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आखिर फिर से कैसे बाघों के लिए स्वर्ग बनी सरिस्का टाइगर रिजर्व की धरती, वीडियो में देखिये 2004 के संकट से लेकर अबतक की कहानी 

आखिर फिर से कैसे बाघों के लिए स्वर्ग बनी सरिस्का टाइगर रिजर्व की धरती, वीडियो में देखिये 2004 के संकट से लेकर अबतक की कहानी 

भारत में बाघों के संरक्षण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, जिनमें सरिस्का टाइगर रिजर्व की कहानी सबसे दिलचस्प और प्रेरणादायक है। यह रिजर्व राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है और एक समय ऐसा भी था जब यहां बाघों की संख्या शून्य हो गई थी। लेकिन अब कुछ ही सालों में सरिस्का एक बार फिर बाघों के लिए स्वर्ग बन गया है। यह कहानी बाघों के संरक्षण के लिए संघर्ष, पुनर्निर्माण और प्रयासों की है, जिसमें सरकारी पहल, संरक्षण योजनाओं और स्थानीय लोगों की मदद से इस रिजर्व को पुनर्जीवित किया गया। आइए जानते हैं कि कैसे सरिस्का टाइगर रिजर्व ने 2004 के संकट से उबरकर अब फिर से बाघों के लिए सुरक्षित ठिकाना प्रदान किया।

सरिस्का टाइगर रिजर्व का ऐतिहासिक महत्व
सरिस्का टाइगर रिजर्व का इतिहास बहुत समृद्ध और दिलचस्प है। इस रिजर्व की स्थापना 1955 में की गई थी और 1978 में इसे 'प्रोजेक्ट टाइगर' के तहत शामिल किया गया था, जिसका उद्देश्य बाघों की घटती संख्या को रोकना था। यह अभ्यारण्य 866 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जो अरावली पर्वतमाला के शुष्क वन क्षेत्र में स्थित है। यह अभ्यारण्य वन्यजीवों की अद्भुत विविधता का घर है, जिसमें बाघ, तेंदुआ, चीता, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर, चीतल और पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियाँ शामिल हैं।

2004 का संकट: बाघों की आबादी में कमी
सरिस्का टाइगर रिजर्व का सबसे बुरा समय 2004 में आया था। इस साल के अंत में पता चला कि रिजर्व के सभी बाघों का शिकार कर लिया गया है। यह खबर सुनकर न केवल संरक्षण विशेषज्ञ बल्कि पर्यावरणविद भी हैरान रह गए। यहाँ के बाघों का स्थानीय तस्करों और शिकारियों द्वारा शिकार किया गया और यह एक बड़ा पर्यावरणीय संकट बन गया। सरिस्का में बाघों की अनुपस्थिति ने पूरे देश में चिंता की लहर पैदा कर दी। बाघों की स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि इसने सरकार और अन्य संबंधित एजेंसियों को जवाबदेह बना दिया। राजस्थान सरकार ने सख्त कार्रवाई की और इस मुद्दे को गंभीरता से लिया। 2005 में उठाए गए महत्वपूर्ण कदम: रेड अलर्ट और संरक्षण योजनाएँ

2004 के बाद सरकार ने शिकार और वन्यजीव आपातकाल के खिलाफ रेड अलर्ट घोषित किया। साथ ही, सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण के लिए नए कदम उठाए गए। बाघों के शिकार की स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता जताई गई और बाघों के पुनर्वास की योजना बनाई गई। इस समय तक, सरिस्का की जैव विविधता की रक्षा के लिए गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता थी।

