Samachar Nama
×

चित्तौड़गढ़ के विजय स्तम्भ की ऊंचाई से लेकर नक्काशी जानिए इस विजय स्मारक की खास, जिसे देखने सात समंदर पार से दौड़े चले आते है पर्यटक 

चित्तौड़गढ़ के विजय स्तम्भ की ऊंचाई से लेकर नक्काशी जानिए इस विजय स्मारक की खास, जिसे देखने सात समंदर पार से दौड़े चले आते है पर्यटक 

राजस्थान का चित्तौड़गढ़ न केवल अपनी वीर गाथाओं और महलों के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां स्थित "विजय स्तम्भ" (Victory Tower) अपने आप में बहादुरी, स्थापत्य कला और ऐतिहासिक चेतना का अद्भुत प्रतीक है। यह स्तम्भ सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उस कालखंड की याद है जब मातृभूमि की रक्षा के लिए राणा कुंभा और उनके योद्धाओं ने बलिदान और पराक्रम की मिसाल कायम की थी।


विजय स्तम्भ का इतिहास
विजय स्तम्भ का निर्माण 1448 ईस्वी में राणा कुंभा ने करवाया था। इसे गुजरात के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया था। यह स्तम्भ न केवल युद्ध में मिली जीत का स्मारक है, बल्कि हिंदू शिल्पकला और स्थापत्य विज्ञान का भी बेजोड़ उदाहरण है। राणा कुंभा ने इस स्तम्भ का निर्माण चित्तौड़गढ़ किले के अंदर करवाया, जो कि आज भी देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करता है।

स्थापत्य विशेषताएं
ऊंचाई और बनावट: विजय स्तम्भ लगभग 122 फीट ऊंचा है और इसमें 9 मंजिलें हैं। इसकी आकृति अष्टकोणीय है और इसके प्रत्येक तल पर झरोखे व छज्जे बने हैं।
सीढ़ियाँ: स्तम्भ के अंदर कुल 157 सर्पिल सीढ़ियाँ हैं, जो आपको ऊपर तक ले जाती हैं। ऊपर से चित्तौड़गढ़ का दृश्य अत्यंत मनोहारी दिखाई देता है।
निर्माण सामग्री: यह स्तम्भ लाल और पीले बलुआ पत्थर से निर्मित है। इसकी नक्काशी इतनी बारीकी से की गई है कि हर कोने पर देवताओं की मूर्तियां, योद्धाओं की आकृतियाँ और पौराणिक कथाएं जीवंत हो उठती हैं।

मूर्तिकला और चित्रण
विजय स्तम्भ की दीवारों पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव, देवी-देवताओं के साथ-साथ विभिन्न अवतारों और धार्मिक दृश्यों की नक्काशी की गई है। यह भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की गहराई को दर्शाती है। इसके आधार और ऊपरी हिस्सों में राणा कुंभा, उनके वंशजों और दरबार के प्रमुख व्यक्तियों की मूर्तियां भी उकेरी गई हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
यह स्तम्भ न केवल वीरता का स्मारक है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसकी दीवारों पर लिखी गई संस्कृत और देवनागरी शिलालेखों में हिंदू धर्म के मूल सिद्धांत, देवी-देवताओं की स्तुति और ऐतिहासिक प्रसंगों का वर्णन मिलता है।यह स्तम्भ यह बताता है कि कैसे उस युग में धर्म और राष्ट्र रक्षा एक दूसरे से जुड़े हुए थे और कैसे शासक अपनी वीरता के साथ-साथ धर्म-संरक्षण को भी सर्वोपरि मानते थे।

विजिट करने का सही समय और पर्यटन महत्व
चित्तौड़गढ़ किला और विजय स्तम्भ साल भर पर्यटकों से भरा रहता है, लेकिन अक्टूबर से मार्च का समय यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।यहां आने वाले पर्यटक न सिर्फ इस स्तम्भ की कलात्मकता से अभिभूत होते हैं, बल्कि यहां से दिखने वाला अरावली पर्वत श्रृंखला और चित्तौड़गढ़ का विहंगम दृश्य भी उनकी यात्रा को यादगार बना देता है।

संरक्षण और विरासत
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इस स्मारक की देखरेख की जाती है। यह UNESCO की संभावित विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है। राजस्थान सरकार और विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाएं इसकी देखरेख और संवर्धन के लिए सक्रिय हैं ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस गौरवशाली धरोहर को देख सकें।

समकालीन प्रेरणा
आज जब देश में युवा अपनी विरासत और इतिहास से जुड़ना चाहते हैं, विजय स्तम्भ उनके लिए प्रेरणा स्रोत है। यह हमें बताता है कि सच्ची विजय तलवार से नहीं, बल्कि संस्कृति, साहस और सिद्धांतों से मिलती है।

निष्कर्ष
चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि भारतीय शौर्य, कला और धार्मिक भावना का एक स्थायी प्रतीक है। यह स्तम्भ हमें अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है और बताता है कि भारत की मिट्टी में वीरता और समर्पण की कहानियां हर पत्थर में गढ़ी हुई हैं।

Share this story

Tags