण से उन्होंने रत्नगिरि पर्वत पर तपस्या की और वहीं उनका मंदिर स्थापित हुआ।

क्यों कतराते हैं शादीशुदा पुरुष?
यह मान्यता रही है कि सावित्री माता पति की बेवफाई से आहत थीं, और इस कारण उनका आशीर्वाद स्त्रियों और कुंवारी कन्याओं को जल्दी मिलता है, जबकि विवाहित पुरुषों को उनका क्रोध झेलना पड़ सकता है।लोक विश्वास है कि यदि शादीशुदा पुरुष सावित्री माता के दर्शन करते हैं, तो उनके वैवाहिक जीवन में तनाव, आपसी मनमुटाव या कभी-कभी अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।इस मान्यता के कारण कई विवाहित पुरुष या तो मंदिर नहीं जाते, या अगर जाते भी हैं तो मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने के बजाय नीचे से ही प्रणाम करके लौट आते हैं। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि माता का यह रूप 'पलटवार' की शक्ति का प्रतीक है, और यह पुरुषों को उनके कर्मों का आईना दिखाता है।

क्या है इस विश्वास के पीछे का मनोविज्ञान?
अगर हम इस मान्यता को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह स्त्री अधिकारों और आत्म-सम्मान की एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। सावित्री देवी की कथा उस नारी शक्ति की याद दिलाती है जो अन्याय के खिलाफ खड़ी होती है, और अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए संसार को भी चुनौती दे सकती है।संभवतः इस कथा को लेकर यह मान्यता इसलिए बनी कि विवाहित पुरुष अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में सावधानी बरतें, और अपनी पत्नी के साथ वफादार रहें। इस कहानी के जरिए समाज ने एक अप्रत्यक्ष संदेश देने की कोशिश की — "पत्नी का सम्मान करो, नहीं तो उसका श्राप भी तुम्हारे लिए भारी पड़ सकता है।"

आज के युग में इस मान्यता की प्रासंगिकता
आज की पीढ़ी में बहुत से लोग इस मान्यता को आस्था और परंपरा का हिस्सा मानते हैं, लेकिन अंधविश्वास नहीं मानते। अब कई विवाहित पुरुष सावित्री माता के मंदिर दर्शन करने जाते हैं और कहते हैं कि वहां उन्हें मानसिक शांति और आत्मबल मिलता है।कुछ दंपत्ति साथ में जाकर माता का आशीर्वाद भी लेते हैं और मानते हैं कि माता उन्हें आपसी समझ और प्रेम का आशीर्वाद देती हैं।

सावित्री माता का मंदिर एक आस्था और नारी शक्ति का प्रतीक स्थल है। यहां से जुड़ी मान्यताएं चाहे कितनी ही प्राचीन हों, उनका उद्देश्य जीवन में संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और संबंधों में सम्मान को बढ़ावा देना है।इसलिए अगर आप पुष्कर जा रहे हैं, तो सावित्री माता के मंदिर तक जरूर जाएं — चाहे आप पुरुष हों या स्त्री। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि आपको आंतरिक संतुलन, शक्ति और संकल्प का अनुभव भी कराता है।

Share this story

Tags