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रेत के नीचे छिपा है पानी का अतीत! कैसे एक विशाल समुद्र बन गया रेत का महासागर, वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखे कहानी Thar Desert की 

रेत के नीचे छिपा है पानी का अतीत! कैसे एक विशाल समुद्र बन गया रेत का महासागर, वायरल डॉक्यूमेंट्री में देखे कहानी Thar Desert की 

थार मरुस्थल, जिसे 'ग्रेट इंडियन डेजर्ट' के नाम से भी जाना जाता है, भारत के पश्चिमी हिस्से में फैला हुआ एक विशाल रेगिस्तान है। यह मुख्य रूप से राजस्थान राज्य में स्थित है और पंजाब, हरियाणा, गुजरात तथा पाकिस्तान के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ है। पर क्या आप जानते हैं कि यह रेगिस्तान कभी एक विशाल जलस्रोत, यानी समुद्र हुआ करता था? यह जानना किसी रहस्य से कम नहीं कि जहां आज मीलों तक रेत की सुनहरी परतें हैं, वहां कभी लहरों की गर्जना गूंजती थी। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे एक सागर ने समय के साथ खुद को एक रेगिस्तान में बदल लिया, और इसके पीछे कौन-कौन से भूगर्भीय, ऐतिहासिक और जलवायु कारण जिम्मेदार रहे।

समुद्र से मरुस्थल बनने की पृष्ठभूमि

प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप पूरी तरह से समुद्र के गर्भ में समाया हुआ था। भूगर्भशास्त्र के अनुसार, लगभग 10 करोड़ वर्ष पहले का समय 'टेथिस सागर' के नाम से जाना जाता है, जो आज के हिमालय और आसपास के क्षेत्रों में फैला एक विशाल समुद्री क्षेत्र था। जैसे-जैसे इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट उत्तर दिशा में खिसकती गई और यूरेशियन प्लेट से टकराई, हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ और टेथिस सागर का जल धीरे-धीरे खत्म होने लगा।हालांकि राजस्थान का अधिकांश हिस्सा समुद्र से निकलकर भूमि बना, फिर भी भूगर्भीय प्रमाण बताते हैं कि आज का थार मरुस्थल भी हजारों साल पहले एक बड़ी जलराशि से घिरा हुआ था। उस काल के जीवाश्म, शंख और मिट्टी में पाई गई लवणता इसके साक्षी हैं।

जलवायु परिवर्तन की अहम भूमिका

थार मरुस्थल के बनने में जलवायु परिवर्तन का बड़ा हाथ रहा। हजारों साल पहले यहां का क्षेत्र हरियाली से भरा और नदियों से समृद्ध था। ऋग्वेद में उल्लेख है कि सरस्वती नदी इस क्षेत्र से होकर बहती थी और इसे एक पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता था। लेकिन धीरे-धीरे हिमालय में बर्फबारी कम होने लगी और मानसून की धारा भी कमजोर होने लगी, जिससे नदियां सूखने लगीं और भूमि में नमी की कमी हो गई।वर्षा की मात्रा में गिरावट और तापमान में वृद्धि के कारण मिट्टी की उपजाऊ क्षमता खत्म होने लगी और धीरे-धीरे यह इलाका रेत के विशाल मैदान में बदल गया। आज के समय में थार मरुस्थल की औसत वार्षिक वर्षा मात्र 100 से 500 मिलीमीटर के बीच रहती है, जो किसी भी उपजाऊ भूमि को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है।

नदियों के सूखने और सरस्वती का विलुप्त होना

थार मरुस्थल के समुद्र से रेगिस्तान बनने की प्रक्रिया में सरस्वती नदी का विलुप्त होना एक बड़ा कारण माना जाता है। भूगर्भीय अनुसंधान बताते हैं कि कभी यह नदी सतलुज और यमुना से जुड़ी हुई थी, जिससे इस क्षेत्र में भरपूर जलस्रोत उपलब्ध थे। लेकिन भूकंपीय हलचलों और ध्रुवीय बदलावों के चलते सरस्वती का मार्ग बदल गया और वह धीरे-धीरे रेत में विलीन हो गई।इस नदी के गायब होते ही थार का क्षेत्र पानी की कमी का शिकार हो गया, और जहां पहले सिंचित क्षेत्र था, वहीं अब जल की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष शुरू हो गया। यह परिवर्तन धीरे-धीरे हजारों वर्षों में हुआ, लेकिन इसके प्रभाव इतने व्यापक रहे कि पूरे क्षेत्र का भूगोल ही बदल गया।

वैज्ञानिक प्रमाण और शोध

भारत और विदेशों के कई वैज्ञानिकों और भूगर्भशास्त्रियों ने थार क्षेत्र में खुदाई और शोध किए हैं। इन शोधों में समुद्री शैवाल, नमकीन मिट्टी और प्राचीन शंख मिले हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह क्षेत्र किसी समय समुद्र के भीतर था। साथ ही उपग्रह चित्रों से यह भी पता चला है कि थार के नीचे प्राचीन नदियों के अवशेष आज भी मौजूद हैं।ISRO और अन्य संस्थानों द्वारा किए गए शोध यह बताते हैं कि रेगिस्तान के नीचे अब भी भूजल के बड़े स्रोत मौजूद हैं, जो उस काल के जलस्रोतों की याद दिलाते हैं।

सांस्कृतिक दृष्टिकोण

थार मरुस्थल न सिर्फ भूगर्भीय दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां के लोकगीतों, कथाओं और परंपराओं में अक्सर उस समय की झलक मिलती है जब यह क्षेत्र समृद्ध और जल-प्रधान था। लोकगाथाओं में सरस्वती की महिमा और प्राचीन जलनदी सभ्यताओं का वर्णन मिलता है।

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