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राजस्थान के एक ऐसे संत जिनके चरणों में हिन्दू-मुस्लिम दोनों झुकते हैं, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए रामदेवरा मेले से जुड़ी खास बातें

राजस्थान के एक ऐसे संत जिनके चरणों में हिन्दू-मुस्लिम दोनों झुकते हैं, वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए रामदेवरा मेले से जुड़ी खास बातें

राजस्थान में ऐसे कई महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने मानव रूप धारण कर अपने कर्म और तप से यहां के लोक जीवन को आलोकित किया। अपने चरित्र, कर्म और वचनबद्धता के कारण उन्हें जनमानस में लोक देवता की उपाधि मिली और वे जन-जन द्वारा पूजे जाने लगे। ऐसे ही एक लोक देवता हैं बाबा रामदेव, जिनका मुख्य मंदिर जैसलमेर जिले के रामदेवरा में है, जो सद्भावना का जीता जागता उदाहरण है। हिंदू समाज में वे "बाबा रामदेव" और मुस्लिम समाज में "रामसा पीर" के नाम से पूजे जाते हैं। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि म्हारो हेलो सुनो जी रामा पीर.., घणी-घणी खम्मा बाबा रामदेव जी नै..., पिच्छम धरण स्यूं म्हारा पीर जी पधारिया..., घर अजमल अवतार लियो, खम्मा-खम्मा हो म्हारा रुणीचाई रा धणिया... जैसे भजनों पर नाचते-गाते श्रद्धालु रामदेवरा पहुंचते हैं। हालांकि, इस बार कोरोना का असर रहेगा। 


राजस्थान के पोकरण से करीब 12 किलोमीटर दूर रामदेवरा में लोग मध्यकालीन लोक देवता बाबा रामदेव के दर्शन के लिए आते हैं. बाबा रामदेव को भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है। उनकी जन्म तिथि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष द्वितीया को होती है। रामदेवरा मेला 20 अगस्त से शुरू हो रहा है. यह मेला एक महीने से ज्यादा समय तक चलता है। हालांकि, कई श्रद्धालु भाद्र माह की दशमी यानी 28 अगस्त को रामदेव जयंती पर रामदेवरा पहुंचना चाहते हैं। लेकिन कोरोना महामारी के कारण मेला नहीं लगेगा। रामदेवरा में साल में दो बार भव्य मेले का आयोजन होता है। शुक्ल पक्ष में दूज से दशमी तक और भादवा और माघ में मेला लगता है। भादवा महीने में राजस्थान के किसी भी रास्ते पर निकलिए तो सैकड़ों की संख्या में जत्थे हाथों में सफेद या पांच रंग के झंडे लिए रामदेवरा की ओर जाते नजर आते हैं।

 इन जत्थों में युवा, बूढ़े, पुरुष-महिलाएं और हर उम्र के बच्चे बिना थके पूरे उत्साह के साथ लगातार चलते रहते हैं। बाबा रामदेव के जयकारे लगाते हुए ये जत्थे मीलों का सफर तय कर बाबा को श्रद्धांजलि देते हैं। अपने साथ लाए गए ध्वज मुख्य मंदिर में चढ़ाते हैं। भादवा मेले में महाप्रसाद बनाया जाता है। श्रद्धालु भोजन भी करते हैं और दान भी करते हैं। यहां दर्शनार्थियों के लिए बड़ी संख्या में धर्मशालाएं और विश्राम स्थल बनाए गए हैं। सरकार मेले के लिए व्यापक प्रबंध करती है। रात्रि जागरण के दौरान रामदेवजी के भोपा रामदेवजी का थांवला और फड़ पढ़ते हैं। सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक माने जाने वाले लोकदेवता बाबा रामदेव की समाधि के दर्शन के लिए देश भर से विभिन्न धर्मों के लोग, विशेषकर आदिवासी श्रद्धालु इस वार्षिक मेले में आते हैं। मेले के दौरान बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए चार से पांच किलोमीटर लंबी कतारें लगती हैं और जिला प्रशासन के अलावा विभिन्न स्वयंसेवी संगठन दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए निस्वार्थ भाव से भोजन, पानी और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराते हैं। 

लोक देवता बाबा रामदेव जी के मेले में देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु सबसे पहले जोधपुर में मसूरिया पहाड़ी पर स्थित बाबा रामदेव जी के गुरु बाबा बालीनाथ जी की समाधि के दर्शन करते हैं तथा उसके बाद पैदल यात्रा के साथ-साथ विभिन्न साधनों का उपयोग कर रुणिचा धाम बाबा रामदेव जी के दर्शन कर बाबा रामदेव जी के प्रति अपनी अटूट आस्था व भक्ति प्रदर्शित करते हैं। इन श्रद्धालुओं के स्वागत व सम्मान तथा पदयात्रियों की सेवा के लिए जोधपुर में अनेक सेवा शिविर आयोजित किए जाते हैं। श्रद्धा व सामर्थ्य के अनुसार व्यक्तिगत, सामुदायिक, सामूहिक व संघ समितियों के बैनर तले आयोजित किए जाने वाले इन विभिन्न शिविरों में पदयात्रियों के लिए चाय, दूध, कॉफी, जूस, बिस्किट, फल, नाश्ता व पूर्ण भोजन की व्यवस्था की जाती है। पदयात्रियों के पैरों के छालों पर पट्टी बांधने व मालिश करने के अलावा विश्राम, स्नान व दैनिक कार्य की सुविधा भी प्रदान की जाती है। अनेक शिविरों में पदयात्रियों को साफ-सफाई व स्वच्छता के साथ उच्च गुणवत्ता की सुविधाओं के साथ अनुशासित तरीके से सेवा प्रदान की जाती है। 

एक और मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति भगवान के दर्शन के लिए तीर्थ यात्रा पर जाता है तो अगर आप उसकी यात्रा को सुगम बनाने में मदद करते हैं तो आपको भी भगवान के दर्शन का पुण्य लाभ मिलता है। रुणिचा में जिस स्थान पर बाबा ने समाधि ली थी, वहां बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने एक भव्य मंदिर बनवाया था। बाबा की समाधि के अलावा उनके परिवार के सदस्यों की समाधियां भी इसी मंदिर में स्थित हैं। मंदिर परिसर में बाबा की दत्तक बहन डाली बाई की समाधि, डाली बाई का कंगन और राम झरोखा भी स्थित है।

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