आखिर क्यों पूर्व CJI Mohammad Hidayatullah को दफनाने के बदले जलाया गया था, वीडियो में सामने आई चौकाने वाली सच्चाई ?
मुहम्मद हिदायतुल्लाह (अंग्रेज़ी: Mohammad Hidayatullah, जन्म: 17 दिसम्बर 1905; मृत्यु: 18 सितम्बर 1992) भारत के पहले मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश थे। मुहम्मद हिदायतुल्लाह को भारत के प्रथम कार्यवाहक राष्ट्रपति कहना ज़्यादा उपयुक्त होगा, क्योंकि यह भारत की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार निर्वाचित राष्ट्रपति नहीं थे। उन्होंने दो अवसरों पर भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में भी कार्यभार संभाला था। इसके साथ ही वो एक पूरे कार्यकाल के लिए भारत के छठे उपराष्ट्रपति भी रहे।
मुहम्मद हिदायतुल्लाह के पुरखे मूलत: बनारस के रहने वाले थे जिनकी गिनती शिक्षित विद्धानों में होती थी। मुहम्मद हिदायतुल्लाह का जन्म 17 दिसम्बर 1905 को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। इनके दादा श्री मुंशी कुदरतुल्लाह बनारस में वकील थे जबकि इनके पिता ख़ान बहादुर हाफ़िज विलायतुल्लाह आई.एस.ओ. मजिस्ट्रेट मुख्यालय में तैनात थे। इनके पिता काफ़ी प्रतिभाशाली थे और प्रत्येक शैक्षिक इम्तहान में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते थे। इनके पिता हाफ़िज विलायतुल्लाह 1928 में भाण्डरा से डिप्टी कमिश्नर एवं डिस्ट्रिक्ट के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। मुहम्मद हिदायतुल्लाह के दो भाई और एक बहन थी। उनमें सबसे छोटे यही थे। मुहम्मद हिदायतुल्लाह की माता का नाम मुहम्मदी बेगम था जिनका ताल्लुक मध्य प्रदेश के एक धार्मिक परिवार से था, जो हंदिया में निवास करता था। मुहम्मद हिदायतुल्लाह की माता का निधन 31 जुलाई, 1937 को हुआ था।
सरकारी सेवा में रहते हुए ब्रिटिश सरकार ने श्री हिदायतुल्लाह के पिता को ख़ान बहादुर की उपाधि, केसरी हिन्द पदक, भारतीय सेवा सम्मान और सेंट जोंस एम्बुलेंस का बैज प्रदान किया था। इनके पिता अखिल भारतीय स्तर के कवि भी थे और मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही इन्हें विद्वत्ता की प्रतीक मुस्लिम पदवी हाफ़िज की प्राप्ति हो गई थी। उन्होंने फ़ारसी एवं उर्दू भाषा में कविताएँ लिखी। मुंबई के कुतुब प्रकाशन ने इनकी कविताओं का संग्रह 'सोज-ए-गुदाज' के नाम से प्रकाशित किया था। इनके पिता की दूसरी पुस्तक 'तामीर-ए-हयात' शीर्षक से प्रकाशित हुई, जो गंभीर दार्शनिक पद्य रूप में थी। हिदायतुल्लाह के पिता 6 वर्षों तक विधायिका परिषद के सदस्य भी रहे। मुहम्मद हिदायतुल्लाह के पिता का निधन नवम्बर, 1949 को हुआ था।
हिदायतुल्लाह का परिवार शिक्षा से रोशन था और उसके महत्त्व को भी समझता था। इस कारण हिदायतुल्लाह एवं उनके दोनों भाई इकरामुल्लाह और अहमदुल्लाह को भी अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का मौक़ा शुरू से ही मिला। उस समय उच्च कोटि के स्कूलों में ही गणवेश पद्धति थी। हिदायतुल्लाह ने जीवन के 6 आरंभिक वर्ष नागपुर में ही व्यतीत किए। 1921 में यह मैट्रिक परीक्षा हेतु योग्यता अर्जित कर चुके थे। लेकिन इन्हें 1921 में मैट्रिक परीक्षा में बैठने का अवसर इस कारण नहीं प्राप्त हुआ, क्योंकि उस समय इनकी उम्र 16 वर्ष पूरी नहीं हुई थी। तब यह नियम था कि मैट्रिक की परीक्षा वही विद्यार्थी दे सकता है, जिसने 16 वर्ष की उम्र प्राप्त कर ली हो। इस कारण हिदायतुल्लाह ने 1922 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तब यह रायपुर के सरकारी स्कूल में थे और परीक्षा में प्रथम आने के कारण इन्हें 'फिलिप्स स्कॉलरशिप' प्राप्त हुई।
