ट्वीट्स की एक सीरीज में, धनखड़ ने कहा है कि मुख्य सचिव और बंगाल पुलिस के डीजीपी द्वारा राज्यपाल के साथ बैठक के बहिष्कार को लेकर भेजे गए समान संदेशों को देखकर दंग रह गया हूं। आखिर मुख्य सचिव/डीजीपी ने किसके दिशानिर्देश के तहत संदेश भेजे गए हैं।राज्यपाल की प्रतिक्रिया दो शीर्ष अधिकारियों द्वारा धनखड़ को एक जैसे संदेश भेजे जाने के बाद आई है। राज्यपाल ने मुख्य सचिव और डीजीपी को राजभवन में तलब किया था और जानना चाहा था कि अदालत की अनुमति के बावजूद विपक्षी नेता रास्ते में क्यों हिरासत में लिया गया? लेकिन दोनों ही अधिकारी उनसे मिलने नहीं गए, बल्कि राज्यपाल को एक पत्र भेज दिया, जिसमें कहा गया कि कई नौकरशाह संक्रमित होने की वजह से वे लोग अलग रह रहे हैं।इसके अलावा दूसरा कारण बताया गया कि स्थिति को नियंत्रित करने और गंगासागर मेला आयोजित करने की भी उन पर जिम्मेदारी है। इसलिए वे निर्देश के अनुसार, राजभवन में नहीं गए। उन्होंने कहा कि स्थिति कुछ सामान्य हो जाएगी तो नेताई को लेकर राज्यपाल को रिपोर्ट भेजी जाएगी। जवाब से असंतुष्ट राज्यपाल ने सोमवार शाम पांच बजे तक राज्य के दो शीर्ष अधिकारियों को तलब किया। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि विपक्षी नेता शुभेंदु के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है।
राज्यपाल ने दो शीर्ष अधिकारियों के कथित ढीले रवैये पर आश्चर्य करते हुए लिखा कि दोनों अधिकारियों की ओर से उनकी कार्रवाई का उपहास किया गया और राज्यपाल के कार्यालय का अपमान किया गया है। इसके अलावा राज्यपाल ने उनके आचरण की भी निंदा की। संवैधानिक प्रमुख की बैठक का बहिष्कार करने पर धनखड़ ने इसे संविधान और कानून के अनुसार शासन के खिलाफ बताया।उन्होंने आगे कहा कि उनकी ओर से यह कदम प्रथम दृष्टया अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 की घोर अवहेलना है। यह मुख्य सचिव - राज्य में नौकरशाही का आधार - और डीजीपी - दोनों के संदेशों से देखा जा सकता है।राज्यपाल ने कहा कि उन्हें इस तरह के मुद्दे पर मुख्य सचिव और डीजीपी के इस तरह के ढुलमुल रवैये की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने कहा, इस स्थिति में मैं मुख्य सचिव और डीजीपी दोनों को यह निर्देश देने के लिए विवश हूं कि वे उस प्राधिकरण को इंगित करें, जिनके निर्देश के तहत संदेश इस कार्यालय को भेजा गया है और इस तरह के निर्देश के लिए किस कानूनी आधार की मांग की गई है।
राज्य प्रशासन को राज्यपाल का निर्देश तब सामने आया था, जब अधिकारी ने धनखड़ को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि उन्हें नेताई जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। अधिकारी वहां 2011 में वाममोर्चा शासन के दौरान मारे गए नौ लोगों को श्रद्धांजलि देने जा रहे थे।अधिकारी ने शिकायत की थी कि नेताई के रास्ते में, पश्चिम बंगाल पुलिस की एक बड़ी टुकड़ी ने पूरी सड़क पर बैरिकेडिंग करते हुए उनका रास्ता रोक दिया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि एजी द्वारा उच्च न्यायालय को आश्वासन दिए जाने के बावजूद कि विपक्ष के नेता राज्य में कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र हैं, उन्हें रोका गया।7 जनवरी, 2011 को वाम मोर्चा शासन के दौरान, हथियारबंद गुंडों ने नेताई के निर्दोष ग्रामीणों को निशाना बनाकर अंधाधुंध गोलियां चलाईं थीं, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे।
--आईएएनएस
कोलकाता न्यूज डेस्क !!!
एकेके/एसजीके