रोडवेज बसों की कमान संभालने में महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है। यह सिर्फ एक सामान्य धारणा नहीं है, बल्कि हालिया आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि कर रहे हैं। इस साल रोडवेज में संविदा कर्मचारियों की भर्तियों में महिलाओं ने कंडक्टर और चालक के तौर पर शानदार प्रदर्शन किया है।
बता दें कि इस वर्ष रोडवेज में संविदा कर्मियों की भर्ती दो चरणों में हुई। इसमें 49 प्रतिशत महिलाएं कंडक्टर के रूप में सफल रही हैं। वहीं, संविदा चालक बनने के लिए पुरुषों की भर्ती केवल 34 प्रतिशत रही। यह आंकड़ा दर्शाता है कि महिलाएं सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में सक्रिय भूमिका निभाने में कितनी सक्षम हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रवृत्ति से यह स्पष्ट होता है कि महिलाएं परिश्रम, समर्पण और जिम्मेदारी के मामले में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। कंडक्टर और चालक के रूप में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से रोडवेज में बेहतर प्रबंधन और ग्राहक सेवा को भी बल मिलेगा।
रोडवेज अधिकारियों ने बताया कि महिलाओं की संख्या बढ़ने से न केवल कर्मचारियों में संतुलन बना है, बल्कि बस संचालन के दौरान सुरक्षा और अनुशासन में भी सुधार देखा गया है। महिलाओं ने यात्रियों के प्रति संवेदनशीलता और समयबद्ध सेवाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।
स्थानीय लोगों और यात्रियों ने भी महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का स्वागत किया है। उनका कहना है कि महिलाएं सेवा और व्यवहार के मामले में पुरुषों के मुकाबले अधिक जिम्मेदार और सजग साबित हुई हैं। इसके साथ ही, यह बदलाव समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।
विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से रोजगार के अवसरों में समानता और लैंगिक संतुलन सुनिश्चित होता है। सरकार और रोडवेज प्रशासन द्वारा महिलाओं को प्रोत्साहित करने के कदम इस दिशा में प्रभावी साबित हो रहे हैं।
आंकड़े बताते हैं कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो आने वाले वर्षों में रोडवेज बसों में महिलाओं की हिस्सेदारी और बढ़ेगी। इससे न केवल संचालन में सुधार होगा, बल्कि महिलाओं को रोजगार और स्वतंत्रता के क्षेत्र में अधिक अवसर भी मिलेंगे।
कुल मिलाकर, रोडवेज में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी यह संदेश दे रही है कि चाहे वह कंडक्टर हो या चालक, महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। इस बदलाव से न केवल परिवहन व्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि समाज में लैंगिक समानता को भी एक नया आयाम मिलेगा।