2008 में बाघों का स्थानांतरण

सरिस्का में बाघों को फिर से लाने के लिए 2008 में एक ऐतिहासिक पहल शुरू की गई थी। राजस्थान सरकार ने 'प्रोजेक्ट टाइगर' के तहत रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान से बाघों को सरिस्का में स्थानांतरित करने की योजना बनाई। यह दुनिया का पहला प्रयास था, जिसमें बाघों को एक बाघ अभयारण्य से दूसरे में सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया गया।इस पुनर्वास कार्यक्रम में पहले चरण में 1 बाघ और 2 बाघिनों को सरिस्का भेजा गया। इन बाघों को यहां लाकर बसाया गया और उनकी देखभाल की गई। जैसे-जैसे समय बीतता गया, ये बाघ सरिस्का के जंगलों में फैलने लगे और कुछ ही सालों में यहां बाघों की संख्या बढ़ने लगी।

2012-2013 में जन्मे शावक: बाघों की संख्या में वृद्धि
2008 में बाघों के स्थानांतरण के बाद सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों की स्थिति में सुधार देखा गया। 2012 में सरिस्का में पहले शावकों का जन्म हुआ। इसके बाद 2013 में शावकों का जन्म हुआ और धीरे-धीरे बाघों की संख्या में वृद्धि होने लगी। सरिस्का में बाघों की संख्या अब 33 हो गई है, जिसमें 11 वयस्क बाघ, 14 वयस्क बाघिन और 8 शावक शामिल हैं। इसे बाघ संरक्षण की दिशा में एक बड़ी सफलता माना जा रहा है और सरिस्का टाइगर रिजर्व अब एक बार फिर बाघों के लिए आदर्श घर बन गया है।

सरिस्का टाइगर रिजर्व की अद्भुत जैव विविधता
सरिस्का टाइगर रिजर्व न केवल बाघों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की वनस्पति और अन्य वन्यजीव भी अनोखे हैं। यहां के शुष्क पर्णपाती जंगलों में ढोक, खैर, बेर और पलाश जैसे विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं। इसके अलावा यह रिजर्व पक्षी प्रेमियों के लिए भी स्वर्ग है, क्योंकि यहां दुर्लभ पक्षियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, जैसे पेंटेड स्टॉर्क, गुल, ग्रीन बी-ईटर और अन्य। यहां तेंदुए, चीते, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर, भालू और अन्य जानवर भी पाए जाते हैं। यह रिजर्व वन्यजीवों के लिए उपयुक्त आवास प्रदान करता है और पर्यटकों को एक अद्भुत अनुभव देता है।

सरिस्का में सफारी और पर्यटन
सरिस्का टाइगर रिजर्व में पर्यटकों के लिए सफारी का आयोजन किया जाता है, जिसमें जीप और कैंटर सफारी की सुविधा उपलब्ध है। यहां सफारी का अनुभव आपको वन्यजीवों को करीब से देखने का मौका देता है, खासकर बाघों को उनके प्राकृतिक आवास में घूमते देखना रोमांचक होता है। सरिस्का में पर्यटकों के लिए सर्दियों का समय सबसे अच्छा माना जाता है, जब मौसम सुहावना होता है और बाघों को देखने की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा यहां गर्मियों में भी सफारी का आनंद लिया जा सकता है, क्योंकि इस समय बाघ जल स्रोतों के पास देखे जाते हैं।

निष्कर्ष
आज सरिस्का टाइगर रिजर्व भारत के सबसे महत्वपूर्ण और सफल टाइगर रिजर्व में से एक बन गया है। 2004 के संकट से उबरते हुए यह रिजर्व बाघ संरक्षण में एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है। यहां बाघों की संख्या बढ़कर 33 हो गई है और यह एक बार फिर बाघों के लिए स्वर्ग बन गया है। इस सफलता के पीछे भारत सरकार, वन्यजीव संरक्षण संगठनों और स्थानीय लोगों की कड़ी मेहनत और प्रयास हैं। अब सरिस्का टाइगर रिजर्व एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुका है, जहां पर्यटक न केवल बाघों को देख सकते हैं, बल्कि इसके अद्भुत वन्यजीवन और प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद ले सकते हैं।

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