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Vijay Stambh की हर मंजिल में छिपा है इतिहास, धर्म और कला का अनमोल खजाना, इस दुर्लभ वीडियो में गौरवशाली अतीत देख रह जाएंगे दंग 

Vijay Stambh की हर मंजिल में छिपा है इतिहास, धर्म और कला का अनमोल खजाना, इस दुर्लभ वीडियो में गौरवशाली अतीत देख रह जाएंगे दंग 

राजस्थान की वीर भूमि चित्तौड़गढ़ न केवल अपने इतिहास, युद्धों और रानियों की जौहर कथाओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी वास्तुकला भी भारतीय विरासत का गौरव है। इसी वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है – विजय स्तम्भ। इसे ‘कीर्ति स्तम्भ’ या ‘टॉवर ऑफ विक्ट्री’ भी कहा जाता है। यह स्मारक महाराणा कुंभा द्वारा 1448 ईस्वी में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में बनवाया गया था।इस ऐतिहासिक स्तम्भ की 9 मंजिलें न केवल स्थापत्य की दृष्टि से अद्वितीय हैं, बल्कि हर मंजिल अपने भीतर ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विशेषताओं को समेटे हुए है। आइए जानें, विजय स्तम्भ की इन 9 मंजिलों में क्या है खास।


1. पहली मंजिल: प्रवेश द्वार और शिव स्तुति
विजय स्तम्भ की पहली मंजिल पर प्रवेश करते ही आपको हिंदू देवी-देवताओं की अद्भुत मूर्तिकला दिखाई देती है। खास बात यह है कि इसकी दीवारों पर भगवान शिव की स्तुति में उकेरे गए श्लोक और शिलालेख मिलते हैं। प्रवेश द्वार से लेकर ऊपर जाने की सीढ़ियों तक पत्थर पर की गई बारीक नक्काशी इस मंजिल को दर्शनीय बनाती है।

2. दूसरी मंजिल: युद्धगाथाओं का चित्रण
दूसरी मंजिल पर राजा कुंभा की विजय से जुड़ी कई ऐतिहासिक घटनाओं को शिल्प के माध्यम से उकेरा गया है। इसमें मालवा युद्ध, चित्तौड़ की सेना की बहादुरी और सुल्तान महमूद खिलजी की हार के दृश्य प्रमुख रूप से दर्शाए गए हैं। इन चित्रों को देखकर जैसे इतिहास जीवंत हो उठता है।

3. तीसरी मंजिल: हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ
यह मंजिल देवी-देवताओं की मूर्तियों से सुसज्जित है। विष्णु के दशावतार, महिषासुर मर्दिनी, ब्रह्मा, गणेश और सूर्यदेव की प्रतिमाएँ अत्यंत बारीकी से तराशी गई हैं। इसे देखकर यह स्पष्ट होता है कि इस स्तम्भ का धार्मिक महत्व भी उतना ही गहरा है जितना इसका ऐतिहासिक महत्व।

4. चौथी मंजिल: स्थापत्य कला की उत्कृष्टता
चौथी मंजिल को विशेष रूप से वास्तु और शिल्पकला के उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में देखा जाता है। यहां की दीवारों और छत पर जो नक्काशी की गई है, वह इस बात का प्रमाण है कि उस समय की कला कितनी विकसित थी। न सिर्फ धार्मिक चित्रण, बल्कि यहां योग, संगीत और नृत्य से जुड़ी आकृतियाँ भी दिखाई देती हैं।

5. पांचवीं मंजिल: राजवंशीय वंशावली
यह मंजिल ऐतिहासिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि यहां मेवाड़ राजवंश की वंशावली शिलालेखों में दर्ज है। महाराणा कुंभा के पूर्वजों से लेकर उनके शासनकाल तक की विस्तृत जानकारी यहाँ मिलती है। इस मंजिल को इतिहास प्रेमियों के लिए एक अनमोल धरोहर माना जाता है।

6. छठी मंजिल: धार्मिक शिलालेख
इस मंजिल पर धार्मिक दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण शिलालेख पाए जाते हैं। खासकर संस्कृत और प्राचीन ब्राह्मी लिपि में लिखे गए श्लोक शिव, विष्णु और शक्ति की स्तुति में हैं। इन शिलालेखों को पढ़ने के लिए विद्वानों और पुरातत्व विशेषज्ञों का अध्ययन जारी है।

7. सातवीं मंजिल: सूर्य उपासना और ज्योतिष संबंधी प्रतीक
सातवीं मंजिल पर सूर्य से संबंधित अनेक प्रतीक और मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि महाराणा कुंभा सूर्यवंशी थे, और इसलिए सूर्य की पूजा का विशेष स्थान इस स्तम्भ में दिया गया है। यहां खगोलीय चिन्ह और ज्योतिष संबंधी रेखाचित्र भी नजर आते हैं।

8. आठवीं मंजिल: संगीत और कलाओं का समर्पण
आठवीं मंजिल संगीत और कलाओं को समर्पित है। यहां ढोल, वीणा, मृदंग, नृत्य मुद्राओं और गायन की झांकियों को पत्थर में उकेरा गया है। यह मंजिल दर्शाती है कि उस युग में कला और संगीत को भी राजकीय संरक्षण प्राप्त था।

9. नववीं (ऊपरी) मंजिल: चित्तौड़ का विहंगम दृश्य
विजय स्तम्भ की नौवीं मंजिल अंतिम और सबसे ऊंची है। यहां से चित्तौड़गढ़ दुर्ग और आसपास का दृश्य बेहद मनमोहक दिखाई देता है। यह स्थान ना केवल वास्तु का चरम बिंदु है, बल्कि मानसिक शांति और आत्मचिंतन के लिए भी अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।

विजय स्तम्भ केवल पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि एक जीवित इतिहास है। इसकी हर मंजिल एक अलग कहानी कहती है—कभी वीरता की, कभी धर्म की, कभी कला की। यह स्मारक न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत के ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक है। यदि आप चित्तौड़गढ़ जाते हैं, तो विजय स्तम्भ की 9 मंजिलों की यात्रा अवश्य करें। यह न केवल आंखों को, बल्कि आत्मा को भी समृद्ध करती है।

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