महाराजा सवाई जय सिंह ने कैसे खड़ा किया भारत का सबसे बड़ा खगोल विज्ञान केंद्र ? वीडियो में देखे जयपुर जंतर-मंतर का दिलचस्प इतिहास

भारत का गौरवशाली इतिहास केवल राजाओं, युद्धों और किलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह विज्ञान, खगोलशास्त्र और गणित जैसे क्षेत्रों में भी अद्वितीय योगदान से भरा हुआ है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक उदाहरण है जयपुर का जंतर-मंतर—एक विशाल खगोलिय यंत्रों का समूह, जिसे न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में अद्भुत वैज्ञानिक धरोहर के रूप में देखा जाता है।
जंतर-मंतर का निर्माण और इसके पीछे की सोच
जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने 18वीं सदी की शुरुआत में जब जयपुर शहर को बसाया, तब उन्होंने एक ऐसे खगोलीय केंद्र की कल्पना की, जो भारतीय ज्योतिष, खगोलशास्त्र और समय गणना की सटीकता को दर्शा सके। इसी उद्देश्य से उन्होंने 1728 से 1734 के बीच जयपुर में जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। यह भारत के पांच जंतर-मंतरों में सबसे बड़ा और सबसे बेहतर संरक्षित है। बाकी चार जंतर-मंतर दिल्ली, उज्जैन, वाराणसी और मथुरा में स्थित हैं।
महाराजा जय सिंह न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि वे खगोलशास्त्र के गहरे ज्ञाता भी थे। उन्होंने यूरोप, इस्लामी और भारतीय खगोलशास्त्र का गहन अध्ययन किया और पाया कि धातु की बनी ज्योतिषीय यंत्रों में त्रुटि की संभावना अधिक होती है। इसलिए उन्होंने पत्थर और संगमरमर से विशाल यंत्रों का निर्माण करवाया, जो न केवल टिकाऊ थे बल्कि उनकी गणना भी अधिक सटीक मानी गई।
जंतर-मंतर के प्रमुख यंत्र और उनकी उपयोगिता
जयपुर के जंतर-मंतर में कुल 19 खगोलीय यंत्र हैं जो विभिन्न खगोलीय गणनाओं के लिए बनाए गए थे। इनमें से कुछ प्रमुख यंत्र इस प्रकार हैं:
सम्राट यंत्र – यह दुनिया की सबसे बड़ी सूर्यघड़ी (संडायल) है, जो समय की गणना में सटीकता के लिए प्रसिद्ध है। यह यंत्र 27 मीटर ऊंचा है और स्थानीय समय का आकलन मात्र 2 सेकंड की त्रुटि के साथ कर सकता है।
जयप्रकाश यंत्र – एक अर्धगोलाकार यंत्र है जिसमें आकाशीय पिंडों की स्थिति को आसानी से देखा जा सकता है। इसमें खड़े होकर व्यक्ति आकाशीय गोलार्द्ध की स्थिति को ठीक से समझ सकता है।
रामा यंत्र – इसका प्रयोग ऊँचाई और कोण मापने के लिए किया जाता था, जो खगोलशास्त्रीय अध्ययन में सहायक होता है।
दक्षिणा भित्ती यंत्र – इसका उपयोग विषुवत रेखा (Equator) के सापेक्ष खगोलीय पिंडों की स्थिति जानने के लिए होता था।
नाड़ी वलय यंत्र – यह यंत्र दिन और रात के समय की गणना करता है और सूर्य की गति पर आधारित होता है।
क्यों है जंतर-मंतर इतना खास?
जंतर-मंतर केवल एक स्थापत्य चमत्कार नहीं है, यह विज्ञान, गणित और वास्तुकला का त्रिवेणी संगम है। जब 18वीं सदी में पूरी दुनिया खगोलीय गणनाओं को जटिल समझती थी, तब जयपुर का यह वेधशाला केंद्र वैज्ञानिक सोच को सरलता और भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ने का जीवंत उदाहरण बन गया।
महाराजा जय सिंह द्वितीय ने जंतर-मंतर की रचना करके साबित किया कि भारतीय विद्वता केवल धार्मिक या साहित्यिक क्षेत्र तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसमें ब्रह्मांड की गहराइयों को मापने की क्षमता भी थी। जंतर-मंतर ने समय, ऋतु, ग्रहों की गति और खगोलीय घटनाओं की भविष्यवाणी को बेहद सरल और सटीक बना दिया।
यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल
2010 में यूनेस्को ने जयपुर के जंतर-मंतर को विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) घोषित किया। यह सम्मान इसे इसलिए मिला क्योंकि यह वेधशाला न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आज भी वैज्ञानिक महत्व रखती है।
आज भी आकर्षण का केंद्र
आज जंतर-मंतर न केवल शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के लिए बल्कि पर्यटकों और छात्रों के लिए भी अध्ययन और आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। देश-विदेश से लाखों पर्यटक हर साल इसे देखने आते हैं। यह विज्ञान और भारतीय सांस्कृतिक विरासत को एक साथ देखने का अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।
जयपुर का जंतर-मंतर एक ऐसा स्थल है जहां आप खगोलशास्त्र, गणित, वास्तुकला और इतिहास को एक ही स्थान पर अनुभव कर सकते हैं। यह महज़ पत्थरों की संरचना नहीं, बल्कि उस युग की वैज्ञानिक सोच और महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय की दूरदृष्टि का प्रमाण है। अगर आपने अब तक इस अद्भुत वेधशाला का दौरा नहीं किया है, तो अगली बार जयपुर यात्रा में इसे जरूर शामिल करें—यह अनुभव न केवल ज्ञानवर्धक होगा, बल्कि भारतीय विरासत पर गर्व का अहसास भी कराएगा।