Today Special मखमल में जूता लपेटकर मारते थे Sharad Joshi लेखन को बताते थे निजी उद्देश्य
शरद जोशी भारतीय साहित्य के इतिहास का वो नाम है जो सोये हुए लोगो को जगाने का काम करता है। जी हाँ,जोशी को जाना जाता है उनके व्यंगय के लिए। उनके व्यंगय की सबसे ख़ास बात ये थी की वो हरिशंकर परसाई के तरह निहायत कड़वा नहीं था,जिसे सुनकर सीधा सीना छलनी हो जाये। बल्कि जोशी तो मखमल में जूता लपेटकर समाज को मारते थे। सम्भव है आज के जमाने में यदि परसाई और जोशी दोनों जीवित होते तो परसाई को तो निश्चित ही दंड सुनाया जाता क्यूंकि इतना कड़वा आज कल भला सुन ही कौन पाता है। हाँ जोशी को थोड़े समय बाद दंड मिलता। पर ये तय है की दंड तो दोनों के ही नसीब में आता।

खैर आज लेखक और व्यंग्यकार शरद जोशी की 30 वि पुण्यतिथि है। और आज के मौके पर बस उन्ही की बाते की जाएगी। कहते है वे शुरू से व्यंगायकर नहीं थे लेकिन उनकी आलोचना की आदत ने उन्हें व्यंगायकर बना दिया और फिर यहीं उनकी पहचान बन गया।
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खैर शरद की ये व्यंगय करने की आदत इस कदर की थी की वे खुद अपने लिए भी कहते थे की संघर्ष तो सभी करते है लेखक ने कर लिया तो इसमें क्या बड़ी बात हो गयी। शरद ने जीवन में करीब 25 साल तक गद्य पाठ किया। एक बार किसी सम्मलेन में कमिसि ने उनसे कह दिया की जोशी तुम तो भांड बन गए। इसके बाद फिर उन्होंने कवी सम्मलेन में जाना बंद कर दिया। हालाँकि लिखना बंद नहीं किया। वे कहते थे की लिखना मेरा निजी उद्देश्य है और यदि मैं लिखता नहीं तो क्या करता ये सोचना मुश्किल है।
शरद जोशी ने टेलीविजन के लिए ‘ये जो है जिंदगी’, 'विक्रम बेताल', 'सिंहासन बत्तीसी', 'वाह जनाब', 'देवी जी', 'प्याले में तूफान', 'दाने अनार के' "लापतागंज" और 'ये दुनिया गजब की' धारावाहिक लिखे। इसके अलावा भी उन्होंने उन्होंने 'क्षितिज’, 'गोधूलि’, 'उत्सव’, जैसी कई फिल्मों के संवाद लिखे। उनके साहित्य की सूची बहुत लम्बी है। और खाली नाम से हम उन्हें समझ भी नहीं पाएंगे। इसीलिए आइये पढ़िए उनके द्वारा लिखा गया एक लेख।

एक बार कुछ पत्रकार और फोटोग्राफर गांधी जी के आश्रम में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि गांधी जी के तीन बंदर हैं। एक आंख बंद किए है, दूसरा कान बंद किए है, तीसरा मुंह बंद किए है। एक बुराई नहीं देखता, दूसरा बुराई नहीं सुनता और तीसरा बुराई नहीं बोलता। पत्रकारों को स्टोरी मिली, फोटोग्राफरों ने तस्वीरें लीं और आश्रम से चले गए।
उनके जाने के बाद गांधी जी का चौथा बंदर आश्रम में आया। वह पास के गांव में भाषण देने गया था। वह बुराई देखता था, बुराई सुनता था, बुराई बोलता था। उसे जब पता चला कि आश्रम में पत्रकार आए थे, फोटोग्राफर आए थे, तो वह बड़ा दु:खी हुआ और धड़धड़ाता हुआ गांधी जी के पास पहुंचा।
‘सुना बापू, यहां पत्रकार और फोटोग्राफर आए थे। बड़ी तस्वीरें ली गईं। आपने मुझे खबर भी न की। यह तो मेरे साथ बड़ा अन्याय किया है बापू।’
गांधी जी ने चरखा चलाते हुआ कहा, ‘जरा देश को आजाद होने दे बेटे! फिर तेरी ही खबरें छपेंगी, तेरी ही फोटो छपेगी। इन तीनों बंदरों के जीवन में तो यह अवसर एक बार ही आया है। तेरे जीवन में तो यह रोज-रोज आएगा।’

