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कुम्भलगढ़ का इतिहास और रहस्य! वो दुर्ग जिसे अकबर और औरंगजेब भी नहीं जीत पाए, वीडियो में जाने क्यों माना जाता है सबसे सुरक्षित किला 

कुम्भलगढ़ का इतिहास और रहस्य! वो दुर्ग जिसे अकबर और औरंगजेब भी नहीं जीत पाए, वीडियो में जाने क्यों माना जाता है सबसे सुरक्षित किला 

राजस्थान की वीर भूमि पर अनेक दुर्ग स्थापित हैं, लेकिन उनमें से एक किला ऐसा है जो न सिर्फ अपने स्थापत्य और इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि उसे 'राजस्थान का सबसे सुरक्षित किला' भी कहा जाता है। यह किला है कुम्भलगढ़, जो मेवाड़ की आन-बान और शौर्य का प्रतीक माना जाता है। अरावली पर्वतमाला की ऊँचाई पर स्थित यह किला न केवल युद्धकाल में अपराजेय रहा, बल्कि उसकी बनावट, किलेबंदी और रणनीतिक स्थिति इतनी मजबूत थी कि कोई भी दुश्मन उसे सीधे युद्ध में जीत नहीं सका।

36 किलोमीटर लंबी दीवार – भारत की ‘ग्रेट वॉल’

कुम्भलगढ़ किले की सबसे विशेष बात इसकी 36 किलोमीटर लंबी परकोटे वाली दीवार है, जिसे भारत की ‘ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है। यह दीवार चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। इसकी चौड़ाई इतनी है कि पाँच घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं। यह दीवार किले को चारों ओर से घेरती है और शत्रु के लिए अंदर प्रवेश करना लगभग असंभव बनाती है।

रणनीतिक स्थिति – दुश्मनों के लिए पहेली

कुम्भलगढ़ की सबसे बड़ी ताकत इसकी भौगोलिक स्थिति रही है। यह किला समुद्र तल से करीब 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और चारों ओर से घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां तक पहुंचना खुद में ही एक चुनौती थी। ऊँचाई पर बने इस किले से दुश्मनों की हर गतिविधि को बहुत दूर से देखा जा सकता था। ऐसे में हमलावरों के लिए यह किला एक दुर्गम पहेली बन जाता था।

महाराणा कुंभा की दूरदृष्टि

इस अभेद्य दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने 15वीं सदी में करवाया था। उन्होंने इसे सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि एक रणनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया। किले के भीतर 300 से अधिक मंदिर, जलाशय और शस्त्रागार मौजूद हैं। यह किला मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण था।

अकबर और औरंगजेब भी न कर सके इस किले को जीत

इतिहास गवाह है कि मुगल सम्राट अकबर, दिल्ली सल्तनत, अहमद शाह और यहाँ तक कि औरंगजेब जैसे शक्तिशाली आक्रांताओं ने भी कुम्भलगढ़ को जीतने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें बार-बार असफलता हाथ लगी। कहा जाता है कि जब भी दुश्मन सेनाएँ इस किले की ओर बढ़ती थीं, वे इसकी दीवारों और सुरक्षा प्रणाली के आगे टिक नहीं पाती थीं।

महाराणा प्रताप का जन्मस्थान

कुम्भलगढ़ किला सिर्फ सुरक्षा के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि यह इतिहास के सबसे वीर योद्धाओं में से एक महाराणा प्रताप का जन्मस्थान भी है। महाराणा प्रताप का नाम आते ही जो दृढ़ता, स्वाभिमान और शौर्य की छवि मन में उभरती है, उसका आरंभ यहीं कुम्भलगढ़ से हुआ था।

जल प्रबंधन प्रणाली – एक और सुरक्षा कवच

कुम्भलगढ़ के रहस्यों में इसकी जल संरक्षण प्रणाली भी शामिल है। किले में बने जलाशयों, बावड़ियों और टंकियों ने न सिर्फ यहाँ लंबे समय तक पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की, बल्कि संकट के समय यह किला महीनों तक आत्मनिर्भर रह सकता था। ऐसे में किले को घेरे रखने वाले दुश्मन थक-हारकर लौट जाते थे।

आज भी अनसुलझे हैं कुछ रहस्य

कुम्भलगढ़ किले के भीतर कई गुप्त सुरंगों और रास्तों की कहानियाँ लोकप्रचलित हैं, जिनका उपयोग संकट के समय राणाओं द्वारा गुप्त रूप से बाहर निकलने के लिए किया जाता था। आज भी इन सुरंगों की पूरी जानकारी नहीं है और इनसे जुड़े रहस्य लोगों को आकर्षित करते हैं।

विरासत और पर्यटन का केंद्र

आज कुम्भलगढ़ किला UNESCO की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में शामिल है और यह राजस्थान के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। हर साल हजारों सैलानी इस किले की भव्यता और रहस्य को देखने आते हैं। शाम को यहाँ होने वाला लाइट एंड साउंड शो इस किले के गौरवशाली इतिहास को जीवंत कर देता है।

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