हिदायतुल्लाह ने आगे की पढ़ाई के लिए मॉरिस कॉलेज में दाखिला लिया और कला की स्नातक स्तरीय परीक्षा दी। इस परीक्षा में इन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। यह एक नम्बर से प्रथम स्थान पाने से वंचित रह गए तथापि इन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। सन् 1926 में हिदायतुल्लाह अपने भाई अहमदुल्लाह के साथ लंदन गए। वहाँ उन्होंने कुछ इम्तहान दिए। उसके बाद 1927 में ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज में क़ानून विषय में दाखिला ले लिया। इन्हें पढ़ने का शौक़ था। इस कारण अंग्रेज़ी को भी इन्होंने अतिरिक्त विषय के रूप में लिया। फिर जून, 1930 में भारत आने से पूर्व उन्होंने वकालत की परीक्षा 'लिंकंस इन्न' से उत्तीर्ण की। लेकिन वह वकालत की उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सके।
भारत आने के बाद हिदायतुल्लाह ने 1930 से 1936 तक नागपुर हाई कोर्ट में प्राइवेट प्रैक्टिस की। इन छह वर्षों में बतौर एडवोकेट इन्होंने काफ़ी ख्याति अर्जित की। उनकी इच्छा थी कि वह जीवन में अध्यापन का कार्य करें। भाग्य ने एम. हिदायतुल्लाह को यह अवसर भी 1934 से 1942 तक प्रदान किया। वह पार्ट टाइम प्रोफ़ेसर के रूप में नागपुर विश्वविद्यालय में क़ानून विषय का अध्यापन करने लगे।
हिदायतुल्लाह बेहद सरलता एवं मनोरंजकता के साथ कक्षा में लेक्चर्स देते थे। इनके विद्यार्थियों को इनके लेक्चर्स काफ़ी प्रभावित करते थे। इनके साथी व्याख्याता भी इन्हें काफ़ी पसंद करते थे। कुछ समय उपरांत वह नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा संचालित विधि संकाय के डीन भी बन गए। बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हाराव भी वहाँ इनके विद्यार्थी थे।
इस प्रकार सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए मुहम्मद हिदायतुल्लाह ने जीवन में ऊँचे मुकाम हासिल किए। वह नागपुर हाई कोर्ट में 1936 से 1942 तक एडवोकेट तथा 1942 से 1943 तक सरकारी वकील रहे। इस प्रकार तरक़्क़ी करते हुए यह ब्रिटिश सल्तनत के समय 24 जून 1946 को नागपुर हाई कोर्ट के कार्यवाहक जज भी बने। इन्हें 13 अगस्त 1946 को परम्परागत रूप से जज बनाया गया और 1954 तक यह इस पद पर रहे।
5 मई 1948 को एम. हिदायतुल्लाह ने 43 वर्ष की उम्र में एक हिन्दू युवती पुष्पा के साथ अंतर्जातीय विवाह कर लिया। पुष्पा अच्छे ख़ानदान से थीं और उनके पिता ए. एन. शाह (आई.सी.एस. चेयरमैन) अखिल भारतीय इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल थे। इस विवाह का नागपुर में तत्कालीन परिस्थितियों में काफ़ी सम्मान हुआ और समाज के सभी वर्गों ने दोनों के परिवारों को हार्दिक शुभकामनाएँ भी दीं।
शादी के अगले ही वर्ष हिदायतुल्लाह को पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम अरशद रखा गया। दूसरी संतान के रूप में इन्हें पुत्री हुई, जिसका नाम अवनी रखा गया। लेकिन 9 जून 1960 को पुत्री अवनी की मृत्यु हो गई। बाद में
मानव जीवन की अंतिम त्रासदी यह है कि वह नश्वर है, शाश्वत नहीं। एम. हिदायतुल्लाह ने भी ईश्वर की नश्वरता के नियम का अनुपालन करते हुए 18 सितम्बर 1992 को हृदयाघात के कारण अपना शरीर त्याग दिया। इनका निधन मुंबई में हुआ था। एक इंसान के रूप में इनका जीवन मानव जाति के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। वह एक ऐसी शख़्सियत थे, जिसके सम्पर्क में आया व्यक्ति इन्हें कभी नहीं भूल सकता था। भारत माता के इस सच्चे सपूत को उसके मानवीय गुणों के कारण याद किया जाता रहेगा।

