आखिर राजस्थान के कुम्भलगढ़ फोर्ट में ही क्यों है 360 हिन्दू और जैन मंदिर ? 2 मिनट के लीक्ड फुटेज में देखे इनकी खूबसूरत नक्काशी
राजस्थान की शान और भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहरों में से एक है कुम्भलगढ़ किला, जो न सिर्फ अपनी वास्तुकला और सुरक्षा व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां मौजूद 360 हिंदू और जैन मंदिरों के कारण भी रहस्यमय और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है। अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा यह दुर्ग राजसमंद जिले में स्थित है और समुद्र तल से लगभग 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण इसकी बनावट और स्थान दोनों ही पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
मेवाड़ की महानता का प्रतीक
कुम्भलगढ़ किला 15वीं सदी में राणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया था। राणा कुम्भा मेवाड़ के एक शक्तिशाली और दूरदर्शी शासक थे। उन्होंने इस किले को न केवल एक सैन्य गढ़ के रूप में विकसित किया, बल्कि इसे धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का भी केंद्र बनाया। यही कारण है कि यहां इतने बड़े पैमाने पर मंदिरों का निर्माण करवाया गया — जिसमें से अधिकांश हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित हैं और शेष जैन तीर्थंकरों को।
360 मंदिरों का रहस्य
कुम्भलगढ़ किले में 360 मंदिर हैं, जिनमें से लगभग 300 जैन मंदिर हैं और शेष हिंदू मंदिर। यह संख्या सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि मेवाड़ की धार्मिक सहिष्णुता, स्थापत्य कला की पराकाष्ठा और आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक है। जैन मंदिरों की इतनी बड़ी संख्या यह दर्शाती है कि उस काल में जैन धर्म का प्रभाव मेवाड़ में गहरा था और यहां के शासकों ने सभी धार्मिक समुदायों को समान सम्मान दिया।
इन मंदिरों में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं – नीलकंठ महादेव मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है, और पार्श्वनाथ जैन मंदिर, जिसकी जटिल नक्काशी और शांत वातावरण किसी भी दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देता है। किले के भीतर मौजूद हर मंदिर अपने स्थापत्य में अनोखा है, और उनमें की गई पत्थर की नक्काशी, कलात्मक मूर्तियाँ और स्तंभ आज भी उस युग की उच्च स्तरीय शिल्पकला का परिचय देती हैं।
एक दुर्ग, जिसकी दीवारें चीन की दीवार से टक्कर लें
कुम्भलगढ़ किला न केवल मंदिरों के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी दीवारें भी विश्व प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि इस किले की परिधि करीब 36 किलोमीटर लंबी है, जो कि भारत में किसी भी दुर्ग की सबसे लंबी दीवार है। यह दीवार इतनी चौड़ी है कि एक साथ पाँच घोड़े उस पर दौड़ सकते हैं। यही कारण है कि इसे अक्सर "भारत की ग्रेट वॉल" भी कहा जाता है।
क्यों बना यह किला शत्रुओं के लिए अभेद्य
इतिहास में कुम्भलगढ़ को अभेद्य दुर्ग के रूप में जाना जाता है। इसका स्थान ऐसा है कि शत्रु इसे आसानी से देख ही नहीं सकते थे। ऊपर से मजबूत दीवारें, चारों ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ स्थान और भीतर बहती जल की गुप्त धाराएं — सब मिलकर इसे एक सैन्य दृष्टिकोण से परिपूर्ण बनाती थीं। मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं ने कई बार इस किले को जीतने की कोशिश की, लेकिन हर बार उन्हें असफलता हाथ लगी।
महाराणा प्रताप का जन्मस्थान
कुम्भलगढ़ किला इसलिए भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था, जो न सिर्फ राजस्थान बल्कि भारत के सबसे वीर और स्वाभिमानी राजाओं में गिने जाते हैं। उनके साहस, आत्मसम्मान और मातृभूमि के लिए समर्पण ने उन्हें अमर बना दिया, और इस किले को गौरवशाली पहचान दी।
आज भी खड़ा है इतिहास का गवाह
कुम्भलगढ़ किला आज एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है और यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों (World Heritage Sites) में भी शामिल है। हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक इस किले में आकर इसकी भव्यता और धार्मिक गूढ़ता का अनुभव करते हैं। किले में आज भी कई मंदिरों में पूजा होती है, और विशेष पर्वों पर यहां धार्मिक आयोजन होते हैं।

