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वीडियो में देख बीहड़ों की रानी कही जाने वाली चंबल का पवित्र उद्गम स्थल, जाने क्यों मानी जारी है भारत की सबसे साफ नदी

वीडियो में देख बीहड़ों की रानी कही जाने वाली चंबल का पवित्र उद्गम स्थल, जाने क्यों मानी जारी है भारत की सबसे साफ नदी

भारत की प्रमुख नदियों में से एक चंबल नदी न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके इतिहास, पर्यावरणीय स्वरूप और संस्कृति में भी विशेष स्थान है। यह नदी अपनी साफ-सुथरी धारा, बीहड़ घाटियों और दुर्लभ जैव विविधता के लिए जानी जाती है। आइए विस्तार से जानें चंबल नदी के उद्गम स्थान, इसकी सहायक नदियाँ और इससे जुड़ी कुछ खास विशेषताएँ।


चंबल नदी का उद्गम: पवित्रता की शुरुआत
चंबल नदी का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश के मऊ ज़िला (पुराना नाम मुरैना) के जनपद इंदौर के पास जानापाव की पहाड़ियों से होता है, जो विंध्याचल पर्वतमाला का हिस्सा हैं। यह स्थल समुद्र तल से लगभग 854 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। कुछ स्थानों पर जानापाव को भगवान परशुराम का जन्मस्थान भी माना गया है, जिससे इस क्षेत्र को धार्मिक महत्त्व भी प्राप्त है।नदी का उद्गम स्थल अत्यंत शांत, हरित और सुरम्य है। यहाँ से निकलने के बाद चंबल नदी उत्तर-पूर्व की ओर बहती हुई राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों से होकर गुजरती है और अंत में यमुना नदी में मिल जाती है। यमुना से मिलने की प्रक्रिया इसे गंगा नदी प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है।

चंबल की प्रमुख सहायक नदियाँ
चंबल नदी की कई सहायक नदियाँ हैं, जो इसकी जलधारा को पोषित करती हैं और इसे एक मजबूत नदी प्रणाली में परिवर्तित करती हैं। इनमें प्रमुख हैं:
बानास नदी – यह चंबल की सबसे प्रमुख सहायक नदी है जो राजस्थान से निकलती है और दक्षिण-पूर्व की ओर बहती है।
कालीसिंध नदी – यह मध्य प्रदेश के उज्जैन क्षेत्र से निकलकर चंबल में मिलती है।
शिवना नदी – उज्जैन संभाग से होकर बहती हुई यह नदी चंबल की सहायक है।
परवन नदी – राजस्थान से निकलकर यह नदी भी चंबल से मिलती है।
कोंच नदी – यह अपेक्षाकृत छोटी लेकिन स्थानीय रूप से महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है।
छापी नदी, कुंवारी नदी, और सीप नदी जैसी कई अन्य छोटी-छोटी सहायक नदियाँ भी हैं जो वर्षा ऋतु में चंबल को जल से भरपूर करती हैं।
इन सभी सहायक नदियों की अपनी-अपनी उपनदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र हैं, जो चंबल को एक समृद्ध नदी प्रणाली बनाते हैं।

चंबल की खासियतें: एक नदी जो अलग है सबसे
1. प्रदूषण रहित नदी

चंबल नदी को भारत की सबसे साफ नदियों में से एक माना जाता है। जबकि गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियाँ प्रदूषण की मार झेल रही हैं, चंबल अपेक्षाकृत शुद्ध बनी हुई है। इसका प्रमुख कारण यह है कि चंबल नदी के किनारे अधिक आबादी नहीं है और यहाँ औद्योगिक विकास भी सीमित है। इससे इसका जल प्राकृतिक रूप से स्वच्छ रहता है।

2. बीहड़ों की नदी
चंबल नदी का सबसे खास भौगोलिक पहलू इसके बीहड़ (Ravines) हैं। ये बीहड़ नदी के erosion (क्षरण) के कारण बने हैं और आज ये क्षेत्र एक अनोखी पारिस्थितिकी का निर्माण करते हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर फैले इन बीहड़ों में पहले कुख्यात डकैतों का दबदबा था, लेकिन अब यह इलाका पर्यटन और जैव विविधता के लिए जाना जाता है।

3. वन्य जीवन और जैव विविधता
चंबल नदी घड़ियाल (Gharial) और डॉल्फिन की दुर्लभ प्रजातियों का प्राकृतिक आवास है। यहाँ नेशनल चंबल सैंक्चुरी स्थित है, जो मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फैली हुई है। यह अभयारण्य घड़ियालों, मगरमच्छों, कछुओं और नदी डॉल्फिन जैसी विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण का कार्य करता है। इसके अलावा यह क्षेत्र कई प्रवासी पक्षियों का भी ठिकाना है।

4. पर्यटन और फिल्मांकन की पसंदीदा जगह
चंबल घाटी अपने बीहड़ और अनोखे प्राकृतिक दृश्य के कारण बॉलीवुड की कई फिल्मों की शूटिंग का केंद्र रही है। 'पान सिंह तोमर', 'बैंडिट क्वीन' जैसी चर्चित फिल्में यहीं की पृष्ठभूमि पर आधारित हैं। अब यह क्षेत्र रोमांचक पर्यटन, बोटिंग, ट्रैकिंग और फोटो-सफारी के लिए लोकप्रिय हो रहा है।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व
चंबल नदी और इसका आस-पास का क्षेत्र भारत के प्राचीन महाकाव्यों और लोक कथाओं में भी स्थान रखता है। कहा जाता है कि चंबल का मूल नाम “चर्मवती” था, और यह वह नदी है जिसे पांडवों के काल में शापित माना गया था क्योंकि इसके किनारे अधर्मपूर्वक बलि दी गई थी। हालांकि, ये कथाएँ सांस्कृतिक विश्वासों पर आधारित हैं, लेकिन यह नदी सदियों से भारत की सभ्यता का साक्षी रही है।

चंबल नदी केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास, प्राकृतिक विविधता, और पर्यावरणीय संतुलन का प्रतीक है। इसकी साफ-सुथरी जलधारा, अनछुए बीहड़, और दुर्लभ वन्य जीवन इसे भारत की सबसे खास नदियों में शामिल करते हैं। आज जबकि देश की कई नदियाँ प्रदूषण की मार झेल रही हैं, चंबल एक उदाहरण है कि प्रकृति को अगर उसका स्पेस दिया जाए, तो वह अपने शुद्ध रूप में सदैव बहती रहती है। ऐसे में ज़रूरत है चंबल जैसी नदियों के संरक्षण की ताकि भावी पीढ़ियाँ भी इसका सौंदर्य और महत्व समझ सकें।

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