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वीडियो में जाने बीसलपुर बांध के पास स्थित रहस्यमयी शिव मंदिर, जहां रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की थी घोर तपस्या

वीडियो में जाने बीसलपुर बांध के पास स्थित रहस्यमयी शिव मंदिर, जहां रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की थी घोर तपस्या

टोंक जिले में बनास नदी के त्रिवेणी संगम बीसलपुर बांध पर स्थित गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जिसमें धरती से निकला 40 फीट लंबा शिवलिंग मौजूद है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अरावली पर्वत श्रृंखला की गुफा में स्थित इस मंदिर में भगवान शिव के सबसे बड़े तपस्वी भक्त दशानन रावण ने यहां घोर तपस्या की थी। यह मंदिर त्रिवेणी संगम पर मौजूद है और पुराणों में ऐसी मान्यता है कि जहां तीन नदियां मिलती हैं, वह स्थान स्वतः ही तीर्थ बन जाता है। ऐसे में इस प्राचीन शिव मंदिर में सालभर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती रहती है। लेकिन खास तौर पर सावन के महीने में इस प्राचीन मंदिर में पूजा-अर्चना, शिव अभिषेक और कांवड़ यात्राओं का दौर जारी रहता है। मंदिर से जुड़ी मान्यताएं, लोगों की आस्था अभिभूत कर देती है। 


स्वयंभू शिवलिंग पर हैं गोकर्ण के निशान

हिंदू मान्यताओं के अनुसार सावन माह का विशेष महत्व है और यह शिव भक्तों का महीना है जिसमें पूजा-अर्चना, शिव अभिषेक और कांवड़ यात्राओं का दौर चलता रहता है। यह मंदिर खास तौर पर बीसलपुर बांध के पास बनास नदी के तट पर स्थित होने के कारण प्रसिद्ध है और बीसलपुर गांव में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव के गोकर्णेश्वर स्वरूप को समर्पित है। मंदिर में मौजूद स्वयंभू शिवलिंग पर गोकर्ण के निशान मौजूद हैं।

मंदिर में मौजूद शिवलिंग
इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चौहान वंश के विग्रहराज चौहान (विग्रहराज चतुर्थ) ने करवाया था। जिन्हें बीसलदेव के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भारत में 12 ज्योतिर्लिंग और 108 उप ज्योतिर्लिंग हैं, गोकर्णेश्वर महादेव का मंदिर उनमें से एक है। मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कई वर्षों तक तपस्या की थी।

स्वयंभू शिवलिंग है गोकर्णेश्वर महादेव शिवलिंग
बीसलपुर में गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर की गुफा में नदी तल से करीब 40 फीट की ऊंचाई पर स्थित गोकर्ण के निशान वाला यह प्राचीन शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है जिसे किसी ने स्थापित नहीं किया था बल्कि यह स्वयं स्थापित हुआ था।

कैसे पड़ा गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर का नाम
गोमाता को 36 करोड़ देवी-देवताओं का निवास माना जाता है और गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर में मौजूद स्वयंभू शिवलिंग का नाम महात्मा गौकर्ण के नाम पर गौकर्णेश्वर महादेव रखा गया और इस स्थान को गौकर्णेश्वर महादेव कहा गया। महात्मा गौकर्ण ने मोक्ष प्राप्ति के लिए अपने भाई धुंधकारी को यहां एक सप्ताह तक श्रीमद्भागवत का श्रवण कराया था।

मंदिर से जुड़ी किंवदंतियों के अनुसार रावण को वरदान प्राप्त था
गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार जब रावण ने यहां घोर तपस्या की थी, तब भगवान शिव ने स्वयं रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर रावण को आत्म लिंग के रूप में यह शिवलिंग प्रदान किया था। इसके अलावा उन्होंने वरदान दिया था कि जहां भी यह शिवलिंग रखा जाएगा, वहीं स्थापित हो जाएगा।

ऐसे में रावण यहां से लंका के लिए प्रस्थान करने लगा। इसी बीच देवताओं को यह चिंता सताने लगी कि अगर रावण ने लंका में शिवलिंग की स्थापना कर दी, तो रावण अमर हो जाएगा और उसे हराना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में देवताओं ने दैवीय शक्ति की मदद से रावण को पेशाब करने पर मजबूर किया और जैसे ही रावण ने यहां नदी किनारे शिवलिंग रखा, यह शिवलिंग यहां स्थापित हो गया। पर्यटन महत्व के इस प्राचीन मंदिर के पास बीसलपुर बांध होने के कारण यहां साल भर पर्यटक आते रहते हैं। लेकिन सावन का महीना इस प्राचीन शिव मंदिर के लिए खास होता है। जब शिव भक्त यहां से कांवड़ यात्रा निकालते हैं और मंदिर में शिव अभिषेक और अनुष्ठानों का दौर चलता रहता है।

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