कुंभलगढ़ किले के अद्भुत रहस्य! यहां आने से पहले वायरल डॉक्यूमेंट्री में जान लें वो तथ्य जो आपकी यात्रा को बना देंगे और भी रोचक और यादगार
राजस्थान की ऐतिहासिक धरती पर स्थित कुंभलगढ़ किला सिर्फ एक पर्यटन स्थल ही नहीं, बल्कि इतिहास, रहस्य और शौर्य का अद्भुत संगम है। अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा यह किला राजसमंद जिले में स्थित है और अपनी मजबूत दीवारों, अद्भुत स्थापत्य कला, और कई अनसुने रहस्यों के लिए विश्वविख्यात है। लेकिन यहां आने से पहले कुछ ऐसी बातें हैं जो हर सैलानी और इतिहास प्रेमी को जरूर जाननी चाहिए।
36 किलोमीटर लंबी दीवार – भारत की "ग्रेट वॉल"
कुंभलगढ़ किले की सबसे बड़ी विशेषता इसकी दीवार है, जो लगभग 36 किलोमीटर लंबी है। यह चीन की ग्रेट वॉल के बाद विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। इसे देखकर हर आगंतुक चकित रह जाता है। यह दीवार इतनी चौड़ी है कि पांच घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं। यही दीवार इस किले को बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित रखने में सहायक रही।
महाराणा प्रताप की जन्मस्थली
बहुत कम लोग जानते हैं कि वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म भी इसी कुंभलगढ़ किले में हुआ था। उनका जन्म 1540 में हुआ था, जब मेवाड़ के महाराजा उदयसिंह द्वितीय ने युद्ध की परिस्थितियों में यहीं शरण ली थी। इस किले ने न केवल प्रताप को जन्म दिया, बल्कि उन्हें शौर्य और आत्मसम्मान की विरासत भी सौंपी।
अजेय किला – कभी नहीं जीता गया युद्ध में
इतिहासकार मानते हैं कि कुंभलगढ़ किला एक ऐसा किला रहा है जिसे सीधे युद्ध में कभी कोई जीत नहीं पाया। इसकी संरचना और सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत थी कि मुगलों से लेकर मराठों तक – कोई भी इसे फतेह नहीं कर सका। कुछ मौकों पर धोखे और चालबाज़ी से इसे घेर लिया गया, लेकिन युद्ध में यह किला हमेशा अजेय रहा।
रहस्यमयी सुरंगें और गुप्त दरवाज़े
कुंभलगढ़ किले की दीवारों में कई गुप्त सुरंगें और दरवाजे बने हैं, जो दुश्मनों से बचने या छिपकर भागने के लिए इस्तेमाल होते थे। यह सुरंगें अब भी कई हिस्सों में बंद पड़ी हैं, और माना जाता है कि इनमें आज भी कई राज़ दफन हैं। कहा जाता है कि कुछ सुरंगों का मार्ग सीधे आसपास के जंगलों या पहाड़ियों तक जाता है।
360 से अधिक मंदिर – एक किले में पूरा तीर्थ
इस किले के अंदर 360 से भी अधिक मंदिर स्थित हैं, जिनमें हिन्दू और जैन दोनों संप्रदायों के मंदिर शामिल हैं। इनमें से कुछ मंदिर हजारों साल पुराने हैं और अपनी मूर्तिकला, नक्काशी और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो यह किला एक धार्मिक नगर की तरह भी कार्य करता रहा हो।
किले की रहस्यमयी रातें
स्थानीय लोगों और कुछ पर्यटकों का दावा है कि रात के समय किले में अजीब सी आवाज़ें, पदचाप और मंद मंद रोशनी दिखाई देती है। कुछ लोगों ने इसे महज़ भ्रम बताया, तो कुछ इसे आध्यात्मिक या अदृश्य शक्तियों का संकेत मानते हैं। हालांकि इसपर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है, लेकिन यह रहस्य पर्यटकों को यहां खींच लाता है।
वन्यजीवन से घिरा, प्रकृति के करीब
कुंभलगढ़ किला केवल ऐतिहासिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से भी अद्वितीय है। किले के चारों ओर कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य फैला हुआ है, जहां भालू, तेंदुआ, नीलगाय और कई दुर्लभ पक्षी देखे जा सकते हैं। यह अनुभव इतिहास और प्रकृति दोनों का संगम प्रदान करता है।
UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट का हिस्सा
साल 2013 में कुंभलगढ़ किले को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में मान्यता दी गई थी। यह किला "राजस्थान के हिल फोर्ट्स" श्रेणी में आता है, जिसमें चित्तौड़गढ़, आमेर, जैसलमेर, रणथंभौर और गगरोन किलों के साथ इसे शामिल किया गया।

