चारधाम यात्रा तभी मानी जाती है पूर्ण जब हों तीर्थराज पुष्कर के दर्शन, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए क्यों ब्रह्मा जी का यह धाम है सबसे विशिष्ट
भारत में चारधाम यात्रा को मोक्ष प्राप्ति की अंतिम सीढ़ी माना जाता है। बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी और रामेश्वरम — ये चार पवित्र धाम हिन्दू धर्म में अत्यंत पूजनीय हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक और ऐसा तीर्थ है, जिसके दर्शन के बिना चारधाम यात्रा को अधूरा माना जाता है? यह स्थान है – तीर्थराज पुष्कर, जो राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित है। वेदों, पुराणों और संतों की वाणी में पुष्कर को "तीर्थों का राजा" यानी तीर्थराज कहा गया है। इस आस्था की जड़ों को समझना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा को भी उजागर करता है।
क्यों कहलाता है पुष्कर 'तीर्थराज'?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की, तो उनके हाथ से एक कमल पुष्प पृथ्वी पर गिरा। जहां-जहां यह कमल गिरा, वहां जल की तीन पवित्र धाराएं उत्पन्न हुईं, जिन्हें आज 'पुष्कर सरोवर' के नाम से जाना जाता है। इन्हीं जलधाराओं के कारण इस क्षेत्र को "पुष्कर" नाम मिला। यही नहीं, यह स्थान भगवान ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर होने के लिए भी प्रसिद्ध है, जो विश्वभर के श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है।शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा जी द्वारा यज्ञ के दौरान सृष्टि के कल्याण के लिए इस क्षेत्र को विशेष तपस्थली बनाया गया था। तभी से पुष्कर को ‘तीर्थों का राजा’ कहा गया और माना गया कि जब तक तीर्थराज पुष्कर के दर्शन न कर लिए जाएं, तब तक चारधाम यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती।
चारधाम यात्रा के साथ पुष्कर क्यों?
चारधाम यात्रा भारत के चार कोनों पर स्थित धार्मिक स्थलों की यात्रा है, जिसका उद्देश्य जीवन के अंतिम उद्देश्यों—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—की पूर्ति करना होता है। लेकिन तीर्थराज पुष्कर को इन चारों धामों की ऊर्जा और पुण्य को संतुलित करने वाला माना गया है। यह वह स्थान है, जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की दिव्य ऊर्जा का समागम होता है।पुष्कर सरोवर में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होती है। यह माना जाता है कि अगर आपने चारधाम के दर्शन कर लिए हैं लेकिन पुष्कर नहीं गए, तो आपकी यात्रा अधूरी रह जाती है। इसलिए कई श्रद्धालु चारधाम यात्रा से पहले या बाद में पुष्कर अवश्य आते हैं।
आध्यात्मिक महत्त्व और ब्रह्मा मंदिर
पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर विश्व में अकेला ऐसा मंदिर है, जो भगवान ब्रह्मा को समर्पित है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां ब्रह्मा जी के साथ-साथ उनकी पत्नी गायत्री देवी की भी पूजा की जाती है। यह मंदिर त्रेता युग से जुड़ा माना जाता है और इसका उल्लेख अनेक ग्रंथों व पुराणों में मिलता है।पुष्कर मेले के दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा पर सरोवर में स्नान कर ब्रह्मा मंदिर में पूजा करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन यहां स्नान करने से सौ यज्ञों का फल मिलता है।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी है अनूठा
पुष्कर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत समृद्ध स्थल है। यहां का पुष्कर मेला विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें भारत और विदेशों से हजारों पर्यटक शामिल होते हैं। यह मेला न केवल आध्यात्मिकता से जुड़ा होता है, बल्कि यहां ऊंटों की दौड़, लोकनृत्य, हस्तशिल्प और ग्रामीण संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

