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घोड़े की अनोखी लीला से लेकर जीवित समाधि तक, वायरल वीडियो में जाने संत रामदेव जी के अद्भुत चमत्कारों की कहानी 

घोड़े की अनोखी लीला से लेकर जीवित समाधि तक, वायरल वीडियो में जाने संत रामदेव जी के अद्भुत चमत्कारों की कहानी 

भारत की धरती सदा से संतों, महापुरुषों और चमत्कारों की भूमि रही है। राजस्थान की पावन धरा पर जन्मे संत रामदेव जी भी ऐसे ही एक अलौकिक पुरुष माने जाते हैं, जिनकी कथा सिर्फ श्रद्धा की नहीं, बल्कि रहस्यों और चमत्कारों से भी भरी हुई है। भक्तों के लिए वे 'बाबा रामदेव' हैं, तो कुछ लोग उन्हें 'रामसा पीर' कहकर पुकारते हैं। उनके जीवन से जुड़े कई किस्से आज भी लोगों के लिए आस्था और रहस्य का संगम बने हुए हैं।

संत रामदेव जी का जन्म और बाल्यकाल
संत रामदेव जी का जन्म 1352 ईस्वी में राजस्थान के बारmer जिले के रुणिचा (अब रामदेवरा) गांव में हुआ था। उनके पिता राजा अजमल और माता मैणादेवी गहरी आस्था वाले लोग थे। कहा जाता है कि संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर तप किया था और ईश्वर से एक दिव्य आत्मा के रूप में संतान की कामना की थी। इसी तपस्या के फलस्वरूप रामदेव जी का जन्म हुआ, जिन्हें जन्म से ही चमत्कारी शक्तियां प्राप्त थीं।

बचपन से ही दिखाई चमत्कार
कई लोककथाओं के अनुसार, बचपन में ही रामदेव जी ने अपनी दिव्य शक्तियों का परिचय देना शुरू कर दिया था। एक प्रसंग के अनुसार, जब गांव में पीने के पानी की भारी किल्लत हो गई थी, तब छोटे से रामदेव जी ने अपने कर-कमलों से धरती पर स्पर्श किया और वहां एक मीठे पानी का सोता फूट पड़ा। इस घटना ने लोगों को चकित कर दिया और उन्हें रामदेव जी के चमत्कारी स्वरूप पर अटूट विश्वास हो गया।

रामसा पीर: हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक
रामदेव जी न केवल हिंदुओं के आराध्य हैं, बल्कि मुस्लिम समुदाय में भी उन्हें विशेष आदर प्राप्त है। मुस्लिम भक्त उन्हें 'रामसा पीर' के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि पांच पीरों ने उनकी शक्ति की परीक्षा लेनी चाही थी। जब रामदेव जी ने अपने चमत्कारों से उन्हें संतुष्ट कर दिया, तो वे सभी पीर उनके अनुयायी बन गए। आज भी रामदेवरा में स्थित मंदिर में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही श्रद्धालु एक साथ दर्शन के लिए आते हैं, जो सांप्रदायिक सौहार्द का अनुपम उदाहरण है।

रहस्यमयी घोड़ा: लीला का प्रतीक
रामदेव जी के प्रिय घोड़े का किस्सा भी बहुत प्रसिद्ध है। लोकमान्यता के अनुसार, रामदेव जी के पास एक दिव्य घोड़ा था जो इतनी तेज दौड़ता था कि उसकी गति के सामने हवा भी शर्मिंदा हो जाती थी। कहा जाता है कि यह घोड़ा भी स्वयं ईश्वर का अवतार था, जो रामदेव जी के कार्यों में सहायक था। आज भी रामदेवरा मंदिर में उनके घोड़े की मूर्ति स्थापित है, जिसे श्रद्धालु विशेष श्रद्धा से पूजते हैं।

जीवित समाधि: एक अलौकिक प्रस्थान
रामदेव जी ने 33 वर्ष की आयु में जीवित समाधि ली थी। माना जाता है कि उन्होंने अपने शरीर को छोड़ने से पहले अपने भक्तों से वादा किया था कि वे हमेशा उनकी सहायता के लिए उपस्थित रहेंगे। रामदेव जी ने समाधि लेने के बाद भी चमत्कार दिखाए, और आज भी श्रद्धालु यह मानते हैं कि वे रामदेव जी की कृपा से हर संकट से उबर सकते हैं।

भव्य मेला और लाखों श्रद्धालु
हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष में रामदेवरा में भव्य मेला लगता है। लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं और रामदेव जी के दरबार में अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। विशेष रूप से, 'पलसियों' की परंपरा भी इस मेले का एक प्रमुख आकर्षण है, जिसमें भक्त कई दिनों तक पैदल यात्रा कर के रामदेवरा पहुंचते हैं। यह मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव बन चुका है।

चमत्कारी किस्से आज भी प्रचलित
आज भी कई ऐसे किस्से सुनने को मिलते हैं जहां भक्तों ने संकट के समय रामदेव जी से सहायता मांगी और चमत्कारिक रूप से उन्हें राहत मिली। चाहे वह किसी असाध्य रोग से मुक्ति हो या फिर जीवन में भारी संकट से पार पाना — बाबा रामदेव जी की कृपा को लोग अपने अनुभवों से प्रमाणित करते हैं।

निष्कर्ष
संत रामदेव जी का जीवन एक ऐसी अद्भुत गाथा है जिसमें श्रद्धा, चमत्कार और रहस्य का सुंदर समागम देखने को मिलता है। उनके व्यक्तित्व ने न केवल धार्मिक सीमाओं को तोड़ा, बल्कि मानवता को जोड़ने का काम भी किया। उनकी शिक्षाएं आज भी हमें सच्चाई, भक्ति और सेवा का मार्ग दिखाती हैं। चाहे हिंदू हो या मुस्लिम, रामदेव जी सभी के आराध्य हैं और उनकी यह सार्वभौमिकता उन्हें अद्वितीय बनाती है।आज भी अगर कोई सच्चे मन से रामदेव जी को पुकारता है, तो कहा जाता है कि उनकी आवाज सीधे बाबा तक पहुंचती है और संकटों का समाधान होता है। यही कारण है कि रामदेव जी न केवल एक संत, बल्कि आस्था के अमिट प्रतीक बन गए हैं।

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