भारत की सबसे बड़ी नहर कैसे बनी ? 3 मिनट की डॉक्यूमेंट्री में देखिये अंग्रेजों के सपने से लेकर इंदिरा गांधी के नाम तक की ऐतिहासिक यात्रा

गंगा को धरती पर लाने का श्रेय भगीरथ को दिया जाता है लेकिन रेगिस्तान में नदी लाने का श्रेय या फिर राजस्थान की भागीरथी किसे कहा जाता है। जी हां, राजस्थान की भागीरथी जिसे आज भी यहां के लोग पूजते हैं। इसे बेहद रोचक कहानी कहें या फिर रोचक इतिहास जिसे राजस्थान के लोग अपना गौरव मानते हैं। रेगिस्तान का नाम सुनते ही मन में दूर-दूर तक फैले रेत के टीले और चारों तरफ सूखा जैसी तस्वीर उभरती है। दरअसल रेगिस्तान का सीना चीरकर पानी निकालने के बारे में सोचकर ही पसीने छूट जाते हैं। लेकिन यह सपना कभी देखा गया था जो बाद में हकीकत बन गया। आइए जानते हैं इंदिरा गांधी नहर की मुख्य विशेषताएं क्या हैं इंदिरा गांधी नहर को राजस्थान की भागीरथी कहा जाता है। पहले इस नहर को 'राजस्थान नहर' के नाम से जाना जाता था। इंदिरा गांधी नहर का नाम सुनते ही ऐसा लगता है कि इस नहर का निर्माण इंदिरा गांधी ने करवाया होगा। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। आइए जानते हैं इंदिरा गांधी नहर परियोजना का जनक किसे कहा जाता है। 'छप्पनिया अकाल' ने मचाई थी भारी तबाही
इंदिरा गांधी नहर के निर्माण से पहले लोगों को पीने का पानी लाने के लिए कई मील पैदल चलना पड़ता था। तब राजस्थान में पानी की तलाश करना युद्ध लड़ने जैसा था। फिर 1899 में उत्तर भारत में भयंकर अकाल पड़ा। इस भयंकर अकाल से राजस्थान बुरी तरह प्रभावित हुआ। राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, नागौर, चूरू और बीकानेर इलाके भयंकर सूखे की चपेट में आ गए। चूंकि यह अकाल विक्रम संवत 1956 में पड़ा था, इसलिए इसे स्थानीय भाषा में 'छप्पनिया अकाल' भी कहा जाता है। इस अकाल को ब्रिटिश गजेटियर में 'द ग्रेट इंडियन फेमिन 1899' के नाम से दर्ज किया गया।
महाराजा गंगा सिंह ने रेगिस्तान में नदी लाने की पहल की
इस अकाल को देखते हुए बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने रेगिस्तान में नदी लाने की पहल की। उन्होंने उस रेगिस्तान में पानी लाने की पहल की, जहां से राहगीर चाहकर भी गुजरना नहीं चाहते थे। इस क्षेत्र में भीषण गर्मी के कारण लोग इन इलाकों की ओर देखना तो दूर, इधर से गुजरना भी पसंद नहीं करते थे। गर्मी की लहरें ऐसी थीं कि ऐसा लगता था जैसे आग के गोले शरीर का पीछा कर रहे हों। तभी बीकानेर राज्य के नए राजा महाराजा गंगा सिंह का राज्याभिषेक हुआ। महाराजा गंगा सिंह का जन्म राजा लाल सिंह की तीसरी संतान के रूप में हुआ। उनके बड़े भाई डूंगर सिंह थे। महाराजा गंगा सिंह का जन्म 3 अक्टूबर 1880 को हुआ था। महाराजा गंगा सिंह के जन्म के समय देश पहले ही ब्रिटिश शासन के अधीन आ चुका था और गुलामी की जंजीरों में कैद था।
महाराजा गंगा सिंह को छोटी सी उम्र में ही बड़ी जिम्मेदारी मिल गई थी
महाराजा गंगा सिंह ने अपने बड़े भाई डूंगर सिंह की मृत्यु के बाद बीकानेर राज्य का कार्यभार संभाला था। एक वीर योद्धा होने के साथ-साथ वे करणी माता के बहुत बड़े भक्त भी थे। महज सात साल की उम्र में राजा बनने वाले महाराजा गंगा सिंह को छोटी सी उम्र में ही बड़ी जिम्मेदारी मिल गई थी। महाराजा गंगा सिंह राजस्थान में पानी की कमी से अच्छी तरह वाकिफ थे। महाराजा ने देखा था छप्पनिया अकाल का दिल दहला देने वाला मंजर
दरअसल, महाराजा गंगा सिंह ने वर्ष 1899 में राजस्थान में छप्पनिया अकाल का दिल दहला देने वाला मंजर देखा था। उन्होंने इस क्षेत्र के लोगों को पानी के लिए मरते और तड़पते देखा था। तभी से उन्होंने राजस्थान के लोगों के लिए एक सपना देखा था। वह सपना था रेगिस्तान में दूर-दूर तक फैले रेत के टीलों के बीच एक नदी का प्रवाह करना। उन्हें कलयुग का भगीरथ भी कहा जाता है। आज भी राजस्थान के लोग उनकी पूजा करते हैं।
महाराजा गंगा सिंह को कहा जाता है कलयुग का भगीरथ
