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थार मरुस्थल पौराणिक कथाओं से लेकर भूगोल और संस्कृति तक, वीडियो में देखिये इस विशाल रेगिस्तान की अनसुनी और रहस्यमयी कहानी

थार मरुस्थल पौराणिक कथाओं से लेकर भूगोल और संस्कृति तक, वीडियो में देखिये इस विशाल रेगिस्तान की अनसुनी और रहस्यमयी कहानी

भारत का थार मरुस्थल केवल एक रेत का समुद्र नहीं, बल्कि इतिहास, भूगोल, पौराणिकता और संस्कृति का वह विराट संगम है, जहां हर कण में कोई न कोई कहानी दबी है। यह मरुस्थल उत्तर-पश्चिम भारत में फैला हुआ है और राजस्थान राज्य का एक बड़ा हिस्सा इसमें समाहित है। यहां की जलवायु, संस्कृति और जीवनशैली आज भी अतीत की अनगिनत परतों को समेटे हुए हैं।


पौराणिक मान्यताएं: देवताओं की भूमि
थार मरुस्थल से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं इसे एक रहस्यमय धरातल बनाती हैं। लोक मान्यता के अनुसार, यह वही भूमि है जहां भगवान राम के वंशज लव और कुश का बचपन बीता था। कुछ कथाओं में इसे रावण और राम के युद्ध का साक्षी माना जाता है, तो कहीं इसे भगवान परशुराम और क्षत्रियों की संघर्ष भूमि कहा गया है। इसके अलावा, कुछ पुराणों में थार क्षेत्र को ‘मरुकांतार’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘रेत का जंगल’।स्थानीय लोककथाओं में थार के कुछ स्थानों को अलौकिक शक्तियों से युक्त बताया गया है। जैसलमेर के पास स्थित कुलधरा गांव, जो एक ही रात में वीरान हो गया था, आज भी एक पौराणिक और परामनोवैज्ञानिक रहस्य बना हुआ है। वहां की कहानियां आज भी लोगों को रोमांच और भय से भर देती हैं।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: सभ्यताओं की जन्मभूमि
थार मरुस्थल का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से भी जुड़ा हुआ है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के साथ-साथ, राजस्थान के कालीबंगा और बाड़मेर जैसे क्षेत्रों में प्राचीन बस्तियों के अवशेष मिले हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि यह क्षेत्र हजारों वर्ष पहले भी सभ्यता और संस्कृति का केंद्र रहा है।मौर्य, गुप्त, चौहान, परमार और राठौड़ वंशों ने इस क्षेत्र पर शासन किया और इसे कला, स्थापत्य और युद्धनीति की दृष्टि से समृद्ध किया। जैसलमेर, जो आज रेत की नगरी के रूप में जाना जाता है, कभी व्यापार का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। यहां से होकर सिल्क रूट (रेशम मार्ग) गुजरता था, जो भारत को मध्य एशिया और अरब देशों से जोड़ता था।

भूगोल: रेत की बनावट और रहन-सहन की चुनौती
भूगोल की दृष्टि से थार मरुस्थल करीब 2 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह भारत के चार राज्यों – राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब – और पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र तक विस्तृत है। हालांकि थार को एक शुष्क और अनुत्पादक क्षेत्र माना जाता है, पर यहां की मिट्टी में अद्भुत विशेषताएं हैं। बरसात के दिनों में यहां के कुछ हिस्से उपजाऊ भी हो जाते हैं, जिससे स्थानीय लोग सीमित मात्रा में कृषि कार्य कर पाते हैं।थार की जलवायु अत्यंत कठोर है। गर्मियों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जबकि सर्दियों में यह शून्य के करीब पहुंच जाता है। यहां वर्षा बहुत कम होती है, औसतन मात्र 100 से 500 मिमी प्रतिवर्ष। इसके बावजूद, इस मरुस्थल में जीवन की जिजीविषा देखने योग्य है। यहां के लोग ऊंटों, बकरियों और मरुस्थलीय वनस्पतियों पर आधारित जीवन यापन करते हैं।

संस्कृति: लोकजीवन की अनमोल धरोहर
थार मरुस्थल की सबसे सुंदर विशेषता इसकी लोक संस्कृति है। यहां का संगीत, नृत्य, पोशाक और खान-पान इसे बाकी दुनिया से अलग बनाते हैं। कालबेलिया, घूमर, तेरहताली जैसे लोकनृत्य दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। मिरासी, मांगणियार और लंगा जैसे लोक गायक अपनी सुरीली आवाज़ और वीर रस से भरे गीतों से मरुस्थल को जीवंत कर देते हैं।पोशाकों में रंगों की भरमार, गहनों की चमक और पारंपरिक कढ़ाई कार्य यहां की पहचान हैं। महिलाओं के लिए पारंपरिक 'घाघरा-चोली' और पुरुषों के लिए 'धोती-कुर्ता' के साथ भारी पगड़ी संस्कृति का अहम हिस्सा है।राजस्थानी व्यंजन जैसे दाल-बाटी-चूरमा, केर-सांगरी, गट्टे की सब्जी और लहसुन की चटनी यहां के कठोर वातावरण के अनुरूप हैं और स्वाद से भरपूर होते हैं।

पर्यावरणीय और आधुनिक चुनौतियां
थार मरुस्थल आज केवल सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी चर्चा में है। जलवायु परिवर्तन और बेतरतीब दोहन से इस क्षेत्र में मरुस्थलीकरण की गति बढ़ी है। सरकार द्वारा 'इंदिरा गांधी नहर परियोजना' के माध्यम से मरुस्थल को हरियाली देने की कोशिश की गई है, जिससे कुछ क्षेत्रों में खेती और स्थायी बसाहट संभव हुई है।वहीं, पर्यटन भी इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है, जो स्थानीय लोगों के लिए आय का स्रोत बना है लेकिन पर्यावरणीय संतुलन के लिए चुनौती भी।

थार मरुस्थल एक ऐसा भूभाग है जहां रेत की परतों के नीचे हजारों वर्षों की पौराणिक कथाएं, ऐतिहासिक बदलाव, भूगोल की कठोरता और सांस्कृतिक समृद्धि समाई हुई है। यह क्षेत्र हमें सिखाता है कि जीवन कठिन परिस्थितियों में भी कैसे खिल सकता है। थार न केवल भारत की सांस्कृतिक संपदा है, बल्कि मानवीय साहस और प्रकृति के साथ संतुलन का जीवंत उदाहरण भी है।

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