किसानों के विरोध के बाद मध्य प्रदेश में बिजली विभाग का विवादित आदेश वापस, खुशी की लहर
मध्य प्रदेश में पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी (पीडब्ल्यूडीसीएल) द्वारा जारी किए गए एक विवादित आदेश को लेकर पिछले कुछ दिनों से गहमागहमी रही। इस आदेश में किसानों को 10 घंटे से अधिक बिजली देने पर रोक लगाने की बात कही गई थी, साथ ही यदि यह नियम उल्लंघन हुआ तो जिम्मेदार अधिकारियों की सैलरी में कटौती करने का प्रावधान भी रखा गया था। इस आदेश का विरोध केवल आम जनता और किसानों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बिजली विभाग के कर्मचारी भी इस फैसले के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त करते नजर आए।
किसानों का कहना था कि कृषि क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति उनकी खेती और फसल की देखभाल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। कई इलाकों में किसान रात में पंप सेट चला कर खेतों में सिंचाई करते हैं और 10 घंटे की सीमा उनके लिए पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा, जिम्मेदार अधिकारी की सैलरी काटने का प्रावधान कर्मचारियों के लिए भी चिंता का विषय बन गया। उन्होंने इसे ‘अनावश्यक दबाव’ और ‘असुरक्षित फैसला’ करार दिया।
आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिले। किसानों ने कई जिलों में बिजली विभाग के कार्यालयों के सामने विरोध मार्च निकाले और प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि आदेश को वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन तेज होगा। सोशल मीडिया पर भी किसान और आम जनता इस आदेश के खिलाफ अपने विचार साझा करते रहे। वहीं, बिजली विभाग के कर्मचारी भी अपने सहयोगियों और किसानों के समर्थन में खुलकर विरोध करते नजर आए।
सरकार ने इस आदेश को लेकर स्थिति का गंभीरता से मूल्यांकन किया और किसानों एवं कर्मचारियों की मांगों को ध्यान में रखते हुए आदेश को वापस लेने का निर्णय लिया। मध्य प्रदेश के विद्युत मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि “किसानों की आवश्यकताओं और उनकी मेहनत को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि कृषि क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति को बाधित नहीं किया जाएगा। किसानों की सुविधा और उनकी कृषि गतिविधियों के हित में यह आदेश निरस्त किया जाता है।”
किसानों ने इस फैसले का स्वागत किया और इसे उनकी मेहनत और आवाज की जीत बताया। मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में खुशी की लहर देखी गई, जहां किसान अपने खेतों में वापस काम करने लगे। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि बिजली आपूर्ति के मुद्दे पर सरकारी आदेशों का किसान समुदाय के साथ तालमेल बेहद जरूरी है, क्योंकि खेती में बिजली की उपलब्धता सीधे फसल की उपज और उनकी आमदनी से जुड़ी होती है।
इस विवाद ने यह भी उजागर किया कि सरकारी आदेशों का प्रभाव केवल प्रशासनिक स्तर पर नहीं बल्कि आम जनता, विशेषकर किसानों और स्थानीय कर्मचारियों पर भी पड़ता है। अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि किसी भी बदलाव को लागू करने से पहले संबंधित पक्षों के साथ परामर्श करें।
अंततः किसानों की सक्रिय भागीदारी और विरोध के चलते यह मामला शांतिपूर्ण तरीके से सुलझ गया। इस घटना ने न केवल किसानों की आवाज़ को सशक्त किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि जब जनता और सरकार के बीच संवाद खुला हो, तो विवादों का समाधान संभव है।