महाराजा गंगा सिंह, जिन्हें कलयुग का भगीरथ कहा जाता है, ने रेगिस्तान में एक नदी का सपना देखा था, लेकिन आज के समय की तरह उस समय न तो तकनीक थी और न ही हाईटेक इंजीनियर। वह पंजाब से बात करके सतलुज नदी से राजस्थान के जैसलमेर तक नहर निकालना चाहते थे। ताकि राजस्थान के पूरे इलाके में पानी की समस्या खत्म हो सके।
महाराजा गंगा सिंह ने बसने के लिए मुफ्त जमीन दी थी महाराजा गंगा सिंह ने जब पंजाब से बात की तो पंजाब पानी देने के लिए राजी हो गया। जिसके बाद सतलुज नदी से नहर निकालकर राजस्थान को पानी दिया गया। उनके महान प्रयासों और मेहनत को देखते हुए इस नहर का नाम गंग नहर रखा गया। नहर तो आ गई लेकिन उस सूखी और रेतीली जमीन पर कोई खेती करने को तैयार नहीं था। ऐसे में राजा गंगा सिंह ने खुद लोगों को खेती करने के लिए बुलाया। इसके साथ ही उन्होंने लोगों को बसने के लिए मुफ्त जमीन भी दी, ताकि बीकानेर की बंजर जमीन को हरा-भरा बनाया जा सके। रेगिस्तान को काटकर निकाला पानी अब युद्ध शुरू हो चुका था, क्योंकि रेगिस्तान को काटकर पानी निकालना कोई बच्चों का खेल नहीं था। उस समय लोगों को यह काम असंभव लग रहा था। धूल और रेत के तूफान के सामने कोई टिक नहीं पा रहा था। एक के बाद एक इंजीनियर आए लेकिन सभी ने हार मान ली।
कंवर सिंह की टीम की अद्भुत योजना
उस समय न तो आधुनिक मशीनें थीं और न ही पर्याप्त संसाधन। लेकिन कंवर सिंह ने नहर का मसौदा तैयार करते समय पर्यावरण को ध्यान में रखा था, इसीलिए कंवर सिंह और उनकी टीम ने इससे निपटने के लिए एक अद्भुत योजना बनाई थी।
गधों ने रेगिस्तान के जहाज का साथ दिया
कंवर सिंह जानते थे कि इस मौसम में अगर कुछ काम आ सकता है तो वह रेगिस्तान का जहाज ही होगा। जब नहर बनाने के लिए जमीन खोदने की बात आई तो रेगिस्तान के जहाज कहे जाने वाले ऊंटों का इस्तेमाल किया गया। जब ऊंटों ने जमीन खोदना शुरू किया तो गधों ने उनका बखूबी साथ दिया। ऊंट और गधे युद्धस्तर पर साथ मिलकर काम करने लगे। उन्हें दिन-रात काम पर लगा दिया गया। इन जानवरों ने मिट्टी खोदकर और उसे ढोकर असंभव काम को संभव बना दिया। अगर ये जानवर न होते तो इस नहर का निर्माण असंभव हो जाता। इस नहर को बनाने में कई जानवरों और इंजीनियरों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन काम नहीं रुका।
इंजीनियर कंवर सेन ने बहुत सीमित संसाधनों में इस नहर का निर्माण किया था।
गंगनहर 1927 में बनकर तैयार हुई थी। इस गंगनहर ने बीकानेर की फिजा ही बदल दी। इसने इस रेतीली और बंजर जमीन को हरा-भरा बना दिया। उस समय इंजीनियर कंवर सेन ने बहुत सीमित संसाधनों में इस नहर का निर्माण कराया था। महाराजा गंगा सिंह ने इंजीनियर कंवर सेन से बीकानेर से जैसलमेर तक एक और नहर बनवाने को कहा था। महाराजा गंगा सिंह का सपना राजस्थान के कोने-कोने तक पानी पहुंचाना था, लेकिन पैसों की कमी के कारण उनका दूसरा प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका। कैंसर से लड़ते हुए 1943 में 62 साल की उम्र में वे दुनिया को अलविदा कह गए। उन्होंने राजस्थान के लोगों को गंगनहर दी, जो वरदान साबित हुई। जब भारत आजाद हुआ तो राजशाही खत्म हुई और लोकतंत्र आया, लेकिन राजस्थान सरकार भी जानती थी कि इस नहर ने बीकानेर को कैसे हरा-भरा बनाया है, इसलिए इस नहर के विस्तार का काम शुरू किया गया।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी नहर का दौरा करने आई थीं। इसके बाद बाड़मेर, चूरू, नागौर जैसे 11 जिलों को पानी पहुंचाने का काम शुरू किया गया, जो पानी के लिए बुरी तरह प्यासे थे। वर्ष 1983 में नहर के विस्तार का काम चल रहा था, उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस नहर का दौरा करने आईं थीं। दौरा करने का इनाम इतना बड़ा था कि 1 साल बाद यानी वर्ष 1984 में इस नहर का नाम इंदिरा गांधी नहर रख दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि इस नहर को बनाने का सपना महाराज गंगा सिंह ने देखा था और इंजीनियर कंवर सेन ने कड़ी मेहनत से इसका निर्माण किया था। इस नहर का उद्घाटन सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था और इसका नाम इंदिरा गांधी नहर परियोजना रखा गया था।