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Pawan Diwan Death Anniversary छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रखर नेता, संत और कवि पवन दीवान की पुण्यतिथि पर जानें इनका जीवन परिचय

पवन दीवान (अंग्रेज़ी: Pawan Diwan, जन्म- 1 जनवरी, 1945, राजिम, छत्तीसगढ़; मृत्यु- 2 मार्च, 2014, दिल्ली) छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रखर नेता, संत और कवि थे। वह छत्तीसगढ़ी, हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषाओं....
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छत्तीसगढ़ न्यूज डेस्क !!! पवन दीवान (अंग्रेज़ी: Pawan Diwan, जन्म- 1 जनवरी, 1945, राजिम, छत्तीसगढ़; मृत्यु- 2 मार्च, 2014, दिल्ली) छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रखर नेता, संत और कवि थे। वह छत्तीसगढ़ी, हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषाओं के प्रखर वक्ता थे। उन्होंने महानदी के किनारे छत्तीसगढ़ की तीर्थ नगरी राजिम से 'अंतरिक्ष' ,'बिम्ब' और 'महानदी' नामक साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। पवन दीवान लम्बे समय तक राजिम स्थित संस्कृत विद्यापीठ के प्राचार्य भी रहे। वह खूबचन्द बघेल द्वारा स्थापित 'छत्तीसगढ़ भातृसंघ' के भी अध्यक्ष रहे। राजनीति में रहने के बावज़ूद पवन दीवान की पहचान मुख्य रूप से एक आध्यात्मिक सन्त, विद्वान भागवत प्रवचनकर्ता और हिन्दी तथा छत्तीसगढ़ी के लोकप्रिय कवि के रूप में आजीवन बनी रही। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संग्रह 'मेरा हर स्वर इसका पूजन' और 'अम्बर का आशीष' उल्लेखनीय हैं।

परिचय

पवन दीवान उन व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ियों में स्वाभिमान जगाने का काम किया था। जिन्होंने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आंदोलन किया था। जिन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा को भागवत कथा में शामिल कर उसे जन-जन में प्रसारित करने, प्रचारित करने और मातृभाषा के प्रति सम्मान जगाने का काम किया था। जिन्होंने हर मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी। जो एक सफल कवि, भागवताचार्य, खिलाड़ी और राजनेता के तौर जाने और माने गए। जिन्होंने एक पंक्ति में जीवन के मूल्य को समझा दिया था- "तहूँ होबे राख… महूँ होहू राख…" जिनके लिए सन 1977 में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है।[1]

पवन दीवान का जन्म 1 जनवरी, 1945 को राजिम के पास ग्राम किरवई में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई। उनके पिता का नाम सुखराम धर दीवान शिक्षक थे। वहीं माता का नाम किर्ती देवी दीवान था। ननिहाल आरंग के पास छटेरा गाँव था। उन्होंने स्कूली शिक्षा किरवई और राजिम से पूरी की। जबकि उच्च शिक्षा सागर विश्वविद्यालय और रविशकंर शुक्ल विवि रायपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। उन्होंने हिंदी और संस्कृत में एमए की पढ़ाई की थी।

संन्यास

अध्ययनकाल के समय ही पवन दीवान में वैराग्य की भावना बलवती हो गई थी। 21 वर्ष की आयु में हिमालय की तरायु में जाकर अंततः उन्होंने स्वामी भजनानंदजी महराज से दीक्षा लेकर सन्यास धारण कर लिया और भी पवन दीवान से अमृतानंद बन गए। इसके बाद वे आजीवन सन्यास में रहे और गाँव-गाँव जाकर भागवत कथा का वाचन करने लगे।

कविता लेखन

अध्ययन काल के दौरान पवन दीवान की रुचि खेल में भी रही। फ़ुटबॉल के साथ बॉलीबॉल में वे स्कूल के दिनों में उत्कृष्ट खिलाड़ी रहे। इस दौरान ही उन्होंने कविता लेखन की शुरुआत भी कर दी थी। धीरे-धीरे वे एक मंच के एक धाकड़ कवि बन चुके थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी और हिंदी दोनों में ही कविताएं लिखी। उनकी कुछ कविताएं जनता के बीच इतनी चर्चित हुई कि वे जहाँ भी भागवत कथा को वाचन को जाते लोग उनसे कविता सुनाने की मांग अवश्य करते। इन कविताओं में 'राख' और 'ये पइत पड़त हावय जाड़' प्रमुख रहे। वहीं कवि सम्मेलनों में उनकी जो कविता सबसे चर्चित रही उसमें एक थी 'मेरे गाँव की लड़की चंदा उसका नाम था' शामिल है।[1]

चर्चित कविता ‘राख’
राखत भर ले राख …
तहाँ ले आखिरी में राख।।
राखबे ते राख…।।
अतेक राखे के कोसिस करिन…।।
नि राखे सकिन……
तेके दिन ले…।
राखबे ते राख…।।
नइ राखस ते झन राख…।
आखिर में होना च हे राख…।
तहूँ होबे राख महूँ होहू राख…।
सब हो ही राख…
सुरू से आखिरी तक…।।
सब हे राख…।।
ऐखरे सेती शंकर भगवान……
चुपर ले हे राख……।

राजनीति

भागवत कथा वाचन, कवि सम्मेलनों से राजिम सहित पूरे अँचल में पवन दीवान प्रसिद्ध हो चुके हैं। उनके शिष्यों की संख्या लगातार बढ़ते ही जा रही थी। राजनीति दल के लोगों से उनका मिलना-जुलना जारी था। और उनकी यही बढ़ती हुई लोकप्रियता एक दिन उन्हें राजनीति में ले आई। राजनीति में उनका प्रवेश हुआ जनता पार्टी के साथ। 1975 में आपात काल के बाद सन 1977 में जनता पार्टी से राजिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। एक युवा संत कवि के सामने तब कांग्रेस के दिग्गज नेता श्यामाचरण शुक्ल कांग्रेस पार्टी से मैदान में थे। लेकिन युवा संत कवि पवन दीवान ने श्यामाचरण शुक्ल को हराकर सबको चौंका दिया था। तब उस दौर में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है। श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेता को हराने का इनाम पवन दीवान को मिला और अविभाजित मध्य प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में जेल मंत्री रहे। इसके बाद वे कांग्रेस के साथ आ गए और फिर पृथक राज्य छत्तीसगढ़ बनने तक कांग्रेस में रहे।[1]

मृत्यु

2003 में रमन सरकार बनने के साथ वे भाजपा में और रमन सरकार में गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे और भी समय गुजरते-गुजरते एक दिन ऐसा भी आया, जब अपनी खिलखिलाहट से समूचे छत्तीसगढ़ को हंसा देने वाले पवन दीवान सबको रुला भी गए। यह तारीख थी 23 फ़रवरी, 2014। इस दौरान राजिम कुंभ मेला चल रहा था। मेले में ही कार्यक्रम के दौरान उन्हें ब्रेम हेमरेज हुआ। फिर वे कोमा में चले गए। 2 मार्च, 2014 को दिल्ली में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।

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