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Aun Chandra Guha Birthday भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिक कार्यकर्ता अरुण चन्द्र गुहा के जन्मदिन पर जानें इनके अनसुने किस्से
 

अरुण चन्द्र गुहा (अंग्रेज़ी: Arun Chandra Guha) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिक कार्यकर्ता थे....
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अरुण चन्द्र गुहा (अंग्रेज़ी: Arun Chandra Guha) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिक कार्यकर्ता थे। क़ानूनी शिक्षा प्राप्त करने के दौरान ही वह क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गए थे। रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द के विचारों से अरुण चन्द्र बहुत प्रभावित थे। भारत की आज़ादी के बाद अरुण चन्द्र गुहा संविधान परिषद के सदस्य भी चुने गए थे। वे तीन बार वर्ष 1952, 1957 और 1962 में लोकसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। एक प्रसिद्ध लेखक के रूप में भी अरुण गुहा जाने जाते थे।[1]

जन्म तथा शिक्षा

अरुण चन्द्र गुहा का जन्म 14 मई, 1892 को बारीसाल (बगांल) में हुआ था। उन्होंने बारीसाल से ही अपनी स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वे क़ानून की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) आ गए। पंरतु कलकत्ता में उनका मन क़ानून के अध्ययन में नहीं लगा और वे देश की आज़ादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे।

महापुरुषों का प्रभाव

महापुरुष रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द के विचारों से अरुण गुहा बहुत प्रभावित थे। 'गीता' के निष्काम कर्मयोग को उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया था। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के 'आनंदमठ' से भी वे प्रभावित हुए। 'बंग भंग' के विरोध में जो स्वदेशी आंदोलन आंरभ हुआ, 1906 में अरुण गुहा उसमें सम्मिलित हो गए।

जेल यात्रा

अरुण गुहा ने 'जुगांतर क्रांतिकारी पार्टी' की सदस्यता ग्रहण कर ली। अब उनकी गतिविधियाँ अंग्रेज़ सरकार की नजरों में खटकने लगीं। 1916 में अरुण गुहा को नजरबंद कर लिया गया, जहाँ से वे सन 1920 में रिहा किये गए। उन्होंने 'सरस्वती लाइब्रेरी' और 'श्री सरस्वती प्रेस' की स्थापना की थी। इन संस्थाओं का स्वाधीनता संबंधी साहित्य के प्रकाशन में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा। अरुण गुहा ने 'स्वाधीनता' नामक राष्ट्रीय पत्र का भी प्रकाशन किया। चटगांव की शस्त्रागार डकैती के बाद अरुण गुहा को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार उन्हें आठ साल कैद की सज़ा सुनाई गई थी। 1938 में रिहा होने पर वे बंगाल संगठन को मजबूत करने मे लगे ही थे कि व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण जून, 1946 तक फिर जेल की दीवारों के अंदर बंद रहे।

लोकसभा सदस्य

स्वत्रंता प्राप्ति के बाद अरुण गुहा संविधान परिषद के सदस्य चुने गए थे। वर्ष 1952, 1957 और 1962 में वे तीन बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। 1953 से 1957 तक उन्होंने केद्र सरकार के वित्त राज्यमंत्री के रूप में भी काम किया।

लेखन कार्य

आजीवन अविवाहित रहने वाले अरुण गुहा एक प्रसिद्ध लेखक भी थे। उन्होंने ऐतिहासिक और पौराणिक विषयों पर अनेक रचनाएँ की थीं। क्रांतिकारी आंदोलन संबंधी उनकी पुस्तक 'फ़र्स्ट स्पार्क ऑफ़ रेवोल्यूशन' बहुत प्रसिद्ध हुई थी। 'देश-परिचय', 'विजयी-परिचय' और 'विद्रोही-परिचय' नामक उनकी पुस्तकों को विदेशी सरकार ने जब्त कर लिया था।

कुटीर उद्योगों के समर्थक

अरुण गुहा औद्यौगीकरण के साथ-साथ ग्रामीण और कुटीर उद्योगों की उन्नति के भी समर्थक थे। सामाजिक बुरइय़ों के निवारण के लिए अरुण गुहा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा बताये गए मार्ग को उचित मानते थे।

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