चंबल नदी : डकैतों की धरती से जैव विविधता के स्वर्ग तक, वीडियो में देखिये इस रहस्यमयी नदी की अनसुनी कहानी

उत्तर भारत की प्रमुख नदियों में शामिल चंबल नदी को अक्सर लोगों ने डकैतों की पनाहगाह के रूप में देखा और समझा है। लंबे समय तक यह क्षेत्र बंदूकें, खूंखार गिरोहों और खौफ की कहानियों से जुड़ा रहा है। लेकिन आज चंबल का चेहरा बदल चुका है। जिस धरती पर कभी गोली चलती थी, वहां अब बोटिंग होती है। जहां पुलिस और अपराधी आंखों में आंखें डालकर खड़े होते थे, वहां अब पर्यटक दुर्लभ पक्षियों और मगरमच्छों की झलक पाने आते हैं। चंबल नदी न केवल इतिहास और रोमांच से भरपूर है, बल्कि यह भारत की जैव विविधता का एक बेहद महत्वपूर्ण और रहस्यमयी हिस्सा भी है।
पौराणिक कथा से जुड़ी है चंबल की शुरुआत
चंबल नदी का प्राचीन नाम “चर्मण्वती” है। इसकी उत्पत्ति से जुड़ी एक कथा महाभारत काल से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब द्रौपदी के अपमान पर युधिष्ठिर मौन रहे और भीम प्रतिज्ञा से बंधे रहे, तब द्रौपदी ने आकाश की ओर देखकर शपथ ली थी कि वह तब तक अपने बाल नहीं धोएंगी जब तक दु:शासन का रक्त उनके बालों से न धोया जाए। इसी पाप के प्रभाव से धरती पर चंबल की उत्पत्ति हुई, जो तब से ‘पाप मुक्त’ मानी जाती है। इसलिए इस नदी के जल को अत्यंत पवित्र और निर्विकार माना जाता है।
कभी डकैतों का अड्डा थी चंबल घाटी
20वीं सदी के मध्य तक चंबल घाटी का नाम सुनते ही लोगों के जेहन में खौफ बैठ जाता था। यह इलाका एक समय बीहड़ों से भरा हुआ था, जो डकैतों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बन गया था। फूलन देवी, निर्भय गुर्जर, मोहन बिच्छू और मलखान सिंह जैसे कई नामी गिरामी डकैत यहीं पले-बढ़े और पुलिस से लुकाछिपी का खेल खेलते रहे। चंबल के बीहड़ों की पेचीदगी और दुर्गमता ने पुलिस प्रशासन की चुनौतियां भी कई गुना बढ़ा दी थीं। लेकिन 90 के दशक के बाद धीरे-धीरे डकैतों ने आत्मसमर्पण करना शुरू किया और इस इलाके में शांति की एक नई सुबह हुई।
जैव विविधता का खजाना है चंबल
डकैतों से मुक्त होने के बाद चंबल की असली सुंदरता सामने आने लगी। यह नदी अब भारत के सबसे अनोखे और जैविक दृष्टि से समृद्ध क्षेत्रों में गिनी जाती है। चंबल नदी में पाए जाने वाले जीवों की सूची आश्चर्यजनक है। यहां आपको घड़ियाल, गंगेटिक डॉल्फिन, नदी कछुए, सरकारी संरक्षित पक्षी और मगरमच्छ मिलेंगे। खास बात यह है कि चंबल में पाई जाने वाली घड़ियाल प्रजाति संकटग्रस्त मानी जाती है, और यहां उनकी अच्छी संख्या है।वन्य जीव प्रेमियों और फोटोग्राफर्स के लिए चंबल अब एक ‘हॉट स्पॉट’ बन चुका है। चंबल सेंचुरी, जो मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में फैली है, एक सुरक्षित आश्रयस्थल बन चुकी है इन जीवों के लिए।
पर्यटन की नई पहचान
चंबल अब पर्यटकों के लिए एक आकर्षक स्थल बन चुका है। नाव की सवारी करते हुए लोग न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं, बल्कि दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियों और पानी में तैरते घड़ियालों को भी देख सकते हैं। स्थानीय प्रशासन ने यहां इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए हैं। यह क्षेत्र अब प्रकृति प्रेमियों, इतिहासकारों और फोटोग्राफरों के लिए एक आदर्श स्थल बन गया है।
चंबल की चुनौतियाँ
हालांकि चंबल की जैव विविधता और पर्यावरणीय महत्व अत्यधिक है, फिर भी यह कई चुनौतियों का सामना कर रही है। अवैध रेत खनन, प्रदूषण, जल प्रवाह में कमी और जलवायु परिवर्तन जैसे कारक इस नदी की जैविक समृद्धि पर खतरा बनकर मंडरा रहे हैं। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए तो यह प्राकृतिक धरोहर संकट में पड़ सकती है।