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Ashok Singhal Death Anniversary अशोक सिंघल के पुण्यतिथि पर जानें इनके अनसुने किस्से

अशोक सिंघल (अंग्रेज़ी: Ashok Singhal, जन्म- 15 सितम्बर, 1926; मृत्यु- 17 नवम्बर, 2015) 'विश्व हिन्दू परिषद' (विहिप) के अध्यक्ष थे। वह बीस वर्षों तक विहिप के अंतर्रा.......
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अशोक सिंघल (अंग्रेज़ी: Ashok Singhal, जन्म- 15 सितम्बर, 1926; मृत्यु- 17 नवम्बर, 2015) 'विश्व हिन्दू परिषद' (विहिप) के अध्यक्ष थे। वह बीस वर्षों तक विहिप के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। दिसंबर 2011 में बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण अशोक सिंघल ने अपना पद छोड़ दिया और जिसके बाद प्रवीण तोगड़िया ने उनका स्थान लिया। विहिप की ख्याति में अशोक सिंघल का सर्वाधिक योगदान है। परिषद के कार्य हेतु वह विदेश यात्राओं पर जाते रहे। अशोक सिंघल ने विवाह नहीं किया और आजीवन अविवाहित रहे।

15 सितम्बर, 1926 को आगरा में जन्में अशोक सिंघल के पिता एक सरकारी दफ्तर में कार्यरत थे। बाल अवस्था से लेकर युवावस्था तक अंग्रेज़ शासन को देख कर बड़े हुए और उसी दौरान वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गये। 1942 में आरएसएस ज्वाइन करने के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। समाज को अपना जीवन समर्पित कर चुके अशोक सिंघल ने 1950 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मटलर्जी साइंस में इंजीनियरिंग पूरी की।[1]

आरएसएस से जुड़ाव
घर के धार्मिक वातावरण के कारण अशोक सिंघलके मन में बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया। उनके घर संन्यासी तथा धार्मिक विद्वान आते रहते थे। कक्षा नौ में उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी। उससे भारत के हर क्षेत्र में सन्तों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से उनका परिचय हुआ। 1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया। उन्होंने अशोक सिंघल की माता जी को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनायी। इससे माता जी ने अशोक सिंघल को शाखा जाने की अनुमति दे दी। इंजीनियर की नौकरी करने के बजाये अशोक सिंघल ने समाज सेवा का मार्ग चुना और आगे चलकर आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। उन्होंने उत्तर प्रदेश और आस-पास की जगहों पर आरएसएस के लिये लंबे समय के लिये काम किया और फिर दिल्ली-हरियाणा में प्रांत प्रचारक बने।

शास्त्रीय गायन में निपुण
1947 में देश विभाजन के समय कई नेता सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे; पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा? अशोक सिंघल भी उन युवकों में थे। अतः उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित करने का निश्चय कर लिया। बचपन से ही अशोक सिंघल की रुचि शास्त्रीय गायन में रही। संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनायी।[1]

जेलयात्रा
साल 1948 में संघ पर प्रतिबन्ध लगा तो अशोक सिंघल सत्याग्रह कर जेल गये। वहाँ से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और प्रचारक बन गये। अशोक सिंघल की सरसंघचालक श्री गुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही। प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे। यहाँ उनका सम्पर्क श्री रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ। वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था। अशोक सिंघल अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टतः स्वीकार करते हैं।

आपातकाल
1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा। इस दौरान अशोक सिंघल इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे। आपातकाल के बाद वे दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बनाये गये। 1981 में कर्ण सिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ; पर उसके पीछे शक्ति अशोक सिंघल और संघ की थी। उसके बाद अशोक सिंघल को विश्व हिन्दू परिषद के काम में लगा दिया गया। इसके बाद परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गोरक्षा.. आदि अनेक नये आयाम जुड़े। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिससे परिषद का काम गाँव-गाँव तक पहुँच गया। इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी। भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है।

राम जन्मभूमि आंदोलन
1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में एक धर्म संसद का आयोजन किया गया। अशोक सिंघल इसके मुख्य संचालक थे। यहीं पर राम जन्मभूमि आंदोलन की रणनीति तय की गई। यहीं से सिंघल ने पूरा प्लान बनाना शुरू किया और कारसेवकों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया। अशोक सिंघल ने देश भर से 50 हजार कारसेवक जुटाये। सभी कारसेवकों ने राम जन्मभूमि पर राम मंदिर स्थापना करने की कसम देश की प्रमुख नदियों के किनारे खायी। अशोक सिंघल ने अयोध्या की सरयु नदी के किनाने रामलला की मूर्ति स्थापित करने का संकल्प लिया।[1]

मृत्यु
अशोक सिंघल परिषद के काम के विस्तार के लिए विदेश प्रवास पर जाते रहे। परिषद के महासचिव चम्पत राय भी उनके साथ जाते थे। कुछ समय से उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था। इससे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। इसी के चलते 17 नवम्बर, 2015 को दोपहर में गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हुआ।

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