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Harivansh Rai Bachchan Birthday श्रीवास्तव सरनेम छोड़ बने हरिवंश राय बच्चन, पंजाब की तेजी सूरी संग कैसे हुई शादी? वीडियो में देखें दिलचस्प प्रेम कहानी

आज (27 नवंबर) हिंदी भाषा के सबसे लोकप्रिय कवि स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन का जन्मदिन है। हरिवंश राय बच्चन का जन्म आज ही के दिन यानी 27 नवंबर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। इलाहाबाद को अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपने जीवनकाल....
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आज (27 नवंबर) हिंदी भाषा के सबसे लोकप्रिय कवि स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन का जन्मदिन है। हरिवंश राय बच्चन का जन्म आज ही के दिन यानी 27 नवंबर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। इलाहाबाद को अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई अद्भुत और खूबसूरत कविताएं लिखीं, जो आज भी पाठकों के दिलों को छू जाती हैं। वे हिन्दी साहित्य के छायावादी रचनाकार थे। उनकी कविताएं पढ़ना हर किसी को पसंद है. अमिताभ बच्चन को हिंदी सिनेमा का शहंशाह कहा जाता है लेकिन उनके पिता भी साहित्य जगत में एक अलग मुकाम रखते हैं। 27 नवंबर को हरिवंश राय बच्चन के जन्मदिन के मौके पर आइए आपको बताते हैं वो किस्सा जब हरिवंश राय बच्चन ने अमिताभ के जन्म से पहले ही अपनी पत्नी तेजी बच्चन को बता दिया था कि उनका एक बेटा होगा और वह उनके पिता की आत्मा है.

हरिवंश राय बच्चन का सपना

शो के दौरान आमिर खान ने हरिवंश राय बच्चन की जीवनी का एक किस्सा पढ़ा. इसमें लिखा था कि अमिताभ के जन्म से पहले उनकी मां तेजी बच्चन को प्रसव पीड़ा हो रही थी. उस वक्त हरिवंश राय ने तुरंत कहा था, ''तुम्हारा एक बेटा होगा और वह मेरे पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव का अवतार होगा.'' हरिवंश राय का एक सपना था जो उन्होंने तेजी से साझा किया.

हरिवंश राय बच्चन की कविताएं

मधुकलश

है आज भरा जीवन मुझमें,
है आज भरी मेरी गागर!

सर में जीवन है, इससे ही
वह लहराता रहता प्रतिपल,
सरिता में जीवन, इससे ही
वह गाती जाती है कल-कल
निर्झर में जीवन, इससे ही वह झर-झर झरता रहता है,
जीवन ही देता रहता है
नद को द्रुतगति, नद को हलचल,
लहरें उठती, लहरें गिरती,
लहरें बढ़ती, लहरें हटती;
जीवन से चंचल हैं लहरें,
जीवन से अस्थिर है सागर.
है आज भरा जीवन मुझमें,
है आज भरी मेरी गागर!

नभ का जीवन प्रति रजनी में
कर उठता है जगमग-जगमग,
जलकर तारक-दल-दीपों में;
सज नीलम का प्रासाद सुभग,
दिन में पट रंग-बिरंगे औ’
सतरंगे बन तन ढंकता,
प्रातः-सायं कलरव करता
बन चंचल पर दल के दल खग,
प्रार्वट में विद्युत् हंसता,
रोता बादल की बूंदों में,
करती है व्यक्त धरा जीवन,
होकर तृणमय होकर उर्वर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर!

मारुत का जीवन बहता है
गिरि-कानन पर करता हर-हर,
तरुवर लतिकाओं का जीवन
कर उठता है मरमर-मरमर,
पल्लव का, पर बन अम्बर में
उड़ जाने की इच्छा करता,
शाखाओं पर, झूमा करता
दाएं-बाएं नीचे-ऊपर,
तृण शिशु, जिनका हो पाया है
अब तक मुखरित कल कंठ नहीं,
दिखला देते अपना जीवन
फड़का देते अनजान अधर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर!

जल में, थल में, नभ मंडल में
है जीवन की धरा बहती,
संसृति के कूल-किनारों को
प्रतिक्षण सिंचित करती रहती,
इस धारा के तट पर ही है
मेरी यह सुंदर सी बस्ती
सुंदर सी नगरी जिसको है
सब दुनिया मधुशाला कहती,
मैं हूं इस नगरी की रानी
इसकी देवी, इसकी प्रतिमा,
इससे मेरा सम्बंध अतल,
इससे मेरा सम्बंध अमर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर!

अग्निपथ

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

बाढ़

बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
वह सब नीचे बैठ गया है
जो था गरू-भरू,
भारी-भरकम,
लोह-ठोस
टन-मन
वज़नदार!

और ऊपर-ऊपर उतरा रहे हैं
किरासिन की खालीद टिन,
डालडा के डिब्बे,
पोलवाले ढोल,
डाल-डलिए-सूप,
काठ-कबाड़-कतवार!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!

मुझे पुकार लो

इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!

ज़मीन है न बोलती,
न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे
नहीं ज़बान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहां
न अजनबी गिना गया,
कहां-कहां न फिर चुका
दिमाग-दिल टटोलता,
कहां मनुष्‍य है कि जो
उम्मीद छोड़कर जिया,
इसीलिए अड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो,
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो,

तिमिर-समुद्र कर सकी
न पार नेत्र की तरी,
वि‍नष्‍ट स्‍वप्‍न से लदी,
विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला,
न कोर भेर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी
विरह-घिरी विभावरी,
कहां मनुष्‍य है जिसे
कमी खली न प्‍यार की,
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे दुलार लो!
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!

उजाड़ से लगा चुका
उमीद मैं बाहर की,
निदाघ से उमीद की,
वसंत से बयार की,
मरुस्‍थली मरीचिका
सुधामयी मुझे लगी,
अंगार से लगा चुका
उम्मीद मैं तुषार की,
कहां मनुष्‍य है जिसे
न भूल शूल-सी गड़ी,
इसीलिए खड़ा रहा
कि भूल तुम सुधार लो!
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो! 

हरिवंश राय बच्चन अपने समय के प्रसिद्ध कवि थे। उनकी 'मधुशाला' और 'अग्निपथ' जैसी कविताएं आज भी पाठकों के दिलों में जिंदा हैं। लंबी बीमारी के बाद 18 जनवरी 2003 को 95 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। हरिवंश राय ने दो शादियाँ कीं उनकी पहली पत्नी श्यामा थीं। श्यामा बच्चन केवल 14 वर्ष की थीं जब उनकी शादी हरिवंश राय बच्चन से हुई। 1936 में टीबी रोग के कारण मृत्यु हो गई। पांच साल बाद, हरिवंश राय बच्चन ने एक पंजाबी महिला तेजी सूरी से शादी की, जो थिएटर और गायन से जुड़ी थीं। इसी समय उन्होंने 'आवश्यकता का निर्माण फिर' जैसी कविताओं की रचना की। अमिताभ बच्चन अक्सर मंच पर अपने पिता की कविताएं पढ़ते हैं और उनसे जुड़ी यादें साझा करते हैं। उनके मुताबिक, उनके पिता न सिर्फ उनके प्रेरणास्रोत थे, बल्कि एक सच्चे गुरु भी थे।

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