आखिर क्यों उत्तराखंड में युवाओं के बीच अचानक मची हड़बड़ी? जानें क्या है पूरा मामला
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के तहत छह महीने की पंजीकरण अवधि 27 जुलाई, 2025 को समाप्त होने वाली है। ऐसे में विवाह, तलाक और लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण की होड़ मच गई है। 27 जनवरी से लागू हुए यूसीसी के तहत, राज्य ने 26 मार्च, 2010 से यूसीसी लागू होने तक सभी विवाह, तलाक और लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है। इस कानून का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करना है, जिसमें लैंगिक समानता, बहुविवाह पर प्रतिबंध और लिव-इन रिलेशनशिप में पारदर्शिता जैसे प्रावधान शामिल हैं।
सूत्रों का कहना है कि 27 जनवरी को यूसीसी लागू होने के बाद से अब तक दो लाख से ज़्यादा विवाह और लिव-इन रिलेशनशिप के 90 आवेदन पंजीकृत हो चुके हैं। कानून में कहा गया है कि 26 मार्च, 2010 से यूसीसी लागू होने के बीच सभी विवाह, तलाक और लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण यूसीसी लागू होने के छह महीने के भीतर होना चाहिए।
लोग अभी भी लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत कराने में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। इस प्रावधान को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का रुख जानने के लिए अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी। अधिकारियों के अनुसार, पंजीकृत 90 लिव-इन में से 72 प्रतिशत के बच्चे हैं, जिन्हें विवाहित जोड़ों के बच्चों के समान अधिकार प्राप्त होंगे।
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का लक्ष्य महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करना है। यह कानून बहुविवाह और निकाह हलाला जैसी प्रथाओं पर रोक लगाता है। इससे लिव-इन में रह रही महिलाओं को सुरक्षा भी मिलेगी। अगर उन्हें छोड़ दिया जाता है, तो वे गुजारा भत्ता मांग सकती हैं। लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण न कराने पर जेल और जुर्माना हो सकता है।
बता दें कि उत्तराखंड में 27 जनवरी को समान नागरिक संहिता लागू की गई थी। उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। उत्तराखंड यूसीसी में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और लिव-इन से संबंधित कानून हैं।

