
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित हाईकोर्ट की पीठ ने दुष्कर्म के प्रयास से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी महिला के कपड़े उतारना, दुराचार की कोशिश के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।
न्यायमूर्ति रजनीश कुमार की एकल पीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि किसी महिला के शरीर की गरिमा और निजता का हनन करना, भले ही दुष्कर्म पूर्ण रूप से न हुआ हो, पर यदि उद्देश्य बलात्कार का था और उसके लिए कपड़े उतारे गए, तो इसे दुष्कर्म के प्रयास का गंभीर अपराध माना जाएगा।
यह टिप्पणी पीठ ने उस अपील को खारिज करते हुए दी, जिसमें एक सजायाफ्ता आरोपी ने अपने खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को चुनौती दी थी। आरोपी पर आरोप था कि उसने महिला के साथ जबरदस्ती की और उसके कपड़े उतारने का प्रयास किया।
अदालत का तर्क
न्यायमूर्ति रजनीश कुमार ने अपने फैसले में कहा, "महिला के वस्त्रों को जबरन हटाने की क्रिया, यदि यह बलात्कार के उद्देश्य से की गई हो, तो यह दुष्कर्म के प्रयास की श्रेणी में आता है। यह न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक शोषण का भी मामला है, जिससे पीड़िता की गरिमा को गंभीर चोट पहुंचती है।"
अपील खारिज, सजा बरकरार
कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को उचित बताते हुए आरोपी की अपील को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में न्यायपालिका को महिलाओं की गरिमा और आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए कठोर रुख अपनाना होगा।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
इस फैसले को महिला सुरक्षा की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि हाईकोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट रूप से यह संकेत देता है कि दुष्कर्म की कोशिश की व्याख्या केवल शारीरिक संपर्क तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक उत्पीड़न और कपड़े उतारने जैसी क्रियाएं भी इसके दायरे में आती हैं।