रणथम्भौर टाइगर रिजर्व का 1,000 साल पुराना इतिहास, 3 मिनट के शानदार वीडियो में करे 10 जोन और बाघों की रोमांचक दुनिया का पूरा सफर

राजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िले में स्थित रणथम्भौर टाइगर रिजर्व भारत के सबसे प्रसिद्ध और ऐतिहासिक टाइगर रिज़र्व्स में से एक है। यह न केवल बाघों की संख्या और संरक्षित वन्य जीवन के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक विरासत और भौगोलिक विशेषता इसे अन्य अभयारण्यों से अलग बनाती है। अरण्य, किलों और झीलों के बीच फैला यह टाइगर रिजर्व पर्यटकों, वन्यजीव प्रेमियों और इतिहासकारों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है।
रणथम्भौर का नाम सुनते ही सबसे पहले जिस चीज़ की छवि उभरती है, वह है इसकी भव्यता और जंगली जीवन का अद्भुत संगम। इस रिजर्व का इतिहास काफी पुराना है। इसका नाम ‘रणथम्भौर किले’ से पड़ा है, जो इस वन क्षेत्र के बीचों-बीच स्थित है और आज भी उसकी दीवारें यहां के गौरवशाली अतीत की गवाही देती हैं। यह किला 10वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था और कई राजवंशों—जैसे चौहान, दिल्ली सल्तनत और मेवाड़—का यह युद्धस्थल रह चुका है। यह संरक्षित क्षेत्र 1955 में एक सवाई माधोपुर गेम सैंक्चुअरी के रूप में स्थापित किया गया था और 1973 में इसे ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के अंतर्गत टाइगर रिजर्व घोषित किया गया।
1980 में इसे एक राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। इसके बाद 1984 में इसके आसपास के कुछ जंगलों को ‘सवाई मानसिंह सैंक्चुअरी’ और ‘केलादेवी सैंक्चुअरी’ के रूप में संरक्षित किया गया। अंततः 1991 में इन दोनों सैंक्चुअरीज़ को भी रणथम्भौर टाइगर रिज़र्व में मिला दिया गया, जिससे यह एक विशाल वन्यजीव क्षेत्र बन गया। आज इसका कुल क्षेत्रफल करीब 1,334 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें कोर ज़ोन और बफर ज़ोन दोनों शामिल हैं।
रणथम्भौर टाइगर रिजर्व को उसकी जोन प्रणाली के अनुसार विभाजित किया गया है। यहाँ कुल 10 ज़ोन हैं, जिनमें ज़ोन 1 से 5 को कोर ज़ोन कहा जाता है और ज़ोन 6 से 10 को बफर ज़ोन माना जाता है। हालाँकि, दोनों प्रकार के ज़ोन में बाघों की संख्या और दर्शन की संभावना लगभग बराबर मानी जाती है।
जोन 1 अपेक्षाकृत नया लेकिन रोमांचक इलाका है जहाँ कुछ प्रमुख बाघिनों को देखा गया है, खासकर 'Arrowhead' और 'Noor' जैसी प्रसिद्ध बाघिनों को।
जोन 2 ऐतिहासिक रूप से सबसे ज्यादा टाइगर साइटिंग वाला जोन रहा है। यहां के 'Phuta Kot', 'Jogi Mahal' और 'Nal Ghati' जैसे क्षेत्र बेहद लोकप्रिय हैं।
जोन 3 का 'Padam Talao' तालाब और 'Jogi Mahal' क्षेत्र इसे फ़ोटोग्राफ़रों के लिए स्वर्ग बना देते हैं।
जोन 4 में बाघिन 'Krishna' और उसके बच्चों के साथ-साथ शानदार झीलों और प्राचीन खंडहरों का सुंदर मेल देखने को मिलता है।
जोन 5 भी बाघों की नियमित उपस्थिति के लिए जाना जाता है और यहाँ की ‘Singhdwar’ एंट्री पॉइंट से जंगली सफारी शुरू होती है।
अब बात करें जोन 6 से 10 की, तो ये ज़ोन बफर ज़ोन की श्रेणी में आते हैं, लेकिन यहाँ बाघों की संख्या भी अच्छी-खासी है।
जोन 6 में 'Chakal' और 'Kundal' जैसे स्थान बाघों की मूवमेंट के लिए जाने जाते हैं।
जोन 7 और 8 अपेक्षाकृत शांत ज़ोन हैं लेकिन यहाँ बाघों की उपस्थिति अक्सर देखी जाती है।
जोन 9, जो की सबसे अलग दिशा में है, अरावली की तलहटी और बड़ी झीलों से घिरा हुआ है, यहाँ 'T-42 Fateh' बाघ अक्सर देखा जाता है।
जोन 10 नया जोन है लेकिन लगातार बाघों के मूवमेंट के कारण यह भी काफी लोकप्रिय होता जा रहा है।
रणथम्भौर में सिर्फ बाघ ही नहीं, बल्कि तेंदुआ, स्लॉथ बियर, लकड़बग्घा, नीलगाय, सांभर, मगरमच्छ और 300 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं। यहाँ का वन्य जीवन न केवल जैव विविधता का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि यदि सही नीतियाँ अपनाई जाएँ तो विलुप्त होती प्रजातियों को बचाया जा सकता है।
इस टाइगर रिजर्व में सफारी करने के लिए सरकारी गाइड्स और जीप/कैंटर उपलब्ध होते हैं। आमतौर पर सुबह और शाम—दो टाइम स्लॉट में सफारी आयोजित होती है। बुकिंग वन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट या स्थानीय अधिकृत एजेंट्स के माध्यम से की जा सकती है। सफारी के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से जून तक माना जाता है, जब जंगल हरा-भरा होता है और पानी के स्रोतों पर वन्यजीवों को देखा जा सकता है।
रणथम्भौर न केवल बाघ दर्शन का प्रमुख केंद्र है, बल्कि यह शिक्षा, संरक्षण और पर्यटन का भी आदर्श उदाहरण बन चुका है। यह वो स्थान है जहाँ इतिहास, प्रकृति और संरक्षण एक साथ मिलकर एक ऐसे अनुभव की रचना करते हैं जिसे जीवनभर नहीं भुलाया जा सकता।