Samachar Nama
×

जवाई बांध में रोमांच का संगम! जहां लेपर्ड सफारी से लेकर ट्रैकिंग तक करने के लिए क्या कुछ है खास, वीडियो में देखे फुल ट्रेवल गाइड 

जवाई बांध में रोमांच का संगम! जहां लेपर्ड सफारी से लेकर ट्रैकिंग तक करने के लिए क्या कुछ है खास, वीडियो में देखे फुल ट्रेवल गाइड 

राजस्थान के पाली ज़िले के अरावली अंचल में बसा जवाई बांध (Jawai Bandh) अब सिर्फ एक सिंचाई परियोजना नहीं, बल्कि रोमांचक ‘वाइल्ड एस्केप’ का पर्याय बन चुका है। यहाँ के ग्रेनाइट हिल्स, झीलों और जंगली घाटियों में अनाथोरोपिक (मानव-वन्यजीव सहअस्तित्व) की दुर्लभ कहानी रची जाती है, जहाँ तेंदुए, मगरमच्छ, प्रवासी पक्षी और रबारी पशुपालकों की संस्कृति, पर्यटकों को एक साथ विस्मित कर देती है। इस रिपोर्ट में जानिए कि जवाई में आपको लेपर्ड सफारी, ट्राइबल एक्सपीरियंस और ट्रेकिंग के कौन-कौन से अनुभव खास बनाते हैं।


लेपर्ड सफारी: बिना बाड़ वाली ‘हिल कैट कैपिटल’
जवाई वह विरल जगह है जहाँ तेंदुए प्राकृतिक गुफाओं में रहते हैं और आसपास की बस्तियों में चरने वाले मवेशियों व रबारी समुदाय के बीच टकराव न के बराबर है। सुबह सूर्योदय से पहले या शाम ढलते ही ओपन 4×4 जीप में निकली सफारी, 90 फीसदी तक ‘साइटिंग रेट’ का दावा करती है। प्रशिक्षित ट्रैकर पहाड़ी दरारों से निकलती मादा-तेंदुआ व शावकों की गतिविधि पर नज़र रखते हैं। शिकार के लिए अधिक सक्रिय महीनों—अक्टूबर से अप्रैल—के दौरान फ़ोटोग्राफ़ी का स्वर्णकाल माना जाता है।

सफारी के परे: स्लॉथ बेयर से नीलगाय तक
हालाँकि जवाई का पोस्टर-बॉय तेंदुआ है, मगर सफारी क्षेत्र की वनस्पति में स्लॉथ बेयर, इंडियन वुल्फ, चिंकाड़ा व नीलगाय जैसे स्तनपायी भी देखे जा सकते हैं; वहीं जलाशय के दलदलों में 300 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ—जैसे ग्रेट थिक-नी, एशियन पैराडाइज़ फ्लायकैचर और इंडियन ग्रे हॉर्नबिल—शोर मचाती मिलती हैं। अनुभवी नैचुरलिस्ट हर दृश्य को फील्ड गाइड में बदल देते हैं, जिससे सफ़र शैक्षणिक भी बनता है।

रबारी ट्राइबल लाइफ: इंसान-तेंदुआ दोस्ती की मिसाल
जवाई के चारों ओर बसे रबारी चरवाहे सदियों से तेंदुए को गोड इज इन द कैट मानकर पूजते हैं। ‘वॉक विद रबारी’ एक्टिविटी के दौरान आप उनके साथ बकरियाँ चराते हुए पहाड़ियों से गुज़रते हैं, पारंपरिक लाल पगड़ी-सफ़ेद धोतियों में रबारी बुज़ुर्ग तेंदुए को देखकर भी शांत रहना सिखाते हैं। दिलचस्प तथ्य यह कि इन गाँवों में मानव-तेंदुआ संघर्ष का कोई दर्ज़ इतिहास नहीं है।

ट्रेकिंग: ग्रेनाइट की भूल-भुलैया में सूर्योदय
अगर एडवेंचर आपकी नसों में दौड़ता है, तो सुबह चार बजे शुरू होने वाली सनराइज़ ट्रेक मिस न करें। पथरीली चट्टानों पर 45-90 मिनट की चढ़ाई के बाद जब अरावली के पीछे से नारंगी सूरज झाँकता है, तो जलाशय मिरर की तरह लहराता दिखता है। अलग-अलग फिटनेस लेवल के लिए लचीले ट्रेल उपलब्ध हैं, जिससे परिवार भी सुरक्षित तरीक़े से ट्रेक का लुत्फ़ उठा सकता है।

मगरमच्छ और पंखों वाला स्वर्ग
जवाई बांध की तली में 500 से ज़्यादा भारतीय मग़र (मगरमच्छ) धूप सेंकते दिख जाते हैं। दोपहर के क्रोकोडाइल बोट-सफारी स्लॉट (1 बजे से 3 बजे) फोटोग्राफ़रों के लिए वरदान हैं। सर्दियों में झील के ऊपर फ्लेमिंगो, डेमोइज़ेल क्रेन व पेलिकन रंग भरते हैं, जो इसे रैमसर साइट जैसी आभा देते हैं।

सुकून और लग्ज़री: योगा से हाई-टी तक
थोड़ी शांति चाहिए तो कैंप साइट्स योग और मेडिटेशन सेशन कराती हैं, जहाँ खुले आसमान के नीचे साँसों की लय नदी की मौन लहरों से मिलती है। शाम ढले चट्टानों पर हाई-टी का इंतज़ाम, दिनभर के सफ़र की थकान को विलासिता में बदल देता है। रात में जंगल कैंपिंग के दौरान तारों भरा आसमान और लोकगीतों की गूँज, अनुभव को यादगार बनाती है।

कब और कैसे पहुँचे?
बेस्ट सीज़न: अक्टूबर–अप्रैल; तापमान 10 °C तक गिर सकता है, इसलिए ऊनी कपड़े साथ रखें।
निकटतम एयरपोर्ट: उदयपुर (140 किमी) व जोधपुर (160 किमी) से टैक्सी/बस सेवा उपलब्ध।
रेल मार्ग: फलना जंक्शन महज़ 50 किमी दूर है, जहाँ दिल्ली-अहमदाबाद रूट की प्रायः सभी एक्सप्रेस ट्रेनें रुकती हैं।
ठहरने के विकल्प: लेपर्ड कैंप, लक्ज़री टेंट, होमस्टे और ईको-लॉज का विस्तृत नेटवर्क; अग्रिम बुकिंग ज़रूरी, क्योंकि सर्दियों में मांग चरम पर रहती है।

जिम्मेदार पर्यटन की दरकार
जवाई की असली लय ‘मनुष्य-प्रकृति सामंजस्य’ में बसती है। अतः सफारी में नो-लाउड म्यूज़िक, नो प्लास्टिक और निर्धारित पगडंडियों का पालन अनिवार्य है। रबारी समुदाय से उत्पाद खरीदकर उनकी अर्थव्यवस्था में भागीदारी करें और वन्यजीवों को सुरक्षित दूरी से निहारें।

Share this story

Tags