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आज भी राजपूतों के पराक्रम का सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है Vijay Stambh, वीडियो में देखे इस ऐतिहासिक स्मारक की निर्माण गाथा 

आज भी राजपूतों के पराक्रम का सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है Vijay Stambh, वीडियो में देखे इस ऐतिहासिक स्मारक की निर्माण गाथा 

राजस्थान की ऐतिहासिक भूमि पर स्थित चित्तौड़गढ़ न केवल अपनी वीर गाथाओं, जौहर की कहानियों और राजपूती शौर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां मौजूद अनेक स्मारक भी भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक हैं। इन्हीं स्मारकों में से एक है विजय स्तंभ (Victory Tower), जो चित्तौड़गढ़ किले के भीतर स्थित है। यह स्तंभ न सिर्फ स्थापत्य की दृष्टि से अद्भुत है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक विजय की अमर निशानी भी है।

विजय स्तंभ का ऐतिहासिक महत्व

विजय स्तंभ का निर्माण 15वीं शताब्दी में राणा कुंभा द्वारा कराया गया था। इसका निर्माण उन्होंने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर 1440 ई. में विजय प्राप्त करने की खुशी में करवाया था। यह स्तंभ सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उस युद्ध में प्राप्त की गई राजपूती पराक्रम और आत्मसम्मान की जीत का प्रतीक है। विजय स्तंभ यह दर्शाता है कि चित्तौड़ कभी ना झुकने वाला, स्वाभिमानी और बलिदानी योद्धाओं की भूमि रही है।

वास्तुकला और कलात्मक भव्यता

विजय स्तंभ लगभग 37.19 मीटर (122 फीट) ऊंचा है और इसमें कुल 9 मंजिलें हैं। इसे रेतीले पत्थरों (सैंडस्टोन) से बनाया गया है, जो हल्के पीले रंग के होते हैं। इसकी बाहरी दीवारों पर बारीक नक्काशी की गई है, जिसमें हिंदू देवी-देवताओं, धार्मिक प्रतीकों, पुष्प डिजाइनों और पौराणिक कथाओं को सुंदरता से दर्शाया गया है।इस स्तंभ की बनावट नागर शैली की वास्तुकला को दर्शाती है, जो उस समय की कलात्मक उत्कृष्टता का उदाहरण है। स्तंभ के अंदर एक सर्पिल सीढ़ी है, जिससे ऊपर चढ़ा जा सकता है और आखिरी मंजिल से चित्तौड़गढ़ किले और आसपास के इलाके का अद्भुत दृश्य दिखता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

इस स्तंभ पर खासतौर पर हिंदू धर्म के प्रतीक चिन्ह अंकित हैं। प्रत्येक मंजिल पर स्थित खिड़कियों और दीवारों पर भगवान विष्णु, शिव, ब्रह्मा, गणेश और अन्य देवताओं की मूर्तियों को अत्यंत सुंदरता और भाव के साथ उकेरा गया है। यही कारण है कि इसे सिर्फ विजय का प्रतीक नहीं, बल्कि धार्मिक श्रद्धा का केंद्र भी माना जाता है।विजय स्तंभ का निचला भाग विष्णु को समर्पित है, जिसे कीर्तिस्तंभ भी कहा जाता है। इसके अलावा स्तंभ की दीवारों पर उस समय की संस्कृत में लिखी गई प्रशस्तियां और लेख भी अंकित हैं, जो राणा कुंभा के यश और पराक्रम का वर्णन करती हैं।

पर्यटन की दृष्टि से आकर्षण

विजय स्तंभ आज एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है। हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक इसे देखने के लिए चित्तौड़गढ़ पहुंचते हैं। इसकी ऊँचाई, बारीक कारीगरी और ऐतिहासिक महत्व लोगों को आकर्षित करता है। दिन में जब सूर्य की किरणें इस स्तंभ पर पड़ती हैं, तो यह स्वर्णिम आभा लिए पूरे क्षेत्र को रोशन कर देता है।यह स्तंभ इतिहास के विद्यार्थियों, वास्तु प्रेमियों और धार्मिक आस्था रखने वाले लोगों के लिए अत्यंत प्रेरणास्पद स्थल है। इसके साथ ही, यहां पहुंचकर चित्तौड़ के अन्य किले, महल और जौहर स्थलों को भी देखा जा सकता है, जो समूचे इतिहास की आत्मा को जीवंत करते हैं।

विजय स्तंभ से जुड़ी प्रेरणा

विजय स्तंभ केवल भौतिक निर्माण नहीं है, बल्कि यह उन राजपूत योद्धाओं की स्मृति और बलिदान का प्रतीक है जिन्होंने अपनी मातृभूमि, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। यह स्तंभ आने वाली पीढ़ियों को देशभक्ति, वीरता और आत्मबलिदान की भावना से ओतप्रोत करता है।

संरक्षण की आवश्यकता

हालांकि विजय स्तंभ आज भी मजबूती से खड़ा है, लेकिन समय के साथ इसके संरक्षण की जरूरत बढ़ती जा रही है। पर्यावरणीय प्रभाव, पर्यटकों की भीड़ और समय के साथ पत्थर की नक्काशी पर असर पड़ रहा है। ऐसे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) और स्थानीय प्रशासन को इसके संरक्षण हेतु सख्त और आधुनिक कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस गौरवशाली धरोहर को देख सकें।

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