बाँसवाड़ा: रेगिस्तान के सूखे में हरियाली का स्वर्ग, 2 मिनट के शानदार वीडियो में जानिए क्यों कहा जाता है इसे ‘राजस्थान का चेरापूंजी’ ?

राजस्थान को अक्सर रेगिस्तान, गर्मी और सूखे की धरती माना जाता है, लेकिन इसी राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित बाँसवाड़ा ज़िला एक ऐसा क्षेत्र है जिसे 'राजस्थान का चेरापूंजी' कहा जाता है। यह नाम सुनकर किसी को भी आश्चर्य हो सकता है, क्योंकि चेरापूंजी देश के सबसे अधिक वर्षा वाले स्थानों में गिना जाता है और राजस्थान आम तौर पर अल्पवृष्टि वाला प्रदेश माना जाता है। तो फिर सवाल यह है कि बाँसवाड़ा को यह उपनाम क्यों दिया गया? आइए जानते हैं इस दिलचस्प उपाधि के पीछे की असली वजहें।
भौगोलिक स्थिति और हरियाली का साम्राज्य
बाँसवाड़ा, राजस्थान के दक्षिणी सिरे पर स्थित है और इसकी सीमाएं मध्यप्रदेश और गुजरात से भी लगती हैं। इस ज़िले की भूगोलिक बनावट पहाड़ी और वन क्षेत्रों से भरपूर है। यहाँ अरावली पर्वतमाला की शाखाएं फैली हुई हैं, और इसी कारण यह इलाका अत्यधिक हरियाली से आच्छादित रहता है। मानसून के दौरान यहाँ की घाटियां, पहाड़ और जंगल एकदम हरे-भरे हो जाते हैं, और चारों ओर एक प्राकृतिक स्वर्ग का दृश्य प्रस्तुत करते हैं।यहाँ औसतन 1,200 से 1,400 मिमी तक बारिश दर्ज की जाती है, जो राजस्थान के अन्य जिलों की तुलना में कई गुना अधिक है। यही कारण है कि बाँसवाड़ा को ‘राजस्थान का चेरापूंजी’ कहा जाता है, क्योंकि यहाँ की बारिश इसे एक अलग ही पहचान देती है।
भील संस्कृति और प्रकृति से जुड़ा जीवन
बाँसवाड़ा जनजातीय बहुल क्षेत्र है, खासकर भील समुदाय की बहुलता यहाँ देखने को मिलती है। यहाँ के लोग सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर जीवन यापन करते आ रहे हैं। वन, जल और भूमि को वे केवल संसाधन नहीं बल्कि देवी-देवताओं के रूप में पूजते हैं। वर्षा उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है, जिससे उनकी खेती, आहार, परंपराएं और त्योहार जुड़े होते हैं।यहाँ के लोगों की जीवनशैली में जल का अत्यधिक महत्त्व है। वे जल स्रोतों को पवित्र मानते हैं और वर्षा को देवता की कृपा मानते हैं। शायद यही आस्था और पर्यावरण के साथ उनका गहरा संबंध भी इस क्षेत्र की हरियाली और जलवायु को संतुलित बनाए रखने में सहायक रहा है।
पर्यटन की अपार संभावनाएं
बारिश के दिनों में बाँसवाड़ा की सुंदरता अपने चरम पर होती है। मानसून में यहाँ की पहाड़ियां कोहरे में लिपटी रहती हैं और झरने बहते हैं। प्रसिद्ध माही नदी और उसके किनारे स्थित माही बांध, कागदी पिकनिक स्पॉट, त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, और सज्जनगढ़ जैसे स्थान पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।यदि राज्य सरकार और पर्यटन विभाग द्वारा यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को उचित रूप से प्रचारित किया जाए तो यह क्षेत्र राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल हो सकता है। हरियाली और पानी की भरमार, यह दोनों ही चीजें राजस्थान में दुर्लभ मानी जाती हैं, और बाँसवाड़ा में दोनों का ही अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
कृषि और जलस्रोतों की भरपूरता
बारिश की अधिकता से बाँसवाड़ा में कृषि की स्थिति अन्य जिलों की तुलना में बेहतर है। यहाँ मक्का, चावल, गेहूं और दलहन जैसी फसलें उगाई जाती हैं। खेतों में हरियाली और पर्याप्त जल उपलब्धता किसानों को मजबूती प्रदान करती है।माही नदी इस ज़िले की जीवनरेखा है, जो पूरे क्षेत्र में जल और ऊर्जा दोनों की आपूर्ति करती है। इसके अलावा कई छोटे-बड़े जलाशय, तालाब और नदियाँ वर्षभर पानी से भरे रहते हैं। यह स्थिति एक ऐसे राज्य में अत्यंत विशेष है जहाँ अधिकांश ज़िलों को पीने के पानी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।
जलवायु परिवर्तन के दौर में एक मिसाल
जब पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन, वर्षा में गिरावट और जल संकट की चुनौतियों से जूझ रहा है, तब बाँसवाड़ा एक सकारात्मक उदाहरण के रूप में सामने आता है। यह ज़िला यह दिखाता है कि यदि पर्यावरण संतुलन बनाए रखा जाए और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की भावना हो, तो किसी भी भौगोलिक परिस्थिति में समृद्ध जीवन संभव है।यह भी सत्य है कि बाँसवाड़ा की बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और खनन जैसे गतिविधियों ने इसकी जलवायु को थोड़ा प्रभावित किया है, लेकिन अभी भी यह क्षेत्र राजस्थान के अन्य जिलों की तुलना में पर्यावरणीय दृष्टि से बेहतर स्थिति में है।
बाँसवाड़ा को 'राजस्थान का चेरापूंजी' कहा जाना केवल एक उपमा नहीं, बल्कि यह इस ज़िले की असल पहचान है। बारिश, हरियाली, जनजातीय संस्कृति और प्राकृतिक समृद्धता इस क्षेत्र को न केवल एक अनोखी भौगोलिक पहचान देती है, बल्कि यह संपूर्ण राज्य के लिए एक प्रेरणा भी है। जब भी आप राजस्थान में बारिश की ठंडी फुहारों और हरे-भरे जंगलों का आनंद लेना चाहें, तो बाँसवाड़ा जरूर जाएं — वहाँ आपको चेरापूंजी जैसा एहसास होगा, वह भी राजस्थान की धरती पर